नई दिल्ली: दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में गिरफ्तार महिला कार्यकर्ता देवांगना कलीता को जमानत दे दी. ड्यूटी मजिस्ट्रेट अभिनव पांडेय ने कहा कि अब तक की जांच से ऐसा कुछ भी पता नहीं चलता है कि आरोपी के खिलाफ शासकीय काम में बाधा डालने या हिंसा करने का आरोप बनता है.
जांच में अपराध साबित नहीं हो पाया
कोर्ट ने कहा कि देवांगना कलीता ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया था, लेकिन जांच में अभियोजन पक्ष ये साबित नहीं कर सका है कि उसकी भूमिका शासकीय काम में बाधा डालने की थी. कोर्ट ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज से ये पता नहीं चल रहा है कि आरोपी किसी हिंसक कार्रवाई में शामिल थी. आरोपी के पास से जब्त लैपटॉप और फोन से वैसा कुछ नहीं मिला जो अपराध की श्रेणी में आता हो.
जांच में सहयोग करने का निर्देश
कोर्ट ने कहा कि ये आगे की जांच में पता चलेगा कि आरोपी ने भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने का काम किया है या वो शुरू में शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल हुई है, लेकिन वो बाद में हिंसक हो गया. कोर्ट ने कहा कि आरोपी जेएनयू से एमफिल कर रही हैं और उसका पहले कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं रहा है. कोर्ट ने देवांगना कलीता को जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने देवांगना कलीता को अपना पासपोर्ट कोर्ट में सरेंडर करने का निर्देश दिया.
उकसाने का आरोप
पिछले 24 मई को देवांगना कलीता और उसकी सहयोगी नताशा नरवाल को कोर्ट ने पहले एक मामले में जमानत दे दी और बाद में दूसरे मामले में दो दिनों की पुलिस रिमांड पर भेज दिया था. दोनों पर आरोप है कि उन्होंने पिछले 22 फरवरी को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास सड़क जाम करने के लिए लोगों को उकसाया था. बता दें कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे और करीब दो सौ लोग घायल हो गए थे.