नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए बुधवार को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात करेंगे. केजरीवाल का कहना है कि केंद्र के दिल्ली विरोधी इस अध्यादेश को जब संसद से पारित करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया जाएगा. लोकसभा में यह भले ही यह पारित हो जाए, लेकिन राज्यसभा में अगर विरोधी दल एकजुट होकर इस अध्यादेश का विरोध करेंगे तो पारित नहीं हो पाएगा. ऐसे में केंद्र द्वारा लाया गया अध्यादेश खारिज हो जाएगा.
बता दें कि बीते सप्ताह केजरीवाल ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के एमके स्टालिन से चेन्नई में और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की थी. अब इसी कड़ी में वह कल लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात करेंगे.
कांग्रेस से समर्थन की उम्मीद: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों को एक एकजुट करने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी की उम्मीद कांग्रेस पर भी टिकी हुई है. राज्यसभा में कांग्रेस के 31 सदस्य हैं. केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस का भी विरोध देख केजरीवाल कांग्रेस से भी अध्यादेश के खिलाफ वोट करने की मांग कर रहे हैं. इस बाबत पिछले दिनों केजरीवाल ने कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व राहुल गांधी से मुलाकात का समय मांगा है. हालांकि अभी तक समय नहीं मिला है.
जानिए क्या है केंद्र द्वारा लाया गया अध्यादेश: दिल्ली सरकार में सर्विसेज से जुड़े मामलों को पूर्ण अधिकार चुनी हुई सरकार को देने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था. इस अध्यादेश के जरिए उसे पलट दिया गया है. केंद्र के अध्यादेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधित ऑर्डिनेंस) 2023 के जरिए केंद्र सरकार ने एक नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन किया है. दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और सेवा से जुड़े फैसले अब ऑथोरिटी के जरिए होंगे. इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री को प्रमुख बनाने की बात कही गई है. लेकिन फैसला बहुमत से होगा.
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नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह विभाग के सदस्य होंगे. किसी भी विवाद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा. केंद्र के अधीन आने वाले विषयों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में यह अथॉरिटी ग्रुप ए और दिल्ली में सेवा दे रहे दानिक्स अधिकारियों के तबादले नियुक्ति की सिफारिश करेंगी. जिस पर अंतिम मुहर उपराज्यपाल की लगाएंगे. इस अध्यादेश को 6 महीने में संसद से पास करना होगा. इसके बाद यह कानून का रूप ले लेगा.
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