नई दिल्ली: "ध्वनि प्रदूषण भी वायु प्रदूषण की तरह ही एक गंभीर समस्या है लेकिन चूंकि ये लोगों को सीधे तौर पर कम प्रभावित करता है, लोग इस पर ध्यान नहीं देते." ये कहना है आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में पर्यावरण विशेषज्ञ लीडिया पॉवेल का. वो कहती हैं कि ध्वनि प्रदूषण एक नकारात्मक बाहरीता है जिससे लोग खुद कम और दूसरों को ज्यादा प्रभावित करते हैं. ये नए दौर की एक उभरती समस्या है जिसका समाधान जरूरी है.
ध्वनि प्रदूषण दिल्ली के लिए गंभीर समस्या
ईटीवी भारत से खास बातचीत में पर्यावरण विशेषज्ञ लीडिया पॉवेल ने बताया कि कैसे ध्वनि प्रदूषण की समस्या दिल्ली के लिए गंभीर है. इसके लिए उन्होंने सामाजिक और धार्मिक आयोजनों से लेकर ऑटोमोबाइल और लोगों की व्यक्तिगत रुचि तक को जिम्मेदार ठहराया. साथ ही इससे बचाव के लिए लोगों की सहभागिता को जरूरी बताया.
'ध्वनि प्रदूषण नकारात्मक बाहरीता है'
पॉवेल कहती हैं कि ध्वनि प्रदूषण नकारात्मक बाहरीता है जिसकी कीमत किसी को नहीं चुकानी पड़ती. वो कहती हैं कि दिल्ली में लाउडस्पीकर लगाकर अलग-अलग सामाजिक और धार्मिक काम करने वाले लोगों को उस लाउडस्पीकर से कोई नुकसान नहीं है लेकिन वही लाउडस्पीकर पास ही रह रहे किसी ऐसे बच्चे के लिए परेशानी बन सकता है जिसकी अगले दिन परीक्षा है. वो कहती हैं कि एक निर्धारित सीमा से तेज आवाज कानों को नुक्सान पहुंचाती है जबकि लगातार बढ़ रही धीमी आवाज अप्रत्यक्ष तौर पर नुक्सान पहुंचाती है.
जागरुक होने की जरूरत
लीडिया कहती हैं कि ध्वनि प्रदूषण को रोकने का एकमात्र तरीका लोगों को इसके प्रति जागरूक करना है. वह बताती हैं कि सरकार या किसी एजेंसी द्वारा उठाए गए प्रयास प्रदूषण के मामले में कभी पूरे नहीं पड़ सकते क्योंकि इसको बनाने वाले हम लोग ही हैं. ध्वनि प्रदूषण के एक मामले में एनजीटी द्वारा दिल्ली सरकार पर पिछले दिनों लगाए गए फाइन पर लीडिया कहती हैं कि कभी कभी ऐसे कदम जरूरी होते हैं. हालांकि ये काफी नहीं है जबतक की लोग खुद इसके लिए प्रयास नहीं करते.
'दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण ज्यादा है'
ध्वनि प्रदूषण को लेकर हर साल सरकार द्वारा कुछ आंकड़े पेश किए जाते हैं जिनमें राजधानी दिल्ली एक ऐसा राज्य उभर कर आता है जहां ध्वनि प्रदूषण बहुत अधिक है. इस तरह के प्रदूषण को लेकर सरकार ने लाखों को चार भागों में विभाजित किया है. जहां के लिए अलग-अलग सीमाएं तय कोई गई हैं जो पर हो जाती हैं. उदाहरण के तौर पर दिल्ली का आईटीओ इलाका इसी विभाजन के तहत कमर्शियल इलाके में आता है जहां की परमिशन लिमिट दिन के समय में 65 डेसिबल जबकि रात के समय में 55 डेसिबल की है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की स्टडी दिखाती है कि आईटीओ इलाके में अक्सर ध्वनि 106 डेसिबल तक पहुंच जाती है.
'ध्वनि प्रदूषण का समाधान ढूंढना जरूरी'
जानकार बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है. 2011 में आई डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट में ध्वनि प्रदूषण को भारत के लिए एक खतरे के तौर पर दर्शाया गया था. पॉवेल कहती है कि आने वाली जनरेशन पर ध्वनि प्रदूषण का ऐसा कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन अभी की स्थितियों में रह रहे लोग इससे प्रभावित हैं. इसका समाधान ढूंढना जरूरी है क्योंकि ध्वनि प्रदूषण से होने वाली परेशानियां, अप्रत्यक्ष रूप से भी लोगों की चिंता बन रही हैं. ये भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.