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शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस में बिखराव! क्या AAP के लिए होगा फायदेमंद

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Published : Jul 27, 2019, 5:04 PM IST

2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी संगठनात्मक रूप से मजबूत होती दिख रही थी, लेकिन अचानक हुए शीला दीक्षित के निधन ने कांग्रेस को बिखराव की स्थिति में ला दिया है.

शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस में बिखराव! etv bharat

नई दिल्ली: 2013 और 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार 15 साल की सत्ता विरोधी लहर और अरविंद केजरीवाल के नए चेहरे और नए वादों का नतीजा थी. लेकिन उसके ठीक बाद से ही हालात बदलने लगे और यह निगम चुनाव में भी साफ तौर पर नजर आया, जब क्लीन स्वीप के सपने देख रही आम आदमी पार्टी को ऐच्छिक सफलता नहीं मिल सकी और इसकी एक वजह कांग्रेस पार्टी रही.

शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस में बिखराव!

इसके ठीक बाद संगठनात्मक रूप से कमजोर दिख रही कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मजबूत बनाने के लिए आलाकमान ने शीला दीक्षित को नेतृत्व सौंपा और शीला के अनुभवी चेहरे ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस को एकजुट करने का काम किया. यह शीला दीक्षित के नेतृत्व का ही नतीजा था कि तीनों कार्यकारी अध्यक्ष भी एक साथ काम करते दिखे.

कांग्रेस ने किया बेहतर प्रदर्शन
कांग्रेस की इसी संगठनात्मक मजबूती ने सातों सीटों पर जीत का सपना देख रहे रही आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. 2014 में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी 5 सीटों पर तीसरे पायदान पर पहुंच गई और यही वजह भी थी कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी तभी से तैयारियों में जुट गई थी.

कांग्रेस में बिखराव AAP के लिए फायदेमंद
अचानक हुए शीला दीक्षित के निधन ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में बिखराव की स्थिति ला दी है और यह आम आदमी पार्टी के लिए सियासी रूप से सुखद स्थिति है. बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच का वैचारिक विभेद जगजाहिर है और इनका वोट बैंक भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग है, लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को मिलने वाले ज्यादातर वोट एक विचारधारा और समाज से जुड़े हैं. ऐसे में नेतृत्व हीनता की स्थिति में दिख रही कांग्रेस पार्टी का सीधा फायदा आम आदमी पार्टी उठा सकती है.

शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस में बिखराव!
लोकसभा चुनाव कैम्पेन और उसके बाद भी कांग्रेस पार्टी कहीं ना कहीं लोगों के मन में या बात बैठाने में कुछ हद तक कामयाब रही थी कि दिल्ली की जो वर्तमान में सकारात्मक स्थिति है उसमें शीला दीक्षित का योगदान है. लोग इस बात को स्वीकार भी करने लगे थे, लेकिन अब शीला दीक्षित का ही न रहने से कांग्रेस इसका चुनावी फायदा नहीं उठा सकेगी और इसे भी आम आदमी पार्टी अपने हिसाब से भुनाएगी.

अब देखने वाली बात होगी कि 2015 में खुद के नए चेहरे के बल पर दिल्ली फतह करने वाली आम आदमी पार्टी, इस बार चेहरा विहीन कांग्रेस के बिखराव का कितना फायदा उठा पाती है.

नई दिल्ली: 2013 और 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार 15 साल की सत्ता विरोधी लहर और अरविंद केजरीवाल के नए चेहरे और नए वादों का नतीजा थी. लेकिन उसके ठीक बाद से ही हालात बदलने लगे और यह निगम चुनाव में भी साफ तौर पर नजर आया, जब क्लीन स्वीप के सपने देख रही आम आदमी पार्टी को ऐच्छिक सफलता नहीं मिल सकी और इसकी एक वजह कांग्रेस पार्टी रही.

शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस में बिखराव!

इसके ठीक बाद संगठनात्मक रूप से कमजोर दिख रही कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मजबूत बनाने के लिए आलाकमान ने शीला दीक्षित को नेतृत्व सौंपा और शीला के अनुभवी चेहरे ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस को एकजुट करने का काम किया. यह शीला दीक्षित के नेतृत्व का ही नतीजा था कि तीनों कार्यकारी अध्यक्ष भी एक साथ काम करते दिखे.

कांग्रेस ने किया बेहतर प्रदर्शन
कांग्रेस की इसी संगठनात्मक मजबूती ने सातों सीटों पर जीत का सपना देख रहे रही आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. 2014 में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी 5 सीटों पर तीसरे पायदान पर पहुंच गई और यही वजह भी थी कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी तभी से तैयारियों में जुट गई थी.

कांग्रेस में बिखराव AAP के लिए फायदेमंद
अचानक हुए शीला दीक्षित के निधन ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में बिखराव की स्थिति ला दी है और यह आम आदमी पार्टी के लिए सियासी रूप से सुखद स्थिति है. बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच का वैचारिक विभेद जगजाहिर है और इनका वोट बैंक भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग है, लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को मिलने वाले ज्यादातर वोट एक विचारधारा और समाज से जुड़े हैं. ऐसे में नेतृत्व हीनता की स्थिति में दिख रही कांग्रेस पार्टी का सीधा फायदा आम आदमी पार्टी उठा सकती है.

शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस में बिखराव!
लोकसभा चुनाव कैम्पेन और उसके बाद भी कांग्रेस पार्टी कहीं ना कहीं लोगों के मन में या बात बैठाने में कुछ हद तक कामयाब रही थी कि दिल्ली की जो वर्तमान में सकारात्मक स्थिति है उसमें शीला दीक्षित का योगदान है. लोग इस बात को स्वीकार भी करने लगे थे, लेकिन अब शीला दीक्षित का ही न रहने से कांग्रेस इसका चुनावी फायदा नहीं उठा सकेगी और इसे भी आम आदमी पार्टी अपने हिसाब से भुनाएगी.

अब देखने वाली बात होगी कि 2015 में खुद के नए चेहरे के बल पर दिल्ली फतह करने वाली आम आदमी पार्टी, इस बार चेहरा विहीन कांग्रेस के बिखराव का कितना फायदा उठा पाती है.

Intro:2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी संगठनात्मक रूप से मजबूत होती दिख रही थी, लेकिन अचानक हुए शीला दीक्षित के निधन ने कांग्रेस को बिखराव की स्थिति में ला दिया और इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को मिलता दिख रहा है.


Body:नई दिल्ली: 2013 और 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हुई बुरी हार 15 साल की सत्ता विरोधी लहर और अरविंद केजरीवाल के नए चेहरे और नए वादों का नतीजा थी. लेकिन उसके ठीक बाद से ही हालात बदलने लगे और यह निगम चुनाव में भी साफ तौर पर नजर आया, जब क्लीन स्वीप के सपने देख रही आम आदमी पार्टी को ऐच्छिक सफलता नहीं मिल सकी और इसका कारण भी एक तरह से कांग्रेस पार्टी ही रही.

इसके ठीक बाद संगठनात्मक रूप से कमजोर दिख रही कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मजबूत बनाने के लिए आलाकमान ने शीला दीक्षित को नेतृत्व सौंपा और शीला के अनुभवी चेहरे ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस को एकजुट करने का काम किया. यह शीला दीक्षित के नेतृत्व का ही नतीजा था कि तीनों कार्यकारी अध्यक्ष भी एक साथ काम करते दिखे.

कांग्रेस की इसी संगठनात्मक मजबूती ने सातों सीटों पर जीत का सपना देख रहे रही आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. 2014 में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी 5 सीटों पर तीसरे पायदान पर पहुंच गई और यही कारण भी था कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी तभी से तैयारियों में जुट गई थी.

लेकिन अचानक हुए शीला दीक्षित के निधन ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में बिखराव की स्थिति ला दी है और यह आम आदमी पार्टी के लिए सियासी रूप से सुखद स्थिति है. भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच का वैचारिक विभेद जगजाहिर है और इनका वोट बैंक भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग है, लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को मिलने वाले ज्यादातर वोट एक विचारधारा और समाज से जुड़े हैं. ऐसे में नेतृत्व हीनता की स्थिति में दिख रही कांग्रेस पार्टी का सीधा फायदा आम आदमी पार्टी उठा सकती है.

लोकसभा चुनाव कैम्पेन और उसके बाद भी कांग्रेस पार्टी कहीं ना कहीं लोगों के मन में या बात बैठाने में कुछ हद तक कामयाब रही थी कि दिल्ली की जो वर्तमान में सकारात्मक स्थिति है उसमें शीला दीक्षित का योगदान है. लोग इस बात को स्वीकार भी करने लगे थे, लेकिन अब शीला दीक्षित का ही न रहने से कांग्रेस इसका चुनावी फायदा नहीं उठा सकेगी और इसे भी आम आदमी पार्टी अपने हिसाब से भुनाएगी.




Conclusion:अब देखने वाली बात होगी कि 2015 में खुद के नए चेहरे के बल पर दिल्ली फतह करने वाली आम आदमी पार्टी इसबार चेहरा विहीन कांग्रेस के बिखराव का कितना फायदा उठा पाती है.
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