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भेड़ों की ऊन से सिर्फ कपड़े ही तैयार नहीं होते, इन खासियतों को जानकर हो जाएंगे हैरान - Exhibition of items made from wool

Craft Exhibition on desi oon: देसी ऊन को प्रमोट करने के लिए राजधानी के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में ऊन से बनने वाली चीजों की प्रदर्शनी लगाई गई है. इस प्रदर्शनी में 6 अलग अलग राज्यों से आए लोगों ने हिस्सा लिया है.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 11, 2023, 12:50 PM IST

ऊन से बनने वाली चीजों की प्रदर्शनी

नई दिल्ली: भेड़ों की आबादी के मामले में भारत का दुनियाभर में तीसरा स्थान है. वर्तमान में देश में भेड़ों की संख्या 80 मिलियन के करीब हैं. इसके चलते भारत में प्रति वर्ष 32 मिलियन किलो ऊन का सृजन होता है. इसपर सेंट्रल फॉर पस्तोरालिज्म के सदस्य बसंत सबरवाल का कहना है कि भारत में छोटे स्टेपल की ऊन बनाई जाती है. वहीं, जो भी ऊनी कपड़े तैयार किए जाते हैं वह लंबी स्टेपल से बनते हैं. इसलिए भारत में विदेशों से ऊन का आयात भी किया जाता है.

बसंत ने बताया कि, "ज्यादातर लोगों का मानना है कि ऊन से केवल कपड़े ही तैयार किए जा सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. ऊन की खासियत होती है कि वह एक इंसुलेंट की तरह काम करता है. वो गर्मी और सर्दी दोनों को बाहर रखता है. घरों में पानी गर्म करने वाली कैटल से लेकर AC और कार में इंसुलेशन की जरूरत होती है. फिलहाल, आजकल इनसुलेशन के लिए ग्लास फाइबर और रॉक फाइबर का किया जाता है. वहीं इसकी जगह ऊन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. इससे पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है.

बता दें कि राजधानी के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में देसी ऊन हब द्वारा ऊन से बनने वाली तमाम चीजों की प्रदर्शनी लगाई गई है. जो आगामी 11 दिसंबर तक रहेगा. देसी ऊन हब के सदस्य राहुल निर्मल सिंह ने बताया कि यह प्रदर्शनी मुख्य रूप से देसी ऊन को प्रमोट करने के लिए लगाई गई है. भारत में निर्मित होने वाली 80 फीसदी ऊन का इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहा है. इस प्रदर्शनी के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि ऊन का इस्तेमाल इंसुलेशन, पैकिंग, साउंडप्रूफिंग आदि में किया जा सकता है. इस प्रदर्शनी में 6 अलग अलग राज्यों से आए लोगों ने हिस्सा लिया है.

ऊन से बनने वाली चीजों की प्रदर्शनी

नई दिल्ली: भेड़ों की आबादी के मामले में भारत का दुनियाभर में तीसरा स्थान है. वर्तमान में देश में भेड़ों की संख्या 80 मिलियन के करीब हैं. इसके चलते भारत में प्रति वर्ष 32 मिलियन किलो ऊन का सृजन होता है. इसपर सेंट्रल फॉर पस्तोरालिज्म के सदस्य बसंत सबरवाल का कहना है कि भारत में छोटे स्टेपल की ऊन बनाई जाती है. वहीं, जो भी ऊनी कपड़े तैयार किए जाते हैं वह लंबी स्टेपल से बनते हैं. इसलिए भारत में विदेशों से ऊन का आयात भी किया जाता है.

बसंत ने बताया कि, "ज्यादातर लोगों का मानना है कि ऊन से केवल कपड़े ही तैयार किए जा सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. ऊन की खासियत होती है कि वह एक इंसुलेंट की तरह काम करता है. वो गर्मी और सर्दी दोनों को बाहर रखता है. घरों में पानी गर्म करने वाली कैटल से लेकर AC और कार में इंसुलेशन की जरूरत होती है. फिलहाल, आजकल इनसुलेशन के लिए ग्लास फाइबर और रॉक फाइबर का किया जाता है. वहीं इसकी जगह ऊन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. इससे पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है.

बता दें कि राजधानी के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में देसी ऊन हब द्वारा ऊन से बनने वाली तमाम चीजों की प्रदर्शनी लगाई गई है. जो आगामी 11 दिसंबर तक रहेगा. देसी ऊन हब के सदस्य राहुल निर्मल सिंह ने बताया कि यह प्रदर्शनी मुख्य रूप से देसी ऊन को प्रमोट करने के लिए लगाई गई है. भारत में निर्मित होने वाली 80 फीसदी ऊन का इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहा है. इस प्रदर्शनी के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि ऊन का इस्तेमाल इंसुलेशन, पैकिंग, साउंडप्रूफिंग आदि में किया जा सकता है. इस प्रदर्शनी में 6 अलग अलग राज्यों से आए लोगों ने हिस्सा लिया है.

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