नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूसा (Indian Agricultural Research Center Pusa) ने सीडलेस (बीजरहित) खीरे की एक ऐसी वेरायटी तैयार की है, जो खीरा उत्पादक किसानों को मालामाल कर देगी. डीपी 6 नामक सीडलेस खीरे के बीज से 45 दिनों के भीतर खीरे का पैदावार संभव होगा. इसका एक पौधा कम से कम तीन साढ़े तीन महीने तक फल देगा. उसके बाद किसान दोबारा नया पौधा लगा खीरे का उत्पादन शुरू कर सकता है.
भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूसा के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. प्रवीण कुमार सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि अब किसान सालभर बीजरहित खीरे की खेती आराम से कर सकते हैं. इसकी खासियत यह है कि इसकी बेल पर लगने वाले हर फूल पर फल (खीरे) लगेंगे जिससे पैदावार में काफी वृद्धि हो जाएगी. इसकी खेती के लिए पॉलीहाउस का होना जरूरी है. पॉलीहाउस में लगाई जाने वाली खीरे की इस वैरायटी को तैयार करने में कई साल लग गए.
इस वैरायटी की खासियत यह है कि इसके खीरे में न तो बीज है और न ही कड़वापन. इस खीरे को बिना छीले ही खाया जा सकता है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी बेल की हर गांठ में मादा फूल होते हैं. जितने ज्यादा मादा फूल होंगे, उतने ही ज्यादा खीरे लगेंगे. एक किसान 1000 वर्गमीटर में अगर इस खीरे की खेती करता है तो इतने जगह में 4000 पौधे (बेल) लगाए जा सकते हैं. एक बेल में करीब 3.5 किलो खीरे का पैदावार होता है. डॉ. सिंह बताते हैं कि सामान्य खीरे की वैरायटियों की बेलों में नर व मादा फूल आते हैं और नर फूलों के मुकाबले मादा फूलों की संख्या कम होती है. यहीं नहीं, इस नई वैरायटी में मादा फूल से खीरे का फल बनने के लिए किसी तरह के पर परागण की आवश्यकता भी नहीं है.
ये भी पढ़ें: आरएसएस से जुड़े संगठनों ने किया जीएम सरसों बीज प्रस्ताव का विरोध, पर्यावरण मंत्री को लिखा पत्र
साल में चार बार ले सकते हैं फसल: डॉ. प्रवीण कुमार सिंह के अनुसार पहले इस बीजरहित खीरे की पंजाब वन वैरायटी से साल में दो बार खेती हो सकती थी. अब दिल्ली पूसा (डीपी 6) वैरायटी को साल में चार बार लगाया जा सकता है. एक बार लगाई गई फसल 45 दिन बाद तैयार हो जाती है. यह देसी खीरा के एक लत में दो से ढाई किलो उत्पादन होता है. क्योंकि उसमें नर फूल ज्यादा और मादा फूल कम होते हैं. वहीं इस बीज रहित खीरा में प्रति लत 3 से 4 किलो तक उत्पादन होता है. इसमें सिर्फ मादा फूल होते हैं. थोड़ा संवेदनशील होने या बीमारी जल्द लगने के कारण इसकी खेती फिलहाल पॉली हाउस में संभव है. इससे सालों भर उत्पादन पाया जा सकता है.
ऐसा खीरा जिसे नहीं होता छीलना: इस खीरे का छिलका काफी पतला होता है, इसलिए इसे छीलने की जरूरत नहीं होती. इसे छिलका सहित खाया जा सकता है. इसमें कड़वाहट नहीं होता है, इसलिए इसे किनारे से काटकर निकालने की जरूरत नहीं होती है.
अब किसानों को होगी ज्यादा कमाई: डॉ. प्रवीण कुमार सिंह बताते हैं कि इस खीरे की कीमत सामान्य खीरे से 10-15 रुपये किलो अधिक होती है, जिस कारण इसकी खेती काफी फायदेमंद होगी. यह बड़े-बड़े होटलों में भी परोसा जाता है, इसलिए भी इसकी कीमत किसानों को ज्यादा मिलती है.
सेहत के लिए भी ज्यादा फायदेमंद: इस खीरा में छिलका नहीं छीलने की वजह से यह खाना ज्यादा फायदेमंद होता है. छिलका में ज्यादा क्लोरोफिल और एंटी ऑक्सिडेंट का गुण होता है. छिलका में आयरन, फॉस्फोरस के साथ फाइबर मिलता है. डॉ. सिंह ने बताया कि इजरायल सहित यूरोपियन देशों में यह वेरायटी होती है, लेकिन यहां लगी वेरायटी में कुछ अन्य बदलाव किए गए हैं. यहां के लोग देसी खीरा को पसंद करते हैं, इसलिए इस गहरे हरे रंग के खीरा के रंग को और हल्का, खुशबुदार और थोड़ा कांटा जैसा करने का प्रयास किया गया है. इससे इसकी मांग और बढ़ जाएगी और किसानों को ज्यादा फायदा होगा.
पूसा से किसान ले सकते हैं बीज: पूसा इंस्टीट्यूट से बीजरहित खीरे की खेती के लिए तैयार बीज किसान सब्जी विज्ञान विभाग में जाकर इस किस्म का बीज ले सकते हैं. इसके लिए दो रुपये प्रतिबीज देनी होगी. जिनके पास पॉलीहाउस है, उनके एक एकड़ में बीज पर तकरीबन 20 हज़ार रुपये खर्च होंगे.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप