नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय करों में दिल्ली के वाजिब हिस्से को लेकर केंद्रीय वित्त मंत्री को पत्र लिखा है. पत्र के माध्यम से उन्होंने पिछले 23 वर्षों में दिल्ली के लोगों के साथ हुए भेदभाव को उजागर किया है. साथ ही उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आगामी केंद्रीय वित्त आयोग में दिल्ली की हिस्सेदारी पर ध्यान देने का आग्रह किया है.
केजरीवाल ने पत्र में लिखा है कि दिल्ली ने आयकर में 1.78 लाख करोड़ रुपए का भुगतान किया, लेकिन केंद्र ने वित्त वर्ष 2023-24 में दिल्ली की हिस्सेदारी शून्य कर दी है. इसके अलावा केंद्रीय करों में दिल्ली का हिस्सा पिछले 23 वर्षों से रुका है. इस वित्त वर्ष दिल्ली को केवल 350 करोड़ मिले. जबकि, 7,378 करोड़ मिलने चाहिए थे.
पत्र में केजरीवाल ने लिखा कि दिल्ली के बजट की फंडिंग का पैटर्न कमोबेश दूसरे राज्यों के समान ही है. छोटे बचत ऋणों की सेवा सहित दिल्ली सरकार के वित्तीय लेनदेन अन्य राज्यों की तरह अपने स्वयं के संसाधनों से पूरे किए जा रहे हैं. दिल्ली अपनी आय में से स्थानीय निकायों को फंड दे रही है. इसके बावजूद दिल्ली सरकार को दूसरे राज्यों की तरह न तो केंद्रीय करों के हिस्से में से वैध राशि मिलती है और न ही अपने स्थानीय निकायों के संसाधनों की पूर्ति के लिए कोई हिस्सा मिलता है.
इसके अलावा सीएम ने दिल्ली के शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी), एमसीडी की वित्तीय दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया है. दिल्ली के 2 करोड़ लोगों की प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के बावजूद एमसीडी को केंद्र से कोई अनुदान राशि नहीं मिली है. उन्होंने पत्र के जरिए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की दिल्ली सरकार कई वर्षों से वित्तीय भेदभाव का मुद्दा उठाती रही है.
केजरीवाल ने कहा कि पिछले संवादों के जरिए यह बताया गया है कि केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली का नाम वित्त आयोग के 'संदर्भ की शर्तों' से हटा दिया गया है. अब यह कर हस्तांतरण के दायरे में नहीं आता है. इसलिए दूसरे राज्यों की तरह व्यवहार नहीं किया जाता है.
केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी: केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी 2001-02 से आश्चर्यजनक रूप से 350 करोड़ के आसपास स्थिर है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में इसका बजट बढ़कर 73,760 करोड़ रुपए हो गया है. दिल्ली की तरह समान आबादी वाले पड़ोसी राज्यों की तुलना करने पर असमानता साफ तौर पर दिखती है. हरियाणा को वित्त वर्ष 2022-23 में केंद्रीय करों के पूल से 10,378 करोड़ और पंजाब को 17,163 करोड़ मिले, जबकि दिल्ली को केवल 350 करोड़ मिले. केजरीवाल ने कहा कि अगर निष्पक्षता से व्यवहार किया जाए तो देश की राजधानी का हिस्सा 7,378 करोड़ होना चाहिए था.
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