नई दिल्ली : गर्मी का मौसम के शुरू होते ही सूरज ने भी तेवर दिखने शुरू कर दिए हैं. तपीश बढ़ने से देसी फ्रिज यानी मिट्टी के मटकों मांग में तेजी आ गई है. समय के साथ मिट्टी के मटकों के बनावट, रंग, आकार और डिजाइन में भी कई बदलवा आए हैं, जो ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए प्रयोग भी किए जाते हैं. मटके में रखा पानी शीतल होने के साथ स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. आज लोग ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों का सेवन करना ज्यादा पसंद करते हैं. इसलिए लोगों को मिट्टी के मटके और सुराही में रखा पानी पीना ज्यादा पसंद आता है.
अगर आप पश्चिमी दिल्ली में रहते हैं और प्यास बुझाने में मटका लेने की तैयारी कर रहे हैं, तो उत्तम नगर में स्थित कुम्हार कॉलोनी सबसे बेस्ट है. यहां हर घर में मिट्टी के बर्तन बनने का काम होता है. मिट्टी से बने सामान के लिए यह कॉलोनी काफी प्रसिद्ध है. होलसेल मार्केट होने के कारण यहां किफायती दामों में मटके और अन्य मिट्टी से बने दूसरे सामान भी मिल जाते हैं.
बचपन से ही कुम्हार का काम करने वाले महेंद्र ने बताया कि वह एक दिन में 50 से 60 मटकों को तैयार कर लेते हैं. इन मटकों को भट्टी में पकने में करीब 4 घंटे का समय लगता है. मटके बनाने के लिए साधारण खेत की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है. फिलहाल, दिल्ली में बनाने वाले बर्तनों की मिट्टी हरियाणा से मंगवाई जाती है. उन्होंने बताया कि होली के बाद से मटकों को बनाने का काम शुरू कर देते हैं. मटकों का बाजार अप्रैल से जुलाई की बीच फलता-फूलता है.
साधारण मटके की कीमत : बाजार में अलग-अलग आकार के मटके मिलते हैं. मटका बेचने वाले महेंद्र ने बताया कि इस बार मटकों के दाम को 20 से 50 रुपये तक बढ़ा दिए गए हैं. पिछले साल जो मटका थोक रेट में 100 रुपये का मिल रहा था. वो इस बार 150 रुपये में बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि रिटेल दुकानदार अपने क्षेत्र के ग्राहकों की मांग के अनुसार ही मटकों को खरीद कर ले जाते हैं. इस समय सभी छोटे दुकानदार भंडारण करने में लगे हैं. दो साल से कोरोना की मार झेल रहे लोगों को अब घड़े का पानी काफी पसंद आ रहा है.
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मटके के पानी का लाभ
- मटके के पानी में पोषक तत्व और मिनिरल्स होते हैं. शरीर में ग्लूकोज को बनाए रखता है. ये सन-स्ट्रोक से बचाता है.
- इसका पानी पाचन और मेटाबॉलिज्म में सुधार लाता है.
- मिट्टी में एंटी-इंफ्लेमेटरी तत्व पाए जाते हैं जिससे शरीर का दर्द, ऐठन और सूजन की समस्या कम होती है. मिट्टी के बर्तन का पानी पीने से आर्थराइटिस जैसी बीमारी में भी आराम मिलता है.
- मटके का पानी पेट में बनने वाली गैस की समस्या में राहत पहुंचाता है. ये पीने में स्वादिष्ट होता है.
- घड़े का पानी पीने से शरीर में आयरन की कमी को दूर किया जा सकता है.
क्या है मटके का इतिहास : माना जाता है कि मिट्टी के बर्तनों की शुरुआत 5500 BC में सिंधु घाटी की सभ्यता से हुई थी. तब से आज तक मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल कहीं न कहीं हमारे जीवन में देखने को मिल जाता है. हिंदू धर्म में मिट्टी से पवित्र वस्तु कुछ नहीं समझी जाती है. अपने आराध्य को मिट्टी के बर्तन में भोग लगाया जाता है. जन्म-मरण, पूजा-पाठ, शादी-विवाह और तीज-त्यौहार में मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल खूब होता है.
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