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सूफी कलाम और नृत्य की जुगलबंदी से मोहित हो गए दिल्ली के लोग

An Evening of Sufi Kalam and Raqs Program: दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में 'सूफी कलाम और रक्स की एक शाम' कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया. जिसमें प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना रानी खानम ने अपने कौशल से समां बांध दिया.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 30, 2023, 8:48 AM IST

An Evening of Sufi Kalam and Raqs Program

नई दिल्ली: राजधानी के इंडिया हैबिटेट सेंटर में प्रसिद्ध एकीकृत परफॉर्मिंग आर्ट संगठन आमद डांस सेंटर ने 'सूफी कलाम और रक्स की एक शाम' का भव्य आयोजन किया. साहित्य कला परिषद द्वारा समर्थित कार्यक्रम ने दर्शकों का मन मोह लिया. मंच पर कथक प्रस्तुति ने आलौकिक काव्य की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. मुख्य अतिथि डॉ. सच्चिदानंद जोशी (सदस्य सचिव, आईजीएनसीए) की उपस्थिति में संगीत, रहस्यवादी कविता और कथक की मनमोहक कलाओं की शोभा बढ़ी. इस शाम कथक प्रदर्शन के रूप में बाबा बुल्ले शाह, अजान फरीद, नवाब सादिक जंग बहादुर और हामिद कोलकाता वाले सहित प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं प्रस्तुत की गई.

प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना रानी खानम ने अपने कौशल से समां बांध दिया. उनके साथ जुगलबंदी के लिए मंच पर अमान अली (तबला), शुहेब हसन, ज़ोहैब हसन (गायन), फतेह अली (सितार), संजीव कुमार (ढोलक), निशा केसरी (पढंत) और रिधिमा सिंह (उद्घोषणा) की प्रतिभाशाली टीम भी मौजूद रही.

रानी खानम ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत प्रख्यात कवि हामिद कलकत्ता वाले द्वारा लिखित 'जरा खोलो जी किवरिया, महाराज मुईनुद्दीन' की प्रस्तुति से की. यह कलाम पीर (गुरु) और मुर्शिद (शिष्य) के बीच गहरे संबंध को खूबसूरती से बयां करता है, जो किसी के आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दर्शाता है. इसके बाद, उन्होंने हैदराबाद डेक्कन के नवाब सादिक जंग बहादुर द्वारा लिखित भक्ति परंपरा में निहित एक और कलाम प्रस्तुत किया, जिसका शीर्षक था 'कन्हैया, याद है कुछ भी हमारी.'

तीसरे खंड में सूफी संत अजान फकीर द्वारा पूरे असम में लोकप्रिय 'मोर मोनोत भेद भाव नहीं अल्लाह' नामक जिकिर दिखाया गया है. अंत में, रानी खानम ने बाबा बुल्ले शाह द्वारा लिखित 'होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह' की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस काव्यात्मक अभिव्यक्ति में, बुल्ले शाह पवित्र वाक्यांश 'बिस्मिल्लाह' का आह्वान करते हुए होली के उत्सव को प्रोत्साहित करते हैं. वह त्योहार के जीवंत रंगों और हमारे भीतर मौजूद दिव्य चेतना या तकवा के बीच मेल कराते हैं. आध्यात्मिक इरादे से होली खेलने से व्यक्ति परिवर्तन की अनुभूति कर सकता है, क्योंकि रंग दिव्य प्रेम के संचार का प्रतीक हैं.

इस अवसर पर खुशी जाहिर करते हुए, रानी खानम ने बताया, 'यह कार्यक्रम सूफी कविता और नृत्य के समृद्ध मेल के जरिये परमात्मा का उत्सव है. यह ऐसी यात्रा है जो सीमाओं से परे जाकर हमें हमारे आध्यात्मिक स्वयं के साथ जोड़ती है. प्रत्येक व्यक्ति में दिव्यता को सामने लाने के उद्देश्य से इस सांस्कृतिक यात्रा को प्रस्तुत करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.'

यह भी पढ़ें-साहित्य अकादमी का पुस्तक मेला 'पुस्तकायन' 1 दिसंबर से, जानें टाइमिंग सहित हर जानकारी

धार्मिक सीमाओं को पार करते हुए, सूफीवाद और भक्ति आत्मज्ञान और आत्म-प्राप्ति का सीधा मार्ग प्रदान करते हैं. सूफी कलाम और नृत्य व्यक्तियों के लिए दिव्य जागृति द्वार हैं. ये अनंत और सर्वव्यापी रास्ते आत्माओं को एक साथ लाते हैं. अनुयायियों और निर्माता के बीच एक गहरा आध्यात्मिक संबंध विकसित करते हैं. इस समारोह ने परिवर्तन की यात्रा का जश्न मनाया और सभी को सूफी और भक्ति परंपराओं की गहन उत्थान शक्ति का अनुभव करने के लिए आमंत्रित किया, जो असीम आनंददायक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है.

An Evening of Sufi Kalam and Raqs Program

नई दिल्ली: राजधानी के इंडिया हैबिटेट सेंटर में प्रसिद्ध एकीकृत परफॉर्मिंग आर्ट संगठन आमद डांस सेंटर ने 'सूफी कलाम और रक्स की एक शाम' का भव्य आयोजन किया. साहित्य कला परिषद द्वारा समर्थित कार्यक्रम ने दर्शकों का मन मोह लिया. मंच पर कथक प्रस्तुति ने आलौकिक काव्य की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. मुख्य अतिथि डॉ. सच्चिदानंद जोशी (सदस्य सचिव, आईजीएनसीए) की उपस्थिति में संगीत, रहस्यवादी कविता और कथक की मनमोहक कलाओं की शोभा बढ़ी. इस शाम कथक प्रदर्शन के रूप में बाबा बुल्ले शाह, अजान फरीद, नवाब सादिक जंग बहादुर और हामिद कोलकाता वाले सहित प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं प्रस्तुत की गई.

प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना रानी खानम ने अपने कौशल से समां बांध दिया. उनके साथ जुगलबंदी के लिए मंच पर अमान अली (तबला), शुहेब हसन, ज़ोहैब हसन (गायन), फतेह अली (सितार), संजीव कुमार (ढोलक), निशा केसरी (पढंत) और रिधिमा सिंह (उद्घोषणा) की प्रतिभाशाली टीम भी मौजूद रही.

रानी खानम ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत प्रख्यात कवि हामिद कलकत्ता वाले द्वारा लिखित 'जरा खोलो जी किवरिया, महाराज मुईनुद्दीन' की प्रस्तुति से की. यह कलाम पीर (गुरु) और मुर्शिद (शिष्य) के बीच गहरे संबंध को खूबसूरती से बयां करता है, जो किसी के आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दर्शाता है. इसके बाद, उन्होंने हैदराबाद डेक्कन के नवाब सादिक जंग बहादुर द्वारा लिखित भक्ति परंपरा में निहित एक और कलाम प्रस्तुत किया, जिसका शीर्षक था 'कन्हैया, याद है कुछ भी हमारी.'

तीसरे खंड में सूफी संत अजान फकीर द्वारा पूरे असम में लोकप्रिय 'मोर मोनोत भेद भाव नहीं अल्लाह' नामक जिकिर दिखाया गया है. अंत में, रानी खानम ने बाबा बुल्ले शाह द्वारा लिखित 'होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह' की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस काव्यात्मक अभिव्यक्ति में, बुल्ले शाह पवित्र वाक्यांश 'बिस्मिल्लाह' का आह्वान करते हुए होली के उत्सव को प्रोत्साहित करते हैं. वह त्योहार के जीवंत रंगों और हमारे भीतर मौजूद दिव्य चेतना या तकवा के बीच मेल कराते हैं. आध्यात्मिक इरादे से होली खेलने से व्यक्ति परिवर्तन की अनुभूति कर सकता है, क्योंकि रंग दिव्य प्रेम के संचार का प्रतीक हैं.

इस अवसर पर खुशी जाहिर करते हुए, रानी खानम ने बताया, 'यह कार्यक्रम सूफी कविता और नृत्य के समृद्ध मेल के जरिये परमात्मा का उत्सव है. यह ऐसी यात्रा है जो सीमाओं से परे जाकर हमें हमारे आध्यात्मिक स्वयं के साथ जोड़ती है. प्रत्येक व्यक्ति में दिव्यता को सामने लाने के उद्देश्य से इस सांस्कृतिक यात्रा को प्रस्तुत करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.'

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धार्मिक सीमाओं को पार करते हुए, सूफीवाद और भक्ति आत्मज्ञान और आत्म-प्राप्ति का सीधा मार्ग प्रदान करते हैं. सूफी कलाम और नृत्य व्यक्तियों के लिए दिव्य जागृति द्वार हैं. ये अनंत और सर्वव्यापी रास्ते आत्माओं को एक साथ लाते हैं. अनुयायियों और निर्माता के बीच एक गहरा आध्यात्मिक संबंध विकसित करते हैं. इस समारोह ने परिवर्तन की यात्रा का जश्न मनाया और सभी को सूफी और भक्ति परंपराओं की गहन उत्थान शक्ति का अनुभव करने के लिए आमंत्रित किया, जो असीम आनंददायक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है.

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