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साहित्य मंच कार्यक्रम में पधारे फिजी के लेखक, भाषाओं की प्रति जताई चिंता

दिल्ली में साहित्य के आकादमी मंच से मेलानेशिया फिजी द्वीप देश के लेखक प्रोफेसर सुब्रमनी ने अपने हाल ही में प्रकाशित उपन्यास फिजी मां का एक अंश प्रस्तुत किया.

साहित्य मंच कार्यक्रम में पधारे फिजी के लेखक
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Published : Nov 24, 2019, 1:40 PM IST

नई दिल्ली: साहित्य अकादमी में साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें दक्षिण प्रशांत महासागर के मेलानेशिया फिजी द्वीप देश के लेखक प्रोफेसर सुब्रमनी शामिल हुए.

लुप्त हो रही भाषाओं के प्रति चिंता
इस दौरान उन्होंने अपने हाल ही में प्रकाशित उपन्यास फिजी मां का एक अंश प्रस्तुत किया. उपन्यास अंश के पाठ से पहले उन्होंने विश्व की सभी लुप्त हो रही भाषाओं के प्रति चिंता भी जाहिर की. प्रोफेसर सुब्रह्मणि एक द्विभाषी लेखक हैं जो अंग्रेजी और हिंदी में लेखन करते हैं. साथ ही वो फिजी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी है.

'भाषा को बचाने के लिए आंदोलन की जरूरत'
प्रोफेसर सुब्रमनी ने कहा कि फिजी देश की दो भाषाएं लुप्त होने की कगार पर है. जिसमें एक है ई-तौकेया और दूसरी फिजी हिंदी. उनका कहना था कि नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर होकर एक अंधकार की ओर बढ़ रही है. फिजी में फिजी हिंदी की हालत बहुत खराब है उसे बचाने के लिए एक आंदोलन की जरूरत है.

लघु भारत के रूप में जाना जाता था फिजी
बता दें कि एक समय पर फिजी, लघु भारत के रूप में जाना जाता था और वहां हिंदी के कई समाचार पत्र पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती थी. इसके साथ ही मां उपन्यास के बारे में बताते हुए प्रोफेसर ने कहा कि यह 2 महिलाओं की कहानी है. जिसमें भारतीय लेखक जैसे रविंद्र नाथ टैगोर, राजा राव आदि के प्रभाव देखे जा सकते हैं.

नई दिल्ली: साहित्य अकादमी में साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें दक्षिण प्रशांत महासागर के मेलानेशिया फिजी द्वीप देश के लेखक प्रोफेसर सुब्रमनी शामिल हुए.

लुप्त हो रही भाषाओं के प्रति चिंता
इस दौरान उन्होंने अपने हाल ही में प्रकाशित उपन्यास फिजी मां का एक अंश प्रस्तुत किया. उपन्यास अंश के पाठ से पहले उन्होंने विश्व की सभी लुप्त हो रही भाषाओं के प्रति चिंता भी जाहिर की. प्रोफेसर सुब्रह्मणि एक द्विभाषी लेखक हैं जो अंग्रेजी और हिंदी में लेखन करते हैं. साथ ही वो फिजी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी है.

'भाषा को बचाने के लिए आंदोलन की जरूरत'
प्रोफेसर सुब्रमनी ने कहा कि फिजी देश की दो भाषाएं लुप्त होने की कगार पर है. जिसमें एक है ई-तौकेया और दूसरी फिजी हिंदी. उनका कहना था कि नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर होकर एक अंधकार की ओर बढ़ रही है. फिजी में फिजी हिंदी की हालत बहुत खराब है उसे बचाने के लिए एक आंदोलन की जरूरत है.

लघु भारत के रूप में जाना जाता था फिजी
बता दें कि एक समय पर फिजी, लघु भारत के रूप में जाना जाता था और वहां हिंदी के कई समाचार पत्र पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती थी. इसके साथ ही मां उपन्यास के बारे में बताते हुए प्रोफेसर ने कहा कि यह 2 महिलाओं की कहानी है. जिसमें भारतीय लेखक जैसे रविंद्र नाथ टैगोर, राजा राव आदि के प्रभाव देखे जा सकते हैं.

Intro:साहित्य अकादमी में साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें दक्षिण प्रशांत महासागर के मेलानेशिया फिजी द्वीप देश के लेखक प्रोफेसर सुब्रमनी शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने अपने हाल ही में प्रकाशित उपन्यास फिजी मां का एक अंश ही प्रस्तुत किया. उपन्यास अंश के पाठ से पहले उन्होंने विश्व की सभी लुप्त हो रही भाषाओं के प्रति चिंता भी जाहिर की.प्रोफेसर सुब्रह्मणि एक द्विभाषी लेखक हैं जो अंग्रेजी और हिंदी में लेखन करते हैं साथ ही वो फिजी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी है.


Body:प्रोफेसर सुब्रमनी ने कहा कि फिजी देश की दो भाषाएं लुप्त होने की कगार पर है जिसमें एक है ई-तौकेया और दूसरी फिजी हिंदी. उनका कहना था कि नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर होकर एक अंधकार की ओर बढ़ रही है, फिजी में फिजी हिंदी की हालत बहुत खराब है उसे बचाने के लिए एक आंदोलन की जरूरत है.





Conclusion:बता दें कि एक समय पर फिजी, लघु भारत के रूप में जाना जाता था और वहां हिंदी के कई समाचार पत्र पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती थी. इसके साथ ही मां उपन्यास के बारे में बताते हुए प्रोफेसर ने कहा कि यह 2 महिलाओं की कहानी है जिसमें भारतीय लेखक जैसे रविंद्र नाथ टैगोर, राजा राव आदि के प्रभाव देखे जा सकते हैं.

नोट- फोटो व्रैप से भेजी हैं
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