नई दिल्ली: उर्दू के चाहने वालों के लिए मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में जश्न मन रहा है. यहां देशभर के उर्दू और हिन्दी जुबान के मशहूर शायर और लेखक हिस्सा ले रहे है. वो अपने अपने ढंग से भाषाओं और बोलियों का प्रचार प्रसार कर रहे हैं. दिल्ली समेत देशभर के लिखने-पढ़ने वाले जश्न-ए-रेख्ता के प्रोग्राम में पहुंच रहे हैं. इस बार यहां एक प्रदर्शनी भी लगाई गई है, जिसमें उर्दू की प्राचीन धरोहर किताबों को भी रखा गया है.
रेख्ता फाउंडेशन में डिजिटलाइज्ड डिपार्टमेंट के हेड डॉ. हैदर अली ने बताया कि जश्न-ए-रेख्ता कार्यक्रम में बहुत पुरानी किताबों को प्रदर्शित किया गया है. यहां आने वाले लोग इन किताबों को देखकर उर्दू समझ रहे हैं. अब तक हुए जश्न-ए-रेख्ता में ऐसा कार्यक्रम नहीं देखा होगा. दुनियाभर की किताबों को स्कैन कर रहे हैं. 56 लोकोशन पर मशीनें लगी हैं, जहां किताबें स्कैन हो रही हैं. नायाब किताबों को स्कैन करके पब्लिश किया है. बहुत सारी किताबें ऐसी हैं, जो हमें डोनेट की गई हैं. उसी के जरिए हमें कुछ मख्तुतात मिले. इसमें अजाब-ए-फिरंग है. ये हिन्दुस्तान का पहला सफरनामा है.
उन्होंने बताया कि यहां उर्दू में श्रीमद् भागवत गीता भी है. उर्दू तर्जुमे में वाल्मीकि की रामायण भी है. इसे लोग पहले पढ़ा करते थे. हिन्दुओं के घरों में उर्दू में रामायण, महाभारत, हनुमान चालीसा पढ़ी जाती थी. ये तमाम किताबें दुनियाभर से गायब हो चुकी है. मगर, रेख्ता में ये कई किताबें मौजूद है. हमारी साइट पर भी ये पुस्तकें हैं. लाइब्रेरी में भी फिजिकल रूप में कुछ चीजों को रखा गया है.
किताबों का डिजिटाइजेशन : डॉ. हैदर अली ने बताया कि रेख्ता बड़ी दिललगी के साथ किताबों का डिजिटाइजेशन कर रही है. दुनिया के लोगों के सामने पेश कर रहे हैं. पहली बार जश्न-ए-रेख्ता में इस तरह की किताबें लगाई हैं. हमारे पास तकरीबन 10 हजार किताबें हैं, उसमें चुनिंदा, अहम और नायाब चीजों को इकट्ठा करके यहां रखा है. वाल्मीकि रामायण, दीवान-ए-नासिफ, अजाब-ए-फिरंग, अबु फजल, अलीफ लैला, खुर्यात, गालिब जैसी कई किताबें हैं. यहां लोग आ रहे हैं और रेख्ता के काम को सराह रहे हैं. युवा लोग काफी देख रहे हैं. प्रदर्शनी में तीनों जुबान में किताबों के बारे में जानकारी दी है. उर्दू के साथ हिन्दी और अंग्रेजी में डिटेल दी है. ताकि लोग पढ़कर समझ सके और महसूस कर सकें.
स्कैन करने वाली मशीन से भी किताबें देख रहे लोग : हैदर अली ने यह भी बताया कि प्रदर्शनी में स्कैनर लगाया है. इसे मोबाइल से स्कैन करेंगे, तो साइट पर ऑनलाइन पढ़ सकते हैं. कभी भी किसी भी वक्त ये पुस्तकें पढ़ सकते हैं. यहां दो मशीनें लगा रखी हैं, जिनसे किताबें स्कैन होती हैं. इसे भी लोग समझ रहे हैं. यहां तो लोग किताबें डोनेट नहीं कर रहे हैं, फिर भी सभी से अपील करते हैं कि आपके घर में उर्दू की पुरानी किताबें हैं और महसूस हो रहा है कि उसकी कोई सेवा नहीं कर रहा है, तो उसे हमें डोनेट कर सकते हैं. हम उसे संजोकर रखेंगे. दुनियाभर के किताब प्रेमियों को फ्री में पढ़ने का मौका देंगे.
उन्होंने कहा कि हमने यहां अमीर खुसरो की किताब भी रखी है. पुराने जमाने में कैमरे नहीं होते थे. उस जमाने में एक कोट होता था, उससे तस्वीरों को छापते थे. नवल किशोर की 1720 से 1820 तक जो भी किताबें मिलती हैं, वो इसी शक्ल में हैं. इसे छापा खाने में रखकर छापते थे. इसे हमने मुंशी नवल किशोर के पोते से बाकायदा पैसे देकर खरीदा है. इसे यादगार के तौर पर संजो कर रखा है. ताकि आज के नौजवानों को जानकारी मिले.
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