नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के मुख्य सचिव, विशेष आयुक्त (परिवहन) और श्रम सचिव को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया है. न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि इन अधिकारियों ने दिसंबर 2017 में एक खंडपीठ द्वारा पारित आदेशों की जानबूझकर अवहेलना की. डिवीजन बेंच ने सरकार को राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक परिवहन बसें चलाने वाले निजी खिलाड़ियों के साथ हुए समझौतों में आवश्यक संशोधन करने और कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करने का निर्देश दिया था.
न्यायमूर्ति पल्ली ने कहा कि भले ही सरकार की समीक्षा याचिका और आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज कर दिया गया हो, लेकिन खंडपीठ के आदेशों को सही अर्थों में लागू नहीं किया गया है. न्यायालय ने कहा कि खंडपीठ द्वारा जारी निर्देश स्पष्ट थे और प्रतिवादियों (अवमाननाकर्ताओं) से प्रत्येक क्लस्टर को व्यक्तिगत रूप से देय राशि की गणना करके सूत्र में आवश्यक संशोधन करने की अपेक्षा की गई थी. अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पूर्वोक्त के आलोक में हमारी राय है कि वर्तमान मामले में प्रतिवादियों को अवमानना का दोषी ठहराने के लिए सभी चार पूर्व शर्तें बनाई गई हैं.
इसमें कहा गया है कि अवमानना क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय इस न्यायालय को यह ध्यान रखना होगा कि अवमानना के कानून का उद्देश्य सार्वजनिक हित की सेवा करना और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास पैदा करना है. वर्तमान मामले में प्रतिवादी खंडपीठ द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने में बार-बार विफल होने के बावजूद जानबूझकर खंडपीठ द्वारा जारी स्पष्ट निर्देशों को दरकिनार करने और कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं. इसलिए इनके साथ कड़ा कदम उठाना आवश्यक है.
अदालत ने इसके बाद मामले को 14 जुलाई को सजा पर बहस के लिए सूचीबद्ध किया. अवमानना करने वालों को उक्त तिथि पर अदालत के समक्ष उपस्थित रहने का आदेश दिया गया था. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील दत्त सलवान और अधिवक्ता आदित्य गर्ग पेश हुए. उत्तरदाताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता आविष्कार सिंघवी, नावेद अहमद और विवेक कुमार ने किया.