पेश है ईटीवी भारत दिल्ली के स्टेट हेड विशाल सूर्यकांत से सीमा कुशवाहा की खास बातचीत-
सवाल- निर्भया केस में जो फैसला लिया गया, उसने सजा के लिहाज से एक इतिहास रचा था और इस इतिहास को रचने में आपका एक अहम योगदान रहा है. आज इस जर्नी को जब आप पीछे मुड़कर देखती हैं तो क्या विचार अपके मन में आते हैं?
जवाब- उन 6 अपराधियों ने जिस तरीके से निर्भया के साथ जो हैवानियत की थी. जिनमें से चार को सजा दी गई थी. इस फैसले से मुझे संतुष्टि हुई, कि कम से कम बेटी ने जो चाहा था कि इन्हें जिन्दा जलाया जाए, लेकिन वो प्रावधान नहीं है, फांसी की सजा का प्रावधान आईपीसी में है, जिसके तहत उनको सजा दी गई. लेकिन दर्द अभी भी कम नहीं हुआ है.
आज का जो दिन है 16 दिसंबर, इस दिन को लेकर मन में एक ख्याल आता है, काश हमारी बेटी जिन्दा होती. मैं उन दोषियों को फांसी ना दिलाती, तो बहुत सारे सवाल खड़े हो जाते हैं कि इंसान की एक नेचुरल डेथ होती है, इंसान किसी बीमारी से मरता है, लेकिन इस तरह की डेथ किसी की और वो भी हमारे देश में जहां हम कहते हैं कि हमारे यहां स्त्रियां देवी के समान पूजी जाती हैं.
8:30 बज रहे थे, दिल्ली की सड़क जो हमारी राजधानी कही जाती है. वहां एक घंटे तक उस बेटी को रौंदा गया. उसके शरीर के हिस्सों को तहस नहस किया गया. तो इतने सारे सवाल हैं कि आखिर यह माहौल ऐसा क्यों है? ऐसे क्राइम हो क्यों रहे हैं? हम कितने लोगों को सजा दिलाएंगे? क्या कानून के माध्यम से इसे रोका जा सकता है? क्या समाजिक बदलाव कि आवश्यकता नहीं है?
सवाल- सामाजिक प्रवृत्ति, महिलाओं के तरफ देखने का नजरिया, या लचर कानून. किसे आप एक मुख्य कारण मानती हैं? जिसकी वजह से आज भी ऐसी घटनाएं नहीं रुक रहीं हैं?
जवाब- अगर हम देखें तो दोनों ही इस समस्या के कारण है. क्योंकि जो कानून का ढांचा है वो इसी समाज का है और ये समाज एक पुरुष प्रधान समाज है और ऐसे अपराध केवल रास्तों पर नहीं बल्कि घर के अंदर भी हो रहें हैं. एक केस का मैं उदाहरण दूं, जहां एक स्त्री का रेप उसके जेठ ने किया था और उसके पति को ये बात पता थी. ऐसे केस में तो मानसिकता को ही दोष दिया जा सकता है.
एक तरह से ये कानून की विफलता ही है कि हम ऐसी मानसिकता को बदल नहीं पा रहें हैं. लेकिन जो लोग सिस्टम को अपने हिसाब से मेनुपुलेट करते हैं, तो उनके लिए तो समाजिक मानसिकता ही मुख्य कारण है. न्यायपालिका हो या पुलिस, ये उसी समाज से आते हैं, जहां से ये सारे अपराधी आते हैं.
इसलिए 16 दिसंबर के बाद हमने वर्मा कमीशन लाया जो आज तक लागू नहीं किया गया. हमने आईपीसी, सीपीसी, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव किया लेकिन आज तक उन्हें लागू नहीं किया गया. यही वजह है कि आज तक लोगों के सोच में ना बदलाव आया और ना ही अपराधियों में डर देखें गए है.
सवाल- कानून को सख्त बनाने से ये समाज के अंदर विभेद पैदा करेंगे, साथ ही लोगों का मानना है कि इसका दुरुपयोग भी बढ़ जाएगा. ये सारी बातें कहा तक सही हैं?
जवाब- अगर किसी भी केस का कनविक्शन रेट ज्यादा है तो वो केस कम होने चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है. क्योंकि कई केस में सेटलमेंट कर दिए जाते हैं. जिससे कि अपराधी के मन में डर नहीं रहता. जो आगे चलकर ऐसे कई अपराध करता है. हमारे कानून के अनुसार रेप केस में फांसी नहीं दी जाती है. रेप और हत्या के बाद ही हमारा कानून फांसी की सजा देता है.
अगर रेप करने के 6 महीने के अंदर ही अपराधी को सजा मिलती है, तो रेप के केस में कमी आ सकती है. लेकिन हम यहीं फैल हो जाते हैं. हम सॉल्यूशन से ज्यादा ओपिनियन पर ध्यान देते हैं. जहां 2 साल की सजा होनी चाहिए, वहां केस 10 साल कोर्ट मे चलता है और अपराधी बेल पर बाहर होता है.
सवाल- नेताओं के विचार हमारे समाज के विचार को प्रभावित करते रहे हैं. और ऐसे मामलों में नेता भी अक्सर संवेदनहीन विचार रखते दिखे हैं. निर्भया केस के बाद आप इसे कैसे देखती हैं?
जवाब- एक नेता को सुनने वाले, उनका कहा मानने वाले कई लोग होते हैं. वो जो भी कहते हैं या करते हैं, उसे मानने वाले भी यह मान बैठते हैं कि वो भी ऐसा कर सकते हैं. पार्लियामेंट में कानून बनाना और उससे अलग जनता में अपनी सोच रखना, दो अलग बात हैं. और जब बात ही अलग होगी तो कानून बन तो जाएंगे लेकिन इसे मानने वाला कोई नहीं होगा.
उत्तर प्रदेश के सपा संसाद आजम खान अभिनेत्री और राजनीतिज्ञ जयाप्रदा के लिए भद्दे शब्दों का प्रयोग करते हैं. जाने- माने लोग अपनी महिला सहकर्मी के साथ गलत व्यवहार करते हैं, और पुलिस रेप करते हैं. कानून बनाने वाले से लेकर इसे लागू करवाने वालों तक ऐसी ही दशा है. तो कानून का डर कैसे मुमकिन है? केवल अपने काम के प्रति ईमानदारी ही ऐसी घटनाओं का समाधान है.
सवाल- महिला आयोग को सशक्त करने की मांग को लेकर आपकी क्या राय है?
जवाब- देश में कई महिला आयोग संगठन ऐसे हैं, जो पॉलिटिक्स से प्रभावित हैं. जिसकी वजह से वो अपना काम ईमानदारी से नहीं पूरा करती है. 2017 में मेरी मुलाकात राजनाथ सिंह से हुई थी, जो उस वक्त गृह मंत्री थे. मैंने उनके सामने महिला सुरक्षा गारंटी अधिनियम पास करने की बात रखी थी. जिसमें सरकार पीड़ित महिला को गारंटी देती कि वो उसकी हर तरीके से मदद करेगी. लेकिन उस वक्त इस अधिनियम को पास नहीं किया जा सका.
सवाल- कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बना था, दहेज के विरुद्ध अपराधों के लिए बना था, दहेज खत्म नहीं हुआ और यह भी शिकायतें आती हैं कि कानून का दुरुपयोग हो रहा है, इन अपराधो को लेकर आपकी राय.
जवाब- दुरुपयोग हो रहा है इन कानून का, इन्हें रोकना सबसे ज्यादा जरूरी है. लेकिन सबसे ज्यादा जिम्मेदारी हमारी जांच एजेंसियों की है. जितना ये एक्टिव होंगे, जितने अच्छे तरीके से यह काम करेंगे, उससे ही तय हो जाएगा कि कौन सही है और कौन गलत है. मगर हमारी एजेंसियों के पास टेक्नोलोजी नहीं है, वो संवेदनशील भी नहीं हैं, सुविधाएं भी नहीं मिलती, इनकी वजह से जो फैसले लिए जाने चाहिए, वो नहीं लिए जातें.
जैसे कई केस ऐसे भी आ चुकें हैं जहां, जिस लड़की ने केस किया है वो स्ट्रोग फैमिली बैकग्राउंड से है, वो पैसे देकर भी झूठा केस करवा देती है. यहां फिर से सिस्टम कमजोर हो जाता है. और सिस्टम पर सवाल खड़े हो जाते हैं.
सवाल- कानून को आपने बारिकी से देखा है, कुछ ऐसे ही मामले हैं जो महिला विरुद्ध अपराधों को बढ़ाते हैं, मसलन पोर्न साइट्स, जिसका कोई चैक बेलेन्स नहीं है. कभी कभी देश की सरकारें अपना टेक लेती है, लेकिन व्यापक रूप से नहीं. क्या कहेंगी इस पर...
जवाब- आपके पहले सवाल से मैं पूरी तरह से सहमत हूं, जितनी पोर्न साइड्स आज आसानी से उपलब्ध हैं, हमारे बच्चें इस तक आसानी से पहुंच रहें हैं और भर्मित हो रहें हैं.
कारण?
बच्चों को हमनें सेक्स एजुकेशन नहीं दी है. वो नेट के माध्यम से ऐसी चीजें देख रहे हैं, जिनके बारे में उन्हें मालूम नहीं है, जो बातें उनके माइड में जा रही है, वो उनके हाथों से अपराध करवाएंगे. इसलिए इनका रेग्यूलेशन ठीक से होना चाहिए. स्ट्रिक्ट लॉ बनने चाहिए.
आज बच्चे अपना मेल आईडी आराम से बना सकते हैं. इसमें उन्हें अपनी सही जानकारी देने की जरुरत नहीं हैं. इस पर ध्यान देनें की जरुरत है. आजकल बच्चों को पता है कि किस टेक्नोलॉजी का किस तरह इस्तेमाल करना है. मसलन, सही और गलत दोनों तरिके से वो वाकिफ है. क्योंकि, जो समाज बच्चों से छुपाता है, बच्चे उसकी ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं.
इसीलिए मैं यह मानती हूं कि सख्त कानून और उसे अमल कराने वाला सख्त सिस्टम बनें. क्योंकि ऐसा नहीं हुआ तो इन पोर्न साइड्स और अन्य ऐसी साइट्स देखने वालों की गलत मानसिकता बनेगी और वो ऐसे ही अपराध करेंगे.
सवाल- लिव इन रिलेशनशिप, एलजीबीटी जैसे कानून पर क्या कहेंगी...समाज खुले रूप में इसे नहीं स्वीकार रहा, लेकिन कानून लागू है, ऐसे में समाज और कानूनी प्रावधान टकराव की स्थितियों मे आ जाते हैं.
जवाब- लिव इन रिलेशनशीप में एक एडल्ट पर्सन ने तय किया कि वो लिव इन में रहना चाहता है. उस पर यह भी बाध्यता नहीं है कि वो मैरिड है या नहीं. अगर इस कानून में एक मैरिड और एक अनमैरिड कपल है तो, एक घर टूट रहा है. लिव इन और शादी के कानून दोनों अलग स्थितियां हैं. लेकिन लिवइन एक तरह से एक्स्ट्रा मेरिटल की अनुमति भी देता है. यह कानून गैर शादीशुदा लोगों के लिए बनना चाहिए था.
दुनिया में ऐसे कानून तब लाए गए जब उन देशों में समाज विकसित हुआ, लोगों ने प्रोग्रेसिव माइंड डिवेलप किए. तब ऐसे कानूनों को लोगों के बिच प्रयोग किया गया. और जब ये प्रयोग सफल हुए तब इसे लोगों के बिच लाया गया.
ग्लोबलाइजेशन में हमनें उनकी सोसाइटी की कुछ चीजों को एक्सपेरिमेंट के बिना ही लागू कर दिया. इसे प्रोग्रेसिव लॉ कहा गया. लेकिन, इसका नुकसान ज्यादा और लाभ हमें कम मिला है. लीवइन रिलेशनशिप एक ट्रांसफॉर्मेशन पीरियड से गुजर रहा है. हमनें कानून को लिबरल किया, लेकिन सोसायटी लिबरल नहीं हो रही है.
आप ऐसा एजुकेशन नहीं दे रहे हैं, जिससे लोग प्रोग्रेसिव माइंड डिवेलप करें. आपका सिस्टम उतना विकसित नहीं है. तब तो यह समस्या हमेशा बनी रहेंगी. हमें सारी चीजों को पूरी तरह से बदलना होगा, तब लिव इन जैसे कानून कारगर होंगे.
हम प्रोग्रेसिव लॉ के नाम पर ऐसी चीजें ला रहे हैं, जहां हमारा समाज इसके लिए तैयार ही नहीं है. और हमें ऐसे कानूनों का लाभ नहीं मिल पाता है. इन्हीं सारी चीजों की वजह से हम फॉल्स केस झेलते हैं.