नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट टू-जी स्पेक्ट्रम केस में पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा और दूसरे आरोपियों को ट्रायल कोर्ट से बरी करने के फैसले के खिलाफ सीबीआई और ईडी की याचिका पर अब 2 नवंबर को सुनवाई करेगा. आज आरोपियों की ओर से कहा गया कि सीबीआई ने तय प्रक्रियाओं का पालन किए बिना ही अपील दायर की है.
सुनवाई के दौरान आरोपियों की ओर से वकील विजय अग्रवाल ने 17 जनवरी 2018 को केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय के कम्युनिकेशन को निरस्त करने की मांग की. उन्होंने कहा कि वह कम्युनिकेशन सीबीआई मैनुअल और हाईकोर्ट के नियमों के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि जब उन्होंने सीबीआई की ओर से दिए गए दस्तावेजों पर गौर किया तो पाया कि सीबीआई ने बिना प्रक्रियाओं का पालन किए ही अपील दायर की है.
अपील करने के फैसले का विरोध
विजय अग्रवाल ने कहा कि रिट कोर्ट को फैसला लेने की पूरी प्रक्रिया को देखना होगा. कोर्ट को ये देखना होगा कि क्या सीबीआई ने इस अपील को दायर करने के पहले तय प्रक्रियाओं का पालन किया है. उन्होंने कहा कि हम केवल इस अपील का ही विरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि उस फैसले का भी विरोध कर रहे हैं, जिसके तहत ये अपील की गई है. इस केस में अपील दायर करने का कोई उचित कारण नहीं है. कोर्ट को इस बात का दिशानिर्देश जारी करना चाहिए कि किन परिस्थितियों में सीबाआई को बरी किए जाने के खिलाफ अपील करनी चाहिए. ट्रायल कोर्ट ने साफ कहा कि सीबीआई की गलत जांच की वजह से आरोपी बरी हुए. उसका किसी ने परीक्षण नहीं किया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि अपराध प्रक्रिया संहिता और सीबीआई मैन्युअल में विवाद हो तो सीबीआई मैन्युअल ही मान्य होगा.
डिवीजन बेंच के पास रेफर करने की मांग
पिछले 21 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान आरोपी करीम मोरानी की ओर से वकील सुधीर नंद्राजोग ने इस मामले के डिवीजन बेंच को रेफर करने की मांग की थी. सुधीर नंद्राजोग ने कोर्ट से कहा था कि इस मामले से जुड़ा कानूनी पहलू डिवीजन बेंच के पास लंबित है. ऐसे में इस मामले को डिवीजन बेंच को रेफर कर दिया जाए या डिवीजन बेंच के फैसले का इंतजार किया जाए क्योंकि उस फैसले का बड़ा असर होगा. उन्होंने कहा था कि जज कामिनी की ओर से रेफर किए गए सवालों पर जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की बेंच सुनवाई कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट में भी मामला लंबित है
सुधीर नंद्राजोग ने कोर्ट से आग्रह किया था कि इस मसले पर राज्यसभा और लोकसभा में हुए चर्चाओं पर गौर करना चाहिए. दोनों सदनों में राजनेता हैं और बड़ी संख्या में वकील भी हैं. उन्होंने कहा कि ये साफ है कि विधायिका की इच्छा धारा 13(1)(डी) को हटाने की थी. इस पहलू पर मनमोहन सिंह का केस अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. उन्होंने कहा था कि धाराओं को बदलने का मतलब प्रावधान को खत्म करना है.