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UGC समिति का JNU शिक्षकों ने किया विरोध, कहा- स्वायत्ता न छीनी जाए

जेएनयू में बढ़ी हुई फीस को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए एमएचआरडी ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया. इस समिति के गठन पर जेएनयू के शिक्षक सवाल उठा रहे हैं.

यूजीसी समिति का विरोध
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Published : Nov 21, 2019, 11:23 PM IST

नई दिल्ली: जेएनयू में हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए एमएचआरडी ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. वहीं स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने इस समिति के गठन पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि एमएचआरडी द्वारा इस तरह की समिति का गठन विश्वविद्यालय में उपस्थित शिक्षकों, कुलपति आदि प्रशासनिक अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.

समिति के गठन पर जेएनयू के शिक्षक सवाल उठा रहे हैं

जेएनयू में नए हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस के रोलबैक को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों की समस्या सुलझाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है. वहीं इसको लेकर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने कहा कि विश्वविद्यालय में उठे छात्रों के विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग से समिति का गठन करने कोई हल नहीं होता है.

उन्होंने कहा-

छात्रों की समस्या सुलझाने में सक्षम प्रशासनिक अधिकारी विश्वविद्यालय में मौजूद होते हैं. ऐसे में बिना किसी की सहमति के एमएचआरडी द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर केवल उसके सदस्यों को इसका अधिकार देना विश्वविद्यालय में मौजूद आला अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.

वहीं प्रोफेसर अश्विनी ने कहा कि सभी संस्थानों को हर तरह की स्वायत्तता दी जाती है, जिससे वो शिक्षा संस्थान बिना किसी भी भेदभाव के चला सकें. ऐसे में एमएचआरडी द्वारा विश्वविद्यालय की समस्याओं को सुलझाने के लिए बाहरी सदस्यों की समिति का गठन करने से संस्थान की स्वायत्तता का भी हनन होता है.

उन्होंने कहा कि जिस समस्या को सुलझाने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया उस समस्या का आरंभ भी यूजीसी द्वारा जारी किए गए पत्र से हुआ है. उन्होंने बताया कि यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को पत्र जारी कर सूचित किया था कि मेस में कॉन्ट्रैक्ट पर जो भी कर्मचारी लगाए जाएंगे उनका भुगतान यूजीसी वहन नहीं करेगी, उसका खर्चा विश्वविद्यालय खुद संभाले.

'यूजीसी को कार्यपद्धति सुधारने की जरूरत'

वहीं डीन के साथ हुई बैठक में उच्च स्तरीय समिति के प्रतिनिधि इस बात से मुकर जाते हैं और कहते हैं कि विश्वविद्यालय ने फंड मांगा ही नहीं. इसलिए पहले यूजीसी को अपनी कार्यपद्धति सुधारने की जरूरत है, फिर वो विश्वविद्यालय में सुधार की कोशिश करे.

उन्होंने कहा-

एक बार ये समिति गठन की परंपरा शुरू हो गई तो कभी भी कोई भी समस्या खड़ी होगी तो सभी विश्वविद्यालयों में अलग से समिति का गठन होने लगेगा, जो छात्रों और विश्वविद्यालय में मौजूद आला अधिकारियों के लिए चिंता का सबब बन सकता है.

जेएनयू के शिक्षकों ने किया विरोध

बता दें कि एमएचआरडी द्वारा छात्रों की समस्या सुलझाने के लिए गठित की गई तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का जेएनयू के शिक्षकों ने विरोध किया है और कहा है कि विश्वविद्यालय परिसर की समस्या के लिए बाहरी सदस्यों की समिति का गठन कर एमएचआरडी विश्वविद्यालय की स्वायत्ता छीनने की कोशिश न करे.

नई दिल्ली: जेएनयू में हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए एमएचआरडी ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. वहीं स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने इस समिति के गठन पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि एमएचआरडी द्वारा इस तरह की समिति का गठन विश्वविद्यालय में उपस्थित शिक्षकों, कुलपति आदि प्रशासनिक अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.

समिति के गठन पर जेएनयू के शिक्षक सवाल उठा रहे हैं

जेएनयू में नए हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस के रोलबैक को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों की समस्या सुलझाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है. वहीं इसको लेकर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने कहा कि विश्वविद्यालय में उठे छात्रों के विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग से समिति का गठन करने कोई हल नहीं होता है.

उन्होंने कहा-

छात्रों की समस्या सुलझाने में सक्षम प्रशासनिक अधिकारी विश्वविद्यालय में मौजूद होते हैं. ऐसे में बिना किसी की सहमति के एमएचआरडी द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर केवल उसके सदस्यों को इसका अधिकार देना विश्वविद्यालय में मौजूद आला अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.

वहीं प्रोफेसर अश्विनी ने कहा कि सभी संस्थानों को हर तरह की स्वायत्तता दी जाती है, जिससे वो शिक्षा संस्थान बिना किसी भी भेदभाव के चला सकें. ऐसे में एमएचआरडी द्वारा विश्वविद्यालय की समस्याओं को सुलझाने के लिए बाहरी सदस्यों की समिति का गठन करने से संस्थान की स्वायत्तता का भी हनन होता है.

उन्होंने कहा कि जिस समस्या को सुलझाने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया उस समस्या का आरंभ भी यूजीसी द्वारा जारी किए गए पत्र से हुआ है. उन्होंने बताया कि यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को पत्र जारी कर सूचित किया था कि मेस में कॉन्ट्रैक्ट पर जो भी कर्मचारी लगाए जाएंगे उनका भुगतान यूजीसी वहन नहीं करेगी, उसका खर्चा विश्वविद्यालय खुद संभाले.

'यूजीसी को कार्यपद्धति सुधारने की जरूरत'

वहीं डीन के साथ हुई बैठक में उच्च स्तरीय समिति के प्रतिनिधि इस बात से मुकर जाते हैं और कहते हैं कि विश्वविद्यालय ने फंड मांगा ही नहीं. इसलिए पहले यूजीसी को अपनी कार्यपद्धति सुधारने की जरूरत है, फिर वो विश्वविद्यालय में सुधार की कोशिश करे.

उन्होंने कहा-

एक बार ये समिति गठन की परंपरा शुरू हो गई तो कभी भी कोई भी समस्या खड़ी होगी तो सभी विश्वविद्यालयों में अलग से समिति का गठन होने लगेगा, जो छात्रों और विश्वविद्यालय में मौजूद आला अधिकारियों के लिए चिंता का सबब बन सकता है.

जेएनयू के शिक्षकों ने किया विरोध

बता दें कि एमएचआरडी द्वारा छात्रों की समस्या सुलझाने के लिए गठित की गई तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का जेएनयू के शिक्षकों ने विरोध किया है और कहा है कि विश्वविद्यालय परिसर की समस्या के लिए बाहरी सदस्यों की समिति का गठन कर एमएचआरडी विश्वविद्यालय की स्वायत्ता छीनने की कोशिश न करे.

Intro:नई दिल्ली ।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए एमएचआरडी ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. वहीं स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने इस समिति के गठन पर सवाल उठाएं हैं. उन्होंने कहा कि एमएचआरडी द्वारा इस तरह की समिति का गठन विश्वविद्यालय में उपस्थित शिक्षकों, कुलपति आदि प्रशासनिक अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.



Body:जेएनयू में नए हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस के रोलबैक को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों की समस्या सुलझाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है. वहीं इसको लेकर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने कहा कि विश्वविद्यालय में उठे छात्रों के विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग से समिति का गठन करने कोई हल नहीं होता है. उन्होंने कहा कि छात्रों की समस्या सुलझाने में सक्षम प्रशासनिक अधिकारी विश्वविद्यालय में मौजूद होते हैं. ऐसे में बिना किसी की सहमति के एमएचआरडी द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर केवल उसके सदस्यों को इसका अधिकार देना विश्वविद्यालय में मौजूद आला अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.

वहीं प्रोफेसर अश्विनी ने कहा कि सभी संस्थानों को हर तरह की स्वायत्तता दी जाती है जिससे वह शिक्षा संस्थान बिना किसी भी और भेदभाव के चला सकें. ऐसे में एमएचआरडी द्वारा विश्वविद्यालय की समस्याओं को सुलझाने के लिए बाहरी सदस्यों की समिति का गठन करने से संस्थान की स्वायत्तता का भी हनन होता है.

वहीं उन्होंने कहा कि जिस समस्या को सुलझाने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया उस समस्या का आरंभ भी यूजीसी द्वारा जारी किए गए पत्र से हुआ है. उन्होंने बताया कि यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को पत्र जारी कर सूचित किया था कि मेस में कॉन्ट्रैक्ट पर जो भी कर्मचारी लगाए जाएंगे उनका भुगतान यूजीसी वहन नहीं करेगी, उसका खर्चा विश्वविद्यालय खुद संभाले. वहीं डीन के साथ हुई बैठक में उच्च स्तरीय समिति के प्रतिनिधि इस बात से मुकर जाते हैं और कहते हैं कि विश्वविद्यालय ने फंड मांगा ही नहीं. इसलिए पहले यूजीसी को अपनी कार्यपद्धति सुधारने की जरूरत है फिर वो विश्वविद्यालय में सुधार की कोशिश करे. उन्होंने कहा कि एक बार यह समिति गठन की परंपरा शुरू हो गई तो कभी भी कोई भी समस्या खड़ी होगी तो सभी विश्वविद्यालयों में अलग से समिति का गठन होने लगेगा जो छात्रों और विश्वविद्यालय में मौजूद आला अधिकारियों के लिए चिंता का सबब बन सकता है.




Conclusion:बता दें कि एमएचआरडी द्वारा छात्रों की समस्या सुलझाने के लिए गठित की गई तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का जेएनयू के शिक्षकों ने विरोध किया है और कहा है कि विश्वविद्यालय परिसर की समस्या के लिए बाहरी सदस्यों की समिति का गठन कर एमएचआरडी विश्वविद्यालय की स्वायत्तता छीनने की कोशिश न करे.
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