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'अर्थशास्त्री के रूप में डॉ. अंबेडकर और महात्मा गांधी के विचार प्रासंगिक' - Ambedkar and Mahatma Gandhi views

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों का मानना है कि अंबेडकर विशुद्ध रूप से थे अर्थशास्त्री-महात्मा गांधी का था ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर जोर

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Published : Jun 15, 2023, 9:30 AM IST

Updated : Jun 15, 2023, 10:27 AM IST

नई दिल्लीः दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) अपने पाठ्यक्रम में डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी को एक अर्थशास्त्री के रूप में शामिल करने जा रहा है. डीयू के छात्र अब अंबेडकर और गांधी के भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में व्यक्त किए गए विचारों और विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत का क्या समन्वय हो सकता है इसके बारे में जान सकेंगे. इन दोनों महापुरुषों पर डीयू के पाठ्यक्रम में एक पेपर शामिल होगा. कुलपति ने इस मामले में अकादमिक परिषद की एक समिति का गठन किया है. समिति इस मामले में रिपोर्ट देगी उसके बाद इस पर विचार होगा.

डॉ. अंबेडकर ने की थी लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पीएचडी

डॉ. अंबेडकर व महात्मा गांधी के अर्थशास्त्री होने को लेकर डीयू के स्कूल आफ ओपन लर्निंग (एसओएल) में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर जनमेजय खुंटिया कहते हैं कि डा. भीमराव अंबेडकर तो थे ही अर्थशास्त्री. उन्होंने लंदन के प्रसिद्ध लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पीएचडी की थी. उनका भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर एक अलग ही चिंतन था. उन्होंने भारत के दलित और निचले तबके के लोगों को भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग बताया था. भारत के लेबर फोर्स में इस वर्ग के लोगों की संख्या तब भी सबसे अधिक थी और अब भी है.

ये भी पढ़ें: Delhi University: BA के तीन साल के कोर्स से गांधी गायब, अब वीर सावरकर को पढ़ाया जाएगा

भारत के उद्योगों में और कृषि में दोनों जगह ही श्रमिक के रूप में यही लोग काम करते थे. इनकी संख्या अधिक होने के कारण भारत में सस्ते दर पर लेबर भी मिलती थी. इसलिए अंबेडकर ने कहा था कि इस वर्ग की उपेक्षा करके भारत कभी आत्मनिर्भर नहीं बन सकता है. इसलिए इन वर्गों को समानता की श्रेणी में शामिल करने के लिए अंबेडकर ने आरक्षण व्यवस्था का खाका खींचा था और उन्होंने कल्याणकारी अर्थशास्त्र की बात की थी. अर्थशास्त्र में लेबर उत्पादन का अहम अंग है. भारत में एससी और ओबीसी की सबसे अधिक आबादी है. इसलिए अंबेडकर ने इन सभी के कल्याण की बात करते हुए कहा था कि अगर इन जातियों का कल्याण नहीं होगा तो भारत की जीडीपी ग्रोथ नहीं करेगी.

इसी तरह महात्मा गांधी ने भी गांव और कृषि को भारत की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बताया था. उन्होंने गांव में स्वरोजगार की बात कही थी. ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत होने से ही भारत आर्थिक मोर्चे पर मजबूत हो सकता है. लेकिन, अंबेडकर और महात्मा गांधी की अर्थशास्त्रीय दृष्टि से लोग अधिक परिचित नहीं हैं इसलिए इनको पूरी तरह जमीन पर नहीं उतारा जा सका है.

भारत की अर्थव्यवस्था में रुपये की स्थिति और मुद्रा के योगदान को किया रेखांकित

वहीं, डीयू के श्रीराम कालेज आफ कामर्स के अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर अश्वनी कुमार ने बताया कि डा. भीमराव अंबेडकर ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं. साथ ही कई रिसर्च पेपर्स में उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था में रुपये की स्थिति और मुद्रा के योगदान को भी रेखांकित किया है. डा. अंबेडकर विशुद्ध रूप से अर्थशास्त्री थे. उन्होंने वैश्विक मंचों पर ब्रिटेन और अन्य देशों द्वारा भारत की मुद्रा को कमजोर करने के लिए किए जा रहे कृत्यों को भी रखा था. अश्वनी कुमार ने बताया कि महात्मा गांधी का विचार था भारत गांव में बसता है. गांव में हर चीज का उत्पादन हो, किसान आत्मनिर्भर बनें और लोग स्वदेशी को अपनाएं तो अर्थव्यवस्था खुद ब खुद मजबूत हो जाएगी.

डा. संतोष कुमार ने अपने एक रिसर्च पेपर में अंबेडकर की दृष्टि में रुपये की समस्या को पेश किया

इसी तरह श्रीराम कालेज आफ कामर्स के अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डा. संतोष कुमार ने अपने एक रिसर्च पेपर में अंबेडकर की दृष्टि में रुपये की समस्या को प्रस्तुत किया है. उन्होंने इस विषय़ पर डा. अंबेडकर के शोध प्रंबध का उल्लेख करते हुए लिखा है कि आधुनिक समाज का आधार स्तंभ मुद्रा है. मुद्रा की अनुपस्थिति में आर्थिक परिवर्तन की धारा, जो उद्योग और व्यापार पर आधारित है, कभी भी उस मुकाम पर समाज को नहीं ला पाती है जहां पर आर्थिक, सामाजिक और भोगोलिक बंधनों से मुक्त होकर आधुनिक मानव स्वतंत्रता की अलख जगाने में प्रयासरत है.

भारत या किसी भी देश की मौद्रिक समस्या केवल विदेशी मुद्रा बाजार में विनिमय दर से ही नहीं जुड़ी है, बल्कि देश के अंदर उसकी मुद्रा की घटती कीमत भी है जो मुद्रा की अस्थिरता को बढ़ाती है और आर्थिक व्यवस्था को ढंवाडोल कर देती है. इसलिए अंबेडकर और गांधी को अगर डीयू के छात्रों को अर्थशास्त्री के रूप में पढ़ने को मिलता है तो यह एक अच्छी पहल होगी. इससे छात्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था के महत्व को समझ सकेंगे. अगर हम तीनों शिक्षकों के अंबेडकर और गांधी की अर्थशास्त्रीय दृष्टि और विचारों की बात करें तो यह आज भी प्रासंगिक है. कोरोना काल में भारत की अर्थव्यवस्था को कृषि से ही पोषण मिला है. यही कारण है कि भारत को कोरोना संकट से उबरने में अधिक परेशानी नहीं हुई.

ये भी पढ़ें: Delhi University: अब अंबेडकर और गांधी को अर्थशास्त्री के तौर पर पढ़ेंगे छात्र!


नई दिल्लीः दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) अपने पाठ्यक्रम में डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी को एक अर्थशास्त्री के रूप में शामिल करने जा रहा है. डीयू के छात्र अब अंबेडकर और गांधी के भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में व्यक्त किए गए विचारों और विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत का क्या समन्वय हो सकता है इसके बारे में जान सकेंगे. इन दोनों महापुरुषों पर डीयू के पाठ्यक्रम में एक पेपर शामिल होगा. कुलपति ने इस मामले में अकादमिक परिषद की एक समिति का गठन किया है. समिति इस मामले में रिपोर्ट देगी उसके बाद इस पर विचार होगा.

डॉ. अंबेडकर ने की थी लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पीएचडी

डॉ. अंबेडकर व महात्मा गांधी के अर्थशास्त्री होने को लेकर डीयू के स्कूल आफ ओपन लर्निंग (एसओएल) में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर जनमेजय खुंटिया कहते हैं कि डा. भीमराव अंबेडकर तो थे ही अर्थशास्त्री. उन्होंने लंदन के प्रसिद्ध लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पीएचडी की थी. उनका भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर एक अलग ही चिंतन था. उन्होंने भारत के दलित और निचले तबके के लोगों को भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग बताया था. भारत के लेबर फोर्स में इस वर्ग के लोगों की संख्या तब भी सबसे अधिक थी और अब भी है.

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भारत के उद्योगों में और कृषि में दोनों जगह ही श्रमिक के रूप में यही लोग काम करते थे. इनकी संख्या अधिक होने के कारण भारत में सस्ते दर पर लेबर भी मिलती थी. इसलिए अंबेडकर ने कहा था कि इस वर्ग की उपेक्षा करके भारत कभी आत्मनिर्भर नहीं बन सकता है. इसलिए इन वर्गों को समानता की श्रेणी में शामिल करने के लिए अंबेडकर ने आरक्षण व्यवस्था का खाका खींचा था और उन्होंने कल्याणकारी अर्थशास्त्र की बात की थी. अर्थशास्त्र में लेबर उत्पादन का अहम अंग है. भारत में एससी और ओबीसी की सबसे अधिक आबादी है. इसलिए अंबेडकर ने इन सभी के कल्याण की बात करते हुए कहा था कि अगर इन जातियों का कल्याण नहीं होगा तो भारत की जीडीपी ग्रोथ नहीं करेगी.

इसी तरह महात्मा गांधी ने भी गांव और कृषि को भारत की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बताया था. उन्होंने गांव में स्वरोजगार की बात कही थी. ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत होने से ही भारत आर्थिक मोर्चे पर मजबूत हो सकता है. लेकिन, अंबेडकर और महात्मा गांधी की अर्थशास्त्रीय दृष्टि से लोग अधिक परिचित नहीं हैं इसलिए इनको पूरी तरह जमीन पर नहीं उतारा जा सका है.

भारत की अर्थव्यवस्था में रुपये की स्थिति और मुद्रा के योगदान को किया रेखांकित

वहीं, डीयू के श्रीराम कालेज आफ कामर्स के अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर अश्वनी कुमार ने बताया कि डा. भीमराव अंबेडकर ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं. साथ ही कई रिसर्च पेपर्स में उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था में रुपये की स्थिति और मुद्रा के योगदान को भी रेखांकित किया है. डा. अंबेडकर विशुद्ध रूप से अर्थशास्त्री थे. उन्होंने वैश्विक मंचों पर ब्रिटेन और अन्य देशों द्वारा भारत की मुद्रा को कमजोर करने के लिए किए जा रहे कृत्यों को भी रखा था. अश्वनी कुमार ने बताया कि महात्मा गांधी का विचार था भारत गांव में बसता है. गांव में हर चीज का उत्पादन हो, किसान आत्मनिर्भर बनें और लोग स्वदेशी को अपनाएं तो अर्थव्यवस्था खुद ब खुद मजबूत हो जाएगी.

डा. संतोष कुमार ने अपने एक रिसर्च पेपर में अंबेडकर की दृष्टि में रुपये की समस्या को पेश किया

इसी तरह श्रीराम कालेज आफ कामर्स के अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डा. संतोष कुमार ने अपने एक रिसर्च पेपर में अंबेडकर की दृष्टि में रुपये की समस्या को प्रस्तुत किया है. उन्होंने इस विषय़ पर डा. अंबेडकर के शोध प्रंबध का उल्लेख करते हुए लिखा है कि आधुनिक समाज का आधार स्तंभ मुद्रा है. मुद्रा की अनुपस्थिति में आर्थिक परिवर्तन की धारा, जो उद्योग और व्यापार पर आधारित है, कभी भी उस मुकाम पर समाज को नहीं ला पाती है जहां पर आर्थिक, सामाजिक और भोगोलिक बंधनों से मुक्त होकर आधुनिक मानव स्वतंत्रता की अलख जगाने में प्रयासरत है.

भारत या किसी भी देश की मौद्रिक समस्या केवल विदेशी मुद्रा बाजार में विनिमय दर से ही नहीं जुड़ी है, बल्कि देश के अंदर उसकी मुद्रा की घटती कीमत भी है जो मुद्रा की अस्थिरता को बढ़ाती है और आर्थिक व्यवस्था को ढंवाडोल कर देती है. इसलिए अंबेडकर और गांधी को अगर डीयू के छात्रों को अर्थशास्त्री के रूप में पढ़ने को मिलता है तो यह एक अच्छी पहल होगी. इससे छात्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था के महत्व को समझ सकेंगे. अगर हम तीनों शिक्षकों के अंबेडकर और गांधी की अर्थशास्त्रीय दृष्टि और विचारों की बात करें तो यह आज भी प्रासंगिक है. कोरोना काल में भारत की अर्थव्यवस्था को कृषि से ही पोषण मिला है. यही कारण है कि भारत को कोरोना संकट से उबरने में अधिक परेशानी नहीं हुई.

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Last Updated : Jun 15, 2023, 10:27 AM IST
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