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सभी केंद्रीय सरकारी परियोजना स्थलों पर पर्यावरणीय लागत प्रदर्शित करें: दिल्ली हाई कोर्ट

केंद्र सरकार के अधीन पर्यावरण के लिए काम करने वाली एजेंसियों से दिल्ली हाईकोर्ट ने पूरे कार्य का ब्यौरा मांगा है. इसमें पर्यावरणीय लागत, काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या, अनुमतियों का विवरण आदि शामिल है.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 3, 2023, 3:47 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधीन दिल्ली में काम करने वाली एजेंसियों के लिए निर्देश जारी किया है. इसमें कहा गया कि एजेंसियां यह सुनिश्चित करें कि पर्यावरणीय लागत सहित प्रत्येक परियोजना का विवरण निर्माण स्थलों पर प्रदर्शित हो. भारत संघ द्वारा किए जा रहे निर्माण परियोजना का विवरण जिसे पर्यावरणीय लागत भी कहते हैं, उनके अंतर्गत काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या, क्षतिपूर्ति पौधरोपण का स्थान, निर्माण स्थल पर दर्शाया जाना चाहिए. साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि शहरी विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव स्तर से कम के अधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं बनाया जाना चाहिए.

एजेंसी का भी नाम होगा शामिल: न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने हाल में ही एक आदेश में कहा कि जानकारी में निर्माण कार्य करने वाली नागरिक एजेंसी का नाम भी शामिल होगा. अदालत का यह निर्देश 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले को लागू करने की मांग करने वाली एक याचिका पर आया, जिसमें अधिकारियों को ऐसा करने का निर्देश दिया गया था.

इसके तहत पेड़ों की कटाई और छंटाई के लिए दी गई अनुमतियों का विवरण, पेड़ों की संख्या, स्थान और इस उद्देश्य के लिए प्राप्त आवेदनों की स्थिति के साथ ही अवैध कटाई और छटाई पर प्राप्त शिकायतों का विवरण भी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया. सीआईसी ने सभी नागरिक एजेंसियों को निर्देश भी दिया था किसी भी निर्माण कार्य को मौद्रिक लागत और परियोजना के विवरण, पर्यावरणीय लागत, काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या और क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के स्थान के साथ प्रदर्शित किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें: पति ने लड़ी थी आज़ादी की लड़ाई, तीन हजार की पेंशन के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहीं बुजुर्ग

दिल्ली सरकार कर रही थी पालन: दिल्ली सरकार ने दावा किया कि उसके तहत एजेंसियां इन निर्देशों का पालन कर रही थी. याचिकाकर्ता आदित्य एन प्रसाद ने दावे पर विवाद किया, जिसके कारण अदालत ने सरकार के बयान को एक उपक्रम के रूप में दर्ज किया. प्रसाद ने तर्क दिया कि जब तक किसी अधिकारी पर जिम्मेदारी तय नहीं की जाती, सीआईसी के आदेशों का अनुपालन नहीं किया जाएगा.

उन्होंने अदालत के 2015 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें वन विभाग को पेड़ों की कटाई के लिए दी गई अनुमति पर विवरण देने और इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए एक त्रैमासिक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया था. इसके जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा कि संबंधित प्रभागों के वृक्ष अधिकारी समय पर अपडेट के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए निर्देशित किया जाएगा.

ये भी पढ़ें: फैमिली कोर्ट शादी टूटने के आधार पर तलाक नहीं दे सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधीन दिल्ली में काम करने वाली एजेंसियों के लिए निर्देश जारी किया है. इसमें कहा गया कि एजेंसियां यह सुनिश्चित करें कि पर्यावरणीय लागत सहित प्रत्येक परियोजना का विवरण निर्माण स्थलों पर प्रदर्शित हो. भारत संघ द्वारा किए जा रहे निर्माण परियोजना का विवरण जिसे पर्यावरणीय लागत भी कहते हैं, उनके अंतर्गत काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या, क्षतिपूर्ति पौधरोपण का स्थान, निर्माण स्थल पर दर्शाया जाना चाहिए. साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि शहरी विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव स्तर से कम के अधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं बनाया जाना चाहिए.

एजेंसी का भी नाम होगा शामिल: न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने हाल में ही एक आदेश में कहा कि जानकारी में निर्माण कार्य करने वाली नागरिक एजेंसी का नाम भी शामिल होगा. अदालत का यह निर्देश 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले को लागू करने की मांग करने वाली एक याचिका पर आया, जिसमें अधिकारियों को ऐसा करने का निर्देश दिया गया था.

इसके तहत पेड़ों की कटाई और छंटाई के लिए दी गई अनुमतियों का विवरण, पेड़ों की संख्या, स्थान और इस उद्देश्य के लिए प्राप्त आवेदनों की स्थिति के साथ ही अवैध कटाई और छटाई पर प्राप्त शिकायतों का विवरण भी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया. सीआईसी ने सभी नागरिक एजेंसियों को निर्देश भी दिया था किसी भी निर्माण कार्य को मौद्रिक लागत और परियोजना के विवरण, पर्यावरणीय लागत, काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या और क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के स्थान के साथ प्रदर्शित किया जाना चाहिए.

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दिल्ली सरकार कर रही थी पालन: दिल्ली सरकार ने दावा किया कि उसके तहत एजेंसियां इन निर्देशों का पालन कर रही थी. याचिकाकर्ता आदित्य एन प्रसाद ने दावे पर विवाद किया, जिसके कारण अदालत ने सरकार के बयान को एक उपक्रम के रूप में दर्ज किया. प्रसाद ने तर्क दिया कि जब तक किसी अधिकारी पर जिम्मेदारी तय नहीं की जाती, सीआईसी के आदेशों का अनुपालन नहीं किया जाएगा.

उन्होंने अदालत के 2015 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें वन विभाग को पेड़ों की कटाई के लिए दी गई अनुमति पर विवरण देने और इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए एक त्रैमासिक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया था. इसके जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा कि संबंधित प्रभागों के वृक्ष अधिकारी समय पर अपडेट के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए निर्देशित किया जाएगा.

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