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दिल्ली पुलिस की लचर जांच रिपोर्ट को कोर्ट ने किया खारिज, हत्या के आरोपी को किया दोषमुक्त

राजधानी दिल्ली स्थित पटियाला हाउस कोर्ट (Patiyala house court) के प्रधान न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने वसंत कुंज में हुई एक हत्या के मामले में हत्या के आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है. कोर्ट ने पुलिस की जांच रिपोर्ट को बेहद लचर बताते हुए जांच अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.

हत्या के आरोपी को किया दोषमुक्त
हत्या के आरोपी को किया दोषमुक्त
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Published : Nov 18, 2022, 4:32 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली पटियाला हाउस कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने हत्या के एक मामले में आरोपी को दोषमुक्त करार (acquitted accused of murder)देते हुए कहा कि पुलिस ने सिर्फ हवा में जांच की. कोर्ट ने मामले से जुड़े सभी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस आयुक्त को आदेश की एक प्रति भेजे जाने का निर्देश दिया है. कोर्ट निचली अदालत के दिए गए फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोपी युवक और उसकी पत्नी को भगोड़ा घोषित किया गया था.

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कोर्ट ने कहा- गैर पेशेवर तरीके से की गई जांच : न्यायालय ने रेखांकित किया कि जांच न केवल दोषपूर्ण थी, बल्कि एक अभावग्रस्त तरीके से भी की गई थी. आदेश में कहा गया है कि पुलिस ने घटना के दिन परिसर में आरोपी की उपस्थिति के बिंदु पर गवाहों को प्रभाव में लेकर एक ब्लाइंड मर्डर के मामले को हल करने का एक आसान तरीका मानते हुए इस्तेमाल किया. "मृतक की पृष्ठभूमि के बारे में और क्या वह आरोपी का परिचित था या नहीं, इस बारे में कोई जांच नहीं की गई थी. किसी ने भी मृतक को घर पर जाते हुए नहीं देखा था." अदालत नवंबर 2016 में वसंत कुंज के एक कमरे के अंदर शव मिलने पर दाखिल मुकदमे पर सुनवाई कर रहा था. अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को साबित करने के लिए गवाहों के बयानों और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर भरोसा किया. आरोप है कि आरोपी ने अपराध करने के बाद सबूत नष्ट कर दिए और पत्नी के साथ शहर से फरार हो गया. पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा, "न केवल अभियोजन पक्ष की कहानी कमजोर दिखाई दे रही हैं, बल्कि यह भी कि जांच पूरी तरह से अनप्रोफेशनल होने के अलावा अनुचित थी. अदालत ने आश्चर्य जताया कि हत्या का स्पष्ट मामला होने के बावजूद प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) डेढ़ महीने से अधिक समय से लंबित क्यों रही ? इसके अलावा गवाहों के बयान 28 दिसंबर, 2016 तक दर्ज नहीं किए गए थे ?

जांच में लापरवाही बरत रहे थे जिला पुलिस अधिकारी : कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह समझ में नहीं आता है कि एसीपी (सहायक पुलिस आयुक्त) या डीसीपी (पुलिस उपायुक्त) रैंक के वरिष्ठ अधिकारी जो जांच जा रही थी वे किस तरह से जांच की निगरानी या निगरानी कर रहे थे ? पुलिस अधिकारी इस तरह के जघन्य अपराध में शामिल हैं, इसके अलावा, अभियुक्तों के भाग जाने के अभियोजन पक्ष की दलील को कोर्ट ने केवल एक बहाना माना. कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए इसे दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी के तहत प्रक्रियाओं को जारी करने को आंखों में धूल झोंकने बराबर माना. अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील से सहमति जताई कि आरोपी और उसका परिवार उसी परिसर में रहते थे, लेकिन यह काफी मुमकिन लगता था कि वह प्रसवोत्तर देखभाल के लिए अपनी पत्नी के पैतृक स्थान जाने के लिए निकल गया था, क्योंकि घटना के कुछ दिन पहले ही उनकी पत्नी को बेटा हुआ था. दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 397 के तहत संशोधन की अपनी स्वप्रेरणा शक्तियों का भी प्रयोग किया और निचली अदालत से पारित एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी की पत्नी को घोषित अपराधी होने का आदेश पारित किया था.

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नई दिल्ली : दिल्ली पटियाला हाउस कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने हत्या के एक मामले में आरोपी को दोषमुक्त करार (acquitted accused of murder)देते हुए कहा कि पुलिस ने सिर्फ हवा में जांच की. कोर्ट ने मामले से जुड़े सभी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस आयुक्त को आदेश की एक प्रति भेजे जाने का निर्देश दिया है. कोर्ट निचली अदालत के दिए गए फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोपी युवक और उसकी पत्नी को भगोड़ा घोषित किया गया था.

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कोर्ट ने कहा- गैर पेशेवर तरीके से की गई जांच : न्यायालय ने रेखांकित किया कि जांच न केवल दोषपूर्ण थी, बल्कि एक अभावग्रस्त तरीके से भी की गई थी. आदेश में कहा गया है कि पुलिस ने घटना के दिन परिसर में आरोपी की उपस्थिति के बिंदु पर गवाहों को प्रभाव में लेकर एक ब्लाइंड मर्डर के मामले को हल करने का एक आसान तरीका मानते हुए इस्तेमाल किया. "मृतक की पृष्ठभूमि के बारे में और क्या वह आरोपी का परिचित था या नहीं, इस बारे में कोई जांच नहीं की गई थी. किसी ने भी मृतक को घर पर जाते हुए नहीं देखा था." अदालत नवंबर 2016 में वसंत कुंज के एक कमरे के अंदर शव मिलने पर दाखिल मुकदमे पर सुनवाई कर रहा था. अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को साबित करने के लिए गवाहों के बयानों और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर भरोसा किया. आरोप है कि आरोपी ने अपराध करने के बाद सबूत नष्ट कर दिए और पत्नी के साथ शहर से फरार हो गया. पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा, "न केवल अभियोजन पक्ष की कहानी कमजोर दिखाई दे रही हैं, बल्कि यह भी कि जांच पूरी तरह से अनप्रोफेशनल होने के अलावा अनुचित थी. अदालत ने आश्चर्य जताया कि हत्या का स्पष्ट मामला होने के बावजूद प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) डेढ़ महीने से अधिक समय से लंबित क्यों रही ? इसके अलावा गवाहों के बयान 28 दिसंबर, 2016 तक दर्ज नहीं किए गए थे ?

जांच में लापरवाही बरत रहे थे जिला पुलिस अधिकारी : कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह समझ में नहीं आता है कि एसीपी (सहायक पुलिस आयुक्त) या डीसीपी (पुलिस उपायुक्त) रैंक के वरिष्ठ अधिकारी जो जांच जा रही थी वे किस तरह से जांच की निगरानी या निगरानी कर रहे थे ? पुलिस अधिकारी इस तरह के जघन्य अपराध में शामिल हैं, इसके अलावा, अभियुक्तों के भाग जाने के अभियोजन पक्ष की दलील को कोर्ट ने केवल एक बहाना माना. कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए इसे दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी के तहत प्रक्रियाओं को जारी करने को आंखों में धूल झोंकने बराबर माना. अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील से सहमति जताई कि आरोपी और उसका परिवार उसी परिसर में रहते थे, लेकिन यह काफी मुमकिन लगता था कि वह प्रसवोत्तर देखभाल के लिए अपनी पत्नी के पैतृक स्थान जाने के लिए निकल गया था, क्योंकि घटना के कुछ दिन पहले ही उनकी पत्नी को बेटा हुआ था. दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 397 के तहत संशोधन की अपनी स्वप्रेरणा शक्तियों का भी प्रयोग किया और निचली अदालत से पारित एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी की पत्नी को घोषित अपराधी होने का आदेश पारित किया था.

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