नई दिल्ली: एक लंबे संघर्ष के उपरान्त बीजेपी की राजनीति के केन्द्र बने अरूण जेटली अब नहीं रहे. पिछले कुछ दिनों से उनकी स्थिति गंभीर बताई जा रही थी. परन्तु भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को दृढ विश्वास था कि बहुत जल्द वह अपने ब्लॉग के माध्यम से देश की जवलंत समस्या पर चिरपरिचित कटाक्ष करते नजर आएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
दिल्ली से जेटली युग समाप्त
पिछले डेढ दशक में पक्ष-विपक्ष के आभामंडल में चमकते नजर आने वाले जेटली ने यह मुकाम एक लंबे संघर्ष एवं लगातार भुगतती उपेक्षा पर विजय प्राप्त कर पाया है. अब उनके निधन से देश के साथ-साथ दिल्ली से जेटली युग भी समाप्त हो गया.
सांसद विधायक बनने से चूक गए थे जेटली
साल 1974 में वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने, देश में आपतकाल लगा तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. आपतकाल के समापन के उपरान्त जनता पार्टी के बैनर तले ‘कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा - भानुमती ने कुनबा जोड़ा', की तर्ज पर बहुत सारे लोग सांसद और विधायक बन गए, अरूण जेटली 25 वर्ष से कम आयु होने के कारण चूक गए थे.
उपेक्षा और संघर्ष का एक लंबा दौर
जनता पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नियुक्त किया जिस पर जनता पार्टी के जनसंघ मूल के दिल्ली की तत्कालीन त्रिमूर्ति ने प्रतिवाद भी किया था.
जनता पार्टी के विघटन के उपरान्त 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी का गठन हुआ. जेटली कुछ समय दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे. उसके बाद उपेक्षा और संघर्ष का एक लंबा दौर शुरू हुआ.
पार्टी में भले ही उन्हें स्थान न दिया जाता रहा हो पर महानगर परिषद हो या लोकसभा चुनाव जेटली को आग्रह करो और चुनावी मंच पर वह कांग्रेस पर तीखा प्रहार करते नजर आते थे. अरूण जेटली भारतीय जनता पार्टी ही नहीं देश भर के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं जो हिन्दी व अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोल सकते हैं, विचार व्यक्त कर सकते हैं.
मुख्यधारा से वंचित रखा गया
सालों तक जेटली बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्षों वाजपेयी जी, आडवाणी जी एवं जोशी जी को पत्र लिख कर अपने मन की बात प्रकट करते रहे पर कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला, अरूण जेटली की काबलियत दरकिनार होती रही एवं उन्हें बीजेपी की मुख्यधारा से वंचित रखा गया.
साल 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह नीत जनमोर्चा सरकार बनी, उस सरकार में ताकतवर हो कर उभरे अरूण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान के प्रयास से साल 1989 में जेटली को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया.
दो दशक के संघर्ष के बाद बीजेपी के संगठन में मिला दायित्व
साल 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तब बीजेपी के लगभग सभी महामंत्री और प्रमुख नेता केन्द्रिय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए तब कार्यकर्त्ता के नाते दो दशक के संघर्ष के बाद पहली बार अरूण जेटली को बीजेपी के संगठन में दायित्व मिला, उन्हें पार्टी का महामंत्री नियुक्त किया गया था.
इसके बाद उन्होंने पीछे मुडकर नहीं देखा, अक्टूबर 1999 को वाजपेयी सरकार में उन्हें सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया.
जुलाई 2000 में राम जेठमलानी की जूडीशरी से तनातनी के चलते कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया, बाद में नवंबर 2000 में कैबिनेट मंत्री बना एक साथ कानून, न्याय और कंपनी मामलों और जहाजरानी मंत्री का पदभार दिया गया.
आज के दर्जनों सक्रिय नेता अरुण जेटली के शागिर्द
जून 2009 को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया था. नरेन्द्र मोदी में प्रधानमंत्री बनने की क्षमता को पहचान अरूण जेटली उनके साथ जुट गए और केन्द्र में सरकार बनने के उपरान्त ताकतवर बन कर उभरे. दिल्ली की राजनीति में आज दर्जनों सक्रिय नेता अरुण जेटली के शागिर्द राजनीति में प्रवेश किए और आज पार्टी में अहम भूमिका निभा रहे हैं.