नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने बीजेपी सांसद मेनका गांधी के खिलाफ एक ट्रस्ट को फर्जी तरीके से पचास लाख रुपये देने के मामले में नोटिस जारी किया है. यह नोटिस सीबीआई को आगे जांच करने का आदेश देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर जारी किया गया है. जस्टिस योगेश खन्ना की बेंच ने मेनका गांधी की याचिका पर ये आदेश जारी किया.
क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करने का विरोध
पटियाला हाउस कोर्ट ने पिछले 4 फरवरी को सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था औऱ सीबीआई को आगे की जांच करने का आदेश दिया था. ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि जो दस्तावेज मौजूद हैं, उससे साजिश का पता चलता है. सुनवाई के दौरान मेनका गांधी की ओर से वकील तनवीर अहमद मीर और प्रतीक सोम ने कहा कि उन्हें एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की ओर से टारगेट किया जा रहा है. मेनका गांधी के खिलाफ झूठा केस दायर कराया गया है.
2010 और 2015 में क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई थी
मेनका गांधी की ओर से कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने सीबीआई को आगे जांच करने का आदेश देकर गलती की है, क्योंकि इस मामले में खुद सीबीआई ने कोई गड़बड़ी नहीं पाई है. सीबीआई ने 2010 और 2015 में क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी. याचिका में कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट ने जांच का आदेश देते समय यह नहीं बताया है कि जांच की जरूरत क्या है.
पचास लाख रुपये की गड़बड़ी का आरोप
दरअसल, 2006 में सीबीआई ने मेनका गांधी के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें उनके अलावा दो और लोगों को आरोपी बनाया गया था. आरोप है कि मेनका गांधी ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन के पूर्व सचिव डॉ. एफयू सिद्दीकी के साथ पीलीभीत में साजिशन गांधीरुरल वेलफेयर ट्रस्ट के पूर्व मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. विजय शर्मा को पचास लाख रुपये स्वीकृत किए थे.
सीबीआई ने ये भी आरोप लगाया था कि ट्रस्ट को पीलीभीत के तत्कालीन कलेक्टर ने दो एंबुलेंस खरीदने के लिए करीब ग्यारह लाख रुपये दिए, जो मेनका गांधी के सांसद निधि से दिए गए थे. ये पैसे ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी रामाकांत रामपाल को दिए गए, जिन्होंने दो जीप खरीदीं. उन जीपों को रामपाल सीएमओ से सत्यापित भी नहीं करा पाए, क्योंकि जिस मॉडल के लिए पैसे जारी किए गए थे, उससे काफी छोटे मॉडल की गाड़ियां खरीदी गई थीं. एफआईआर में ये भी कहा गया था कि उन गाड़ियों का मैनेजिंग ट्रस्टी व्यक्तिगत इस्तेमाल करते थे.