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शुक्रवार को मनाया जाएगा बैसाखी का महापर्व, जानिए क्या है इस त्योहार की मान्यता - baisakhi festival

सिखों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह जी ने बैसाखी के दिन ही 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी. इसलिए भी सिख समुदाय बैसाखी को धूमधाम से मनाते हैं.

कल मनाया जाएगा बैसाखी महा पर्व
कल मनाया जाएगा बैसाखी महा पर्व
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Published : Apr 13, 2023, 6:18 PM IST

शुक्रवार को मनाया जाएगा बैसाखी का महापर्व

नई दिल्ली: देश भर में बैसाखी का त्योहार शुक्रवार को मनाया जा रहा है. यह त्योहार मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा में मनाया जाता है. बैसाखी का त्योहार हर साल मेष संक्रांति के दिन मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन सूर्य, मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है. इसे ही मेष संक्राति कहा जाता है. भारत में सिख समुदाय के लोग मुख्य तौर पर इस त्योहार को मनाते हैं. सिख समुदाय बैसाखी को नए साल के रूप में भी मनाता है. इस दिन फसलों के पकने पर उनकी कटाई की जाती है, लेकिन दिल्ली के बांग्ला साहिब सिंह गुरुद्वारे में बैसाखी के दिन हर साल हजारों की संख्या में लोग मत्था टेकने के लिए आते हैं. यहां एक सरोवर है जिसके पानी के छींटे लोग खुद पर और अपने बच्चों पर डालते हैं. कुछ लोग नहाते भी हैं. मान्यता है कि इस सरोवर के पानी से सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं

ईटीवी भारत से बात करते हुए बंगला साहिब गुरुद्वारे के ग्रंथी शुगवान सिंह ने बताया कि सिखों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह जी ने बैसाखी के दिन ही 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ बनाया था, इसलिए भी सिख समुदाय इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं. बता दें, केसरगढ़ साहिब आनंदपुर में इस दिन बहुत बड़ा उत्सव होता है. ये वही जगह है जहां पर खालसा पंथ की स्थापना हुई थी. इसके बाद सिख धर्म के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया. बैसाखी के दिन ही सिख लोगों ने अपना सरनेम सिंह (शेर) स्वीकार किया. दरअसल यह टाइटल गुरु गोविंद सिंह के नाम से आया है.

यह भी पढ़ेंः Fire in CNG Bus: गोकलपुरी में DTC की बस में लगी भयंकर आग

तस्वीर दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे की है. देखा जा सकता है कितनी भारी संख्या में श्रद्धालु मत्था टेकने के लिए पहुंच रहे हैं. खास बात है कि यहां सभी धर्म के लोग पहुंचते हैं और इस सरोवर में डुबकी भी लगाते हैं. उन्होंने बताया कि 1664 में सिखों के आठवें सिख गुरु, गुरु हरकिशन साहिब जी जब दिल्ली पहुंचे, तो वहां हैजे की महामारी फैली हुई थी. उन्होंने इस घर के कुएं जिसे आज सरोवर माना जाता है, से ताजा पानी देकर लोगों की पीड़ा में मदद की.

गुरु जी ने अपने चरण सरोवर के उस जल में रखकर अरदास की थी. और फिर उस जल से मरीजों को सहायता मिली. इस सरोवर के पानी में स्वास्थ्यवर्धक, आरोग्य वर्धक और पवित्र उपचार के गुण होने के कारण दुनिया भर से सिख इसका पवित्र जल घर लेकर जाते हैं. बैसाखी के दिन जरुरतमंदों को फसल का थोड़ा सा हिस्सा दान करने की परंपरा है. इस दौरान गरीबों में खीर व शरबत बांटे जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन जन सेवा करने से घर में बरकत बनी रहती है.

यह भी पढ़ेंः Lalit Modi Apologize: SC ने ललित मोदी को माफी मांगने का दिया निर्देश

शुक्रवार को मनाया जाएगा बैसाखी का महापर्व

नई दिल्ली: देश भर में बैसाखी का त्योहार शुक्रवार को मनाया जा रहा है. यह त्योहार मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा में मनाया जाता है. बैसाखी का त्योहार हर साल मेष संक्रांति के दिन मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन सूर्य, मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है. इसे ही मेष संक्राति कहा जाता है. भारत में सिख समुदाय के लोग मुख्य तौर पर इस त्योहार को मनाते हैं. सिख समुदाय बैसाखी को नए साल के रूप में भी मनाता है. इस दिन फसलों के पकने पर उनकी कटाई की जाती है, लेकिन दिल्ली के बांग्ला साहिब सिंह गुरुद्वारे में बैसाखी के दिन हर साल हजारों की संख्या में लोग मत्था टेकने के लिए आते हैं. यहां एक सरोवर है जिसके पानी के छींटे लोग खुद पर और अपने बच्चों पर डालते हैं. कुछ लोग नहाते भी हैं. मान्यता है कि इस सरोवर के पानी से सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं

ईटीवी भारत से बात करते हुए बंगला साहिब गुरुद्वारे के ग्रंथी शुगवान सिंह ने बताया कि सिखों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह जी ने बैसाखी के दिन ही 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ बनाया था, इसलिए भी सिख समुदाय इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं. बता दें, केसरगढ़ साहिब आनंदपुर में इस दिन बहुत बड़ा उत्सव होता है. ये वही जगह है जहां पर खालसा पंथ की स्थापना हुई थी. इसके बाद सिख धर्म के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया. बैसाखी के दिन ही सिख लोगों ने अपना सरनेम सिंह (शेर) स्वीकार किया. दरअसल यह टाइटल गुरु गोविंद सिंह के नाम से आया है.

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तस्वीर दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे की है. देखा जा सकता है कितनी भारी संख्या में श्रद्धालु मत्था टेकने के लिए पहुंच रहे हैं. खास बात है कि यहां सभी धर्म के लोग पहुंचते हैं और इस सरोवर में डुबकी भी लगाते हैं. उन्होंने बताया कि 1664 में सिखों के आठवें सिख गुरु, गुरु हरकिशन साहिब जी जब दिल्ली पहुंचे, तो वहां हैजे की महामारी फैली हुई थी. उन्होंने इस घर के कुएं जिसे आज सरोवर माना जाता है, से ताजा पानी देकर लोगों की पीड़ा में मदद की.

गुरु जी ने अपने चरण सरोवर के उस जल में रखकर अरदास की थी. और फिर उस जल से मरीजों को सहायता मिली. इस सरोवर के पानी में स्वास्थ्यवर्धक, आरोग्य वर्धक और पवित्र उपचार के गुण होने के कारण दुनिया भर से सिख इसका पवित्र जल घर लेकर जाते हैं. बैसाखी के दिन जरुरतमंदों को फसल का थोड़ा सा हिस्सा दान करने की परंपरा है. इस दौरान गरीबों में खीर व शरबत बांटे जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन जन सेवा करने से घर में बरकत बनी रहती है.

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