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Sawan 2023: सावन में बढ़ी बेलपत्र व धतूरे की मांग, जानिए शिवलिंग पर क्यों चढ़ाए जाते हैं बेलपत्र?

4 जुलाई से सावन आरंभ हो चुका है. सावन प्रारंभ होने से शिव भक्तों में उत्साह है. इस दौरान बाजार में बेलपत्र, धतूरे व अन्य पूजा सामग्रियों की मांग बढ़ गई है. ऐसे में भक्त बिल्व पत्र, चंदन, दूध आदि सामग्री शिवजी को चढ़ा रहे हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि यह सब शिवजी को क्यों चढ़ाते हैं? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर..

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Published : Jul 5, 2023, 5:41 PM IST

सावन में बढ़ी पूजन सामग्री की मांग

नई दिल्ली: सावन का महीना शुरू हो चुका है. सनातन धर्म में श्रावण मास की महिमा का वर्णन किया गया है. यह माह भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. इस बार भक्तों को 58 दिनों तक भोलेनाथ पर जल चढ़ाने का मौका मिला है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को बड़ी आसानी और सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है. उन्हें भक्तों से रुपया-पैसा और सोना-चांदी नहीं चाहिए. भक्तिभाव से बेलपत्र, रुद्राक्ष, भस्म, त्रिपुण्ड्रक, भांग, अक्षत, या कनैल का फूल चढ़ाने से भोले प्रसन्न हो जाते हैं. चांदनी चौक के ऐतिहासिक गौरी शंकर मंदिर के बाहर भांग, बेल पत्र, धतूरे और अन्य पूजन सामग्री की दुकानें सज गई हैं.

सावन में बढ़ी पूजन सामग्री की मांग: 40 वर्षों से पूजन सामग्री बेचने वाले छोटू ने बताया कि भोले बाबा को प्रसन्न करने वाली सभी सामग्री वह यमुना के आसपास के जंगल से लाते हैं. सावन के अलावा भी भक्त हर सोमवार को बाबा को फूल पत्री अर्पित करते हैं. इसके लिए रविवार से ही तैयारियां शुरू करनी होती हैं. अब सावन शुरू हो गया है, तो मंदिर में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है. छोटू ने बताया कि सामान्य दिनों में वह भांग के पत्ते और बिल्व पत्र की एक बोरी लाते थे. वहीं अब रोजाना दो बोरी भांग के पत्ते और बिल्व पत्र मंगवाते हैं. छोटू ने बताया कि आम दिनों में रोजाना 100 टोकरियां बिक जाती हैं. अब सावन में प्रतिदिन 250 टोकरियां बिक रही हैं.

भोले बाबा को क्या है पसंद?

  • बिल्व पत्र: शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र. तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शंकर जी को अत्यंत प्रिय है. प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है. ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को अर्पित करना और 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है.
  • धतूरा: महादेव को धतूरा भी काफी प्रिय है. इसके पीछे पुराणों मे जहां धार्मिक कारण बताया गया है, वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है. भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं. यह अत्यंत ठंडा क्षेत्र है, जहां ऐसे आहार और औषधि की जरूरत होती है, जो शरीर को ऊष्मा प्रदान करे. वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए, तो औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है.
  • भांग: भगवान को औषधि स्वरूप भांग दी गई, लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है. भगवान शिव को इस बात के लिए भी जाना जाता हैं कि इस संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज़ को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तों की विष से रक्षा करते हैं.
  • कर्पूर: भगवान शिव का प्रिय मंत्र है "कर्पूर गौरम करुणावतारं" यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल हैं. कर्पूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है. भगवान भोलेनाथ को इस महक से प्यार है, इसलिए कर्पूर शिव पूजन में अनिवार्य है.
  • दूध: श्रावण मास में दूध का सेवन निषेध है. दूध इस मास में स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक हो जाता है, इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है.
  • चावल: चावल को अक्षत भी कहा जाता है. इसका अर्थ होता है, जो टूटा न हो. इसका रंग सफेद होता है. पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है. किसी भी पूजन के समय गुलाल, हल्दी, अबीर और कुमकुम अर्पित करने के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं. अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती. यहां तक कि पूजा में आवश्यक कोई सामग्री अनुप्लब्ध हो तो उसके एवज में भी चावल चढ़ाए जाते हैं.
  • चंदन: चंदन का संबंध शीतलता से है. भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं. चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है और इसकी खुशबू से वातावरण और खिल जाता है. यदि शिव जी को चंदन चढ़ाया जाए, तो इससे समाज में मान सम्मान यश बढ़ता है.
  • भस्म: इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है, वह पवित्रता जिसे भगवान शिव ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता में खोजा है. जिसे अपने तन पर लगाकर वे उस पवित्रता को सम्मान देते हैं. कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं. उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता.
  • रुद्राक्ष: भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती जी से कही है. एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई. समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंख बंद कीं. तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे. उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए. उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं.

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सावन में बढ़ी पूजन सामग्री की मांग

नई दिल्ली: सावन का महीना शुरू हो चुका है. सनातन धर्म में श्रावण मास की महिमा का वर्णन किया गया है. यह माह भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. इस बार भक्तों को 58 दिनों तक भोलेनाथ पर जल चढ़ाने का मौका मिला है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को बड़ी आसानी और सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है. उन्हें भक्तों से रुपया-पैसा और सोना-चांदी नहीं चाहिए. भक्तिभाव से बेलपत्र, रुद्राक्ष, भस्म, त्रिपुण्ड्रक, भांग, अक्षत, या कनैल का फूल चढ़ाने से भोले प्रसन्न हो जाते हैं. चांदनी चौक के ऐतिहासिक गौरी शंकर मंदिर के बाहर भांग, बेल पत्र, धतूरे और अन्य पूजन सामग्री की दुकानें सज गई हैं.

सावन में बढ़ी पूजन सामग्री की मांग: 40 वर्षों से पूजन सामग्री बेचने वाले छोटू ने बताया कि भोले बाबा को प्रसन्न करने वाली सभी सामग्री वह यमुना के आसपास के जंगल से लाते हैं. सावन के अलावा भी भक्त हर सोमवार को बाबा को फूल पत्री अर्पित करते हैं. इसके लिए रविवार से ही तैयारियां शुरू करनी होती हैं. अब सावन शुरू हो गया है, तो मंदिर में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है. छोटू ने बताया कि सामान्य दिनों में वह भांग के पत्ते और बिल्व पत्र की एक बोरी लाते थे. वहीं अब रोजाना दो बोरी भांग के पत्ते और बिल्व पत्र मंगवाते हैं. छोटू ने बताया कि आम दिनों में रोजाना 100 टोकरियां बिक जाती हैं. अब सावन में प्रतिदिन 250 टोकरियां बिक रही हैं.

भोले बाबा को क्या है पसंद?

  • बिल्व पत्र: शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र. तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शंकर जी को अत्यंत प्रिय है. प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है. ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को अर्पित करना और 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है.
  • धतूरा: महादेव को धतूरा भी काफी प्रिय है. इसके पीछे पुराणों मे जहां धार्मिक कारण बताया गया है, वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है. भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं. यह अत्यंत ठंडा क्षेत्र है, जहां ऐसे आहार और औषधि की जरूरत होती है, जो शरीर को ऊष्मा प्रदान करे. वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए, तो औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है.
  • भांग: भगवान को औषधि स्वरूप भांग दी गई, लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है. भगवान शिव को इस बात के लिए भी जाना जाता हैं कि इस संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज़ को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तों की विष से रक्षा करते हैं.
  • कर्पूर: भगवान शिव का प्रिय मंत्र है "कर्पूर गौरम करुणावतारं" यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल हैं. कर्पूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है. भगवान भोलेनाथ को इस महक से प्यार है, इसलिए कर्पूर शिव पूजन में अनिवार्य है.
  • दूध: श्रावण मास में दूध का सेवन निषेध है. दूध इस मास में स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक हो जाता है, इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है.
  • चावल: चावल को अक्षत भी कहा जाता है. इसका अर्थ होता है, जो टूटा न हो. इसका रंग सफेद होता है. पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है. किसी भी पूजन के समय गुलाल, हल्दी, अबीर और कुमकुम अर्पित करने के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं. अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती. यहां तक कि पूजा में आवश्यक कोई सामग्री अनुप्लब्ध हो तो उसके एवज में भी चावल चढ़ाए जाते हैं.
  • चंदन: चंदन का संबंध शीतलता से है. भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं. चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है और इसकी खुशबू से वातावरण और खिल जाता है. यदि शिव जी को चंदन चढ़ाया जाए, तो इससे समाज में मान सम्मान यश बढ़ता है.
  • भस्म: इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है, वह पवित्रता जिसे भगवान शिव ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता में खोजा है. जिसे अपने तन पर लगाकर वे उस पवित्रता को सम्मान देते हैं. कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं. उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता.
  • रुद्राक्ष: भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती जी से कही है. एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई. समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंख बंद कीं. तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे. उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए. उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं.

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