नई दिल्ली: दिल्ली अध्यादेश (Delhi Ordinance) पर रविवार को कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी (AAP) के समर्थन का ऐलान कर दिया. इस फैसले का स्वागत करते हुए AAP ने कांग्रेस का आभार जताया है. साथ ही इसे विपक्षी एकजुटता में अहम कदम बताया है. AAP की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी (PAC) की मीटिंग के बाद राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने कहा, 'मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) ने इस अध्यादेश के खिलाफ तमाम राजनीतिक दलों से सहयोग मांगा था और अब कांग्रेस पार्टी ने भी इस अध्यादेश के खिलाफ विरोध दर्ज कराया है. यह एक बड़ी जीत है.'
इन सबके बीच अब लोगों के बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या केजरीवाल विपक्ष की मदद से केंद्र सरकार को कानून बनाने से रोक सकते हैं? क्या वह राज्यसभा में इसे पारित नहीं होने देंगे? अभी और कहां है बाधा? क्या होगी उनकी अगली रणनीति? क्या कांग्रेस के पास समर्थन के अलावा कोई विकल्प नहीं था? कांग्रेस ने समर्थन कर सेफ गेम तो नहीं खेला? आइए इन्हीं सभी सवालों को जानने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट में...
दरअसल, आंकड़े यह बता रहे हैं कि मोदी सरकार के लिए राह बहुत कठिन नहीं है. बल्कि केजरीवाल के लिए जरूर बहुत मुश्किल भरा काम है. इसकी वजह है राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के प्रति तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों वाईएसआर, टीडीपी और बीजेडी का सॉफ्ट कॉर्नर. इन तीनों पार्टियों के पास राज्यसभा में 19 सदस्य हैं. इन पर ही सब कुछ तय होगा.
राज्यसभा में AAP के समर्थन में इतने सांसद
पार्टी | सांसद |
कांग्रेस | 31 |
तृणमूल कांग्रेस | 12 |
आम आदमी पार्टी | 10 |
द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम | 10 |
भारत राष्ट्र समिति | 7 |
राष्ट्रीय जनता दल | 6 |
सीपीआई एम | 5 |
जनता दल यूनाइटेड | 5 |
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी | 4 |
शिवसेना (यूबीटी) | 3 |
समाजवादी पार्टी | 3 |
झारखंड मुक्ति मोर्चा | 2 |
सीपीआई | 2 |
कुल | 100 |
बीजेडी-वाईएसआर से केजरीवाल ने नहीं किया संपर्कः राज्यसभा की कुल 245 सीटों में से अभी 7 सीटें खाली हैं. यानी राजयसभा के 238 सदस्य है. अध्यादेश पर सभी वोटिंग में हिस्सा लेते हैं तो 120 सदस्यों का वोट जिसके पक्ष में होगा वो जीत जाएगा. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा में कुल 10 सदस्य हैं. ऐसे में पार्टी चाहती है कि जुलाई में होने वाले मानसून सत्र में जब केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश को पारित कराने के लिए संसद में पेश किया जाएगा तो 120 सदस्य विरोध में वोट करें. ताकि यह अध्यादेश पारित नहीं हो पाए.
NDA को छोड़कर राज्यसभा में सभी विपक्षी दलों को मिलाकर कुल सदस्यों की संख्या 128 है. इसमें तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टी, वाईएसआर के 9, टीडीपी के एक और बीजेडी के 9 सदस्य हैं. इन राजनीतिक दलों का बीजेपी के प्रति सॉफ्ट रुख होने से आम आदमी पार्टी ने भी अध्यादेश के विरोध में समर्थन नहीं मांगा है.
विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस ने दिया समर्थनः वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट अजय पांडेय ने कहा कि अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस का आम आदमी पार्टी को समर्थन की सबसे बड़ी वजह विपक्षी एकता को बिखरने से बचाना है. क्योंकि पिछली बैठक में आम आदमी पार्टी नाराज हो कर चली आई थी. इस बैठक में अगर AAP नेता शामिल नहीं होते तो यह संदेश जाता कि इनकी विपक्षी एकता बिखर गई है. विपक्षी एकता दल का गठन वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए हुआ है. इसलिए दल में शामिल सभी नेता होने वाली बैठकों में अपनी एकजुटता दिखाना चाहते हैं.
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए यह एक जरूरी कदम है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी का वोट बैंक वही है जो कांग्रेस का है. ऐसे में अपने वोट बैंक को नाराज नहीं करने के लिए भी कांग्रेस ने समर्थन दे दिया.
अजय पांडेय, सीनियर जर्नलिस्ट
दूसरा पहलू यह भी है कि आम आदमी पार्टी जब दिल्ली में चुनाव लड़ी थी तब कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था. सत्ता में रहने के बाद भी मात्र 8 सीट ही कांग्रेस जीत पाई थी. बावजूद केजरीवाल को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने तब आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया था. मकसद था बीजेपी को दिल्ली की सत्ता में आने से रोकना. क्योंकि आम आदमी पार्टी का वोट बैंक वही है जो कांग्रेस का दिल्ली में है, तो अपने वोट बैंक को नाराज नहीं करने के लिए भी अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस ने आपको यह समर्थन दिया है.
विपक्षी राजनीतिक पार्टियां, जिनका नहीं मिला AAP को समर्थन
पार्टी | सांसद |
वाईएसआर | 9 |
बीजेडी | 9 |
टीडीपी | 1 |
बीएसपी | 1 |
आरएलडी | 1 |
जनता दल सेक्युलर | 1 |
कुल | 22 |
जानिए, क्या होता है अध्यादेशः कोई ऐसा विषय है जिस पर तत्काल कानून बनाने की जरूरत हो और उस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो अध्यादेश लाया जाता है. हालांकि, अध्यादेश के जरिए आम लोगों से उनके मौलिक अधिकार नहीं छीना जा सकते हैं. अध्यादेश केंद्रिय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति जारी करते हैं. कानून बनने का अधिकार संसद के पास है. ऐसे में अध्यादेश को संसद की मंजूरी लेनी होती है.
अध्यादेश जारी करने के 6 महीने के भीतर संसद सत्र बुलाना और उसे पास कराना अनिवार्य है. अध्यादेश अस्थायी होता है. अध्यादेश पारित करने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी नहीं है. अध्यादेश तत्कालीन परिस्थितियों को नियंत्रण करने के लिए जारी किए जाते हैं. अध्यादेश की अवधि कम से कम 6 सप्ताह और अधिकतम छह महीने होती है.
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