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दिल्ली के एजुकेशन सिस्टम में 5 बदलाव किए, अभी और करेंगेः मनीष सिसोदिया

गुरुवार को दिल्ली में आईआईटी द्वारा आयोजित 13वें एजुकेशन कांफ्रेंस ‘एडूकार्निवल’ का आयोजन किया गया. इसमें डिप्टी CM मनीष सिसोदिया ने एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाए और अपने किए गए बदलाव को बताया. साथ ही टीचरों से कहा कि स्टूडेंट्स को हमेशा सीखने के लिए प्रेरित करते रहे.

डीबीएसई ने रिपोर्ट कार्ड में भी बदलाव किए
डीबीएसई ने रिपोर्ट कार्ड में भी बदलाव किए
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Published : Dec 29, 2022, 5:43 PM IST

नई दिल्ली: शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण सुधार की बात की जाए तो वो मौजूदा परीक्षा पद्धति में सुधार होगा. एजुकेशन सिस्टम में जब तक मौजूदा परीक्षा प्रणाली को नहीं बदला जायेगा तब तक पूरा का पूरा एजुकेशन सिस्टम साल के अंत में होने वाली 3 घंटे की परीक्षा का गुलाम बना रहेगा. और एजुकेशन सिस्टम सीखने का जरिया नहीं बल्कि परीक्षा में पास होने की जंग बनकर रह जायेगा. यह कहना है दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का. उन्होंने यह बातें गुरुवार को आईआईटी दिल्ली द्वारा आयोजित 13वें एजुकेशन कांफ्रेंस ‘एडूकार्निवल’ में कही है.

उन्होंने कहा कि मौजूदा परीक्षा प्रणाली बच्चों के लर्निंग आउटकम को जानने, उसकी कमियों-खूबियों को जानने के बजाय उसे पास या फेल का तमगा देने के लिए बनी हुई है. आज पूरा शिक्षा तंत्र परीक्षा का गुलाम बना हुआ है. ऐसे में अगर हमें शिक्षा सुधार के लिए काम करना है तो सबसे पहले मौजूदा मूल्यांकन पद्धति को बदलना होगा, जो साल भर के बच्चे के प्रदर्शन को दिखाने के बजाय साल के अंत में होने वाली 3 घंटे की परीक्षा में बच्चे की रटने की क्षमता के आधार पर उसका आंकलन करता है.

उन्होंने कहा कि परीक्षा प्रणाली के बोझ तले शिक्षा व्यवस्था चरमरा चुकी है, क्योंकि मौजूदा परीक्षा प्रणाली बच्चों के लर्निंग आउटकम को जानने, उसकी कमियों-खूबियों को जानने के बजाय उसे पास या फेल का तमगा देने के लिए बनी हुई है. भारत में दशकों से ये बातें की जा रही है कि हमारी परीक्षा प्रणाली कैसी होनी चाहिए. 1964 में कोठारी आयोग ने कहा प्राथमिक स्तर पर परीक्षा से विद्यार्थियों को बुनियादी कौशल में अपनी उपलब्धि में सुधार करने और सही आदतों और दृष्टिकोणों को विकसित करने में मदद मिलनी चाहिए.

दिल्ली में 13वां एजुकेशन कांफ्रेंस ‘एडूकार्निवल’ का आयोजन.
दिल्ली में 13वां एजुकेशन कांफ्रेंस ‘एडूकार्निवल’ का आयोजन.

यह भी पढ़ेंः दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 12वीं के छात्रों को सीयूईटी की तैयारी कराएंगे शिक्षक

सिसोदिया ने कहा कि मूल्यांकन पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 में कहा गया कि बच्चों के प्रदर्शन का आंकलन सीखने और सिखाने की किसी भी प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है. इसलिए शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए बेहतर शैक्षिक रणनीति के हिस्से के रूप में परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए. राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 में भी इस बात पर जोर दिया गया कि मूल्यांकन का प्राथमिक उद्देश्य वास्तव में सीखने के लिए होगा. यह शिक्षक और छात्र और संपूर्ण स्कूली शिक्षा प्रणाली को सभी छात्रों के लिए सीखने और उनके सर्वांगीन विकास के के लिए सीखने-सीखाने के तौर-तरीकों को लगातार संशोधित करने में मदद करेगा.

शिक्षण मूल्यांकन प्रणाली में 5 प्रमुख बदलाव किएः डिप्टी CM ने कहा कि परीक्षा प्रणाली को बदलने के लिए हमने दिल्ली सरकार के कुछ स्कूलों में अपने नए बोर्ड- दिल्ली बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन (एक ऐसा बोर्ड जिसका उद्देश्य सिर्फ परीक्षा आयोजित करना नहीं है, बल्कि सभी कक्षाओं में सीखने पर केंद्रित एक मूल्यांकन प्रणाली बनाना है.) के साथ कुछ अनूठे बदलाव करने शुरू किए हैं और इसके बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं. उन्होंने बताया कि डीबीएसई के माध्यम से हमने पारंपरिक शिक्षण मूल्यांकन प्रणाली में 5 प्रमुख बदलाव किए हैं.

  • साल के अंत में होने वाले हाई स्टेक परीक्षा के बजाय, साल भर निरंतर आंकलन ताकि बच्चे के हर पक्ष का सही मूल्यांकन किया जा सकें
  • पेन-पेपर परीक्षाओं के अलावा नई मूल्यांकन विधियों जैसे परियोजनाओं, प्रदर्शन, प्रस्तुतियों, रिपोर्ट आदि को अपनाना
  • बच्चों में रटकर की प्रधानता को ख़त्म कर कॉन्सेप्ट्स को समझने, उसे जांचने और परखने का मौका दिया गया
  • बच्चों के उत्तर को सही-गलत बताने के बजाय उनका रूब्रिक आधारित मूल्यांकन
  • मार्क्स या ग्रेड देने के बजाय विपरीत विस्तृत गुणात्मक प्रतिक्रिया को प्राथमिकता

रिपोर्ट कार्ड में भी बदलाव किए गएः सिसोदिया ने बताया कि डीबीएसई ने रिपोर्ट कार्ड में भी बदलाव किए और पारंपरिक रिपोर्ट कार्ड जो बच्चों के अंक या पास-फेल बताते थे उसके बजाय नए रिपोर्ट कार्ड में मात्रात्मक के बजाय गुणात्मक आंकलन के माध्यम से सब्जेक्ट्स स्पेसिफिक में बच्चे के विभिन्न बेहतरी व कमजोरी के क्षेत्र के विषय में विस्तृत तरीके से फोकस किया गया. ताकि उस पर आगे कार्य किया जा सकें. आज पूरी परीक्षा प्रणाली में इसी प्रकार के बदलाव की जरूरत है, जहां बच्चा पास हुआ या फेल ये बताने के बजाय इस बात पर फोकस किया जाए कि बच्चे में क्या कमियां और खूबियां है. उसकी कमियों को कैसे दूर किया जा सकता है और उसकी खूबियों को और कैसे निखारा जा सकता है. उन्होंने कहा कि यदि हम ऐसा करने में सफल हो गए तो बच्चे आगे बढ़ पाएंगे वरना वो हमेशा के लिए परीक्षा का गुलाम बनकर ही रह जायेंगे.

यह भी पढ़ेंः मनीष सिसोदिया ने की दिल्ली सरकार की परियोजनाओं की समीक्षा

नई दिल्ली: शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण सुधार की बात की जाए तो वो मौजूदा परीक्षा पद्धति में सुधार होगा. एजुकेशन सिस्टम में जब तक मौजूदा परीक्षा प्रणाली को नहीं बदला जायेगा तब तक पूरा का पूरा एजुकेशन सिस्टम साल के अंत में होने वाली 3 घंटे की परीक्षा का गुलाम बना रहेगा. और एजुकेशन सिस्टम सीखने का जरिया नहीं बल्कि परीक्षा में पास होने की जंग बनकर रह जायेगा. यह कहना है दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का. उन्होंने यह बातें गुरुवार को आईआईटी दिल्ली द्वारा आयोजित 13वें एजुकेशन कांफ्रेंस ‘एडूकार्निवल’ में कही है.

उन्होंने कहा कि मौजूदा परीक्षा प्रणाली बच्चों के लर्निंग आउटकम को जानने, उसकी कमियों-खूबियों को जानने के बजाय उसे पास या फेल का तमगा देने के लिए बनी हुई है. आज पूरा शिक्षा तंत्र परीक्षा का गुलाम बना हुआ है. ऐसे में अगर हमें शिक्षा सुधार के लिए काम करना है तो सबसे पहले मौजूदा मूल्यांकन पद्धति को बदलना होगा, जो साल भर के बच्चे के प्रदर्शन को दिखाने के बजाय साल के अंत में होने वाली 3 घंटे की परीक्षा में बच्चे की रटने की क्षमता के आधार पर उसका आंकलन करता है.

उन्होंने कहा कि परीक्षा प्रणाली के बोझ तले शिक्षा व्यवस्था चरमरा चुकी है, क्योंकि मौजूदा परीक्षा प्रणाली बच्चों के लर्निंग आउटकम को जानने, उसकी कमियों-खूबियों को जानने के बजाय उसे पास या फेल का तमगा देने के लिए बनी हुई है. भारत में दशकों से ये बातें की जा रही है कि हमारी परीक्षा प्रणाली कैसी होनी चाहिए. 1964 में कोठारी आयोग ने कहा प्राथमिक स्तर पर परीक्षा से विद्यार्थियों को बुनियादी कौशल में अपनी उपलब्धि में सुधार करने और सही आदतों और दृष्टिकोणों को विकसित करने में मदद मिलनी चाहिए.

दिल्ली में 13वां एजुकेशन कांफ्रेंस ‘एडूकार्निवल’ का आयोजन.
दिल्ली में 13वां एजुकेशन कांफ्रेंस ‘एडूकार्निवल’ का आयोजन.

यह भी पढ़ेंः दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 12वीं के छात्रों को सीयूईटी की तैयारी कराएंगे शिक्षक

सिसोदिया ने कहा कि मूल्यांकन पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 में कहा गया कि बच्चों के प्रदर्शन का आंकलन सीखने और सिखाने की किसी भी प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है. इसलिए शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए बेहतर शैक्षिक रणनीति के हिस्से के रूप में परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए. राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 में भी इस बात पर जोर दिया गया कि मूल्यांकन का प्राथमिक उद्देश्य वास्तव में सीखने के लिए होगा. यह शिक्षक और छात्र और संपूर्ण स्कूली शिक्षा प्रणाली को सभी छात्रों के लिए सीखने और उनके सर्वांगीन विकास के के लिए सीखने-सीखाने के तौर-तरीकों को लगातार संशोधित करने में मदद करेगा.

शिक्षण मूल्यांकन प्रणाली में 5 प्रमुख बदलाव किएः डिप्टी CM ने कहा कि परीक्षा प्रणाली को बदलने के लिए हमने दिल्ली सरकार के कुछ स्कूलों में अपने नए बोर्ड- दिल्ली बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन (एक ऐसा बोर्ड जिसका उद्देश्य सिर्फ परीक्षा आयोजित करना नहीं है, बल्कि सभी कक्षाओं में सीखने पर केंद्रित एक मूल्यांकन प्रणाली बनाना है.) के साथ कुछ अनूठे बदलाव करने शुरू किए हैं और इसके बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं. उन्होंने बताया कि डीबीएसई के माध्यम से हमने पारंपरिक शिक्षण मूल्यांकन प्रणाली में 5 प्रमुख बदलाव किए हैं.

  • साल के अंत में होने वाले हाई स्टेक परीक्षा के बजाय, साल भर निरंतर आंकलन ताकि बच्चे के हर पक्ष का सही मूल्यांकन किया जा सकें
  • पेन-पेपर परीक्षाओं के अलावा नई मूल्यांकन विधियों जैसे परियोजनाओं, प्रदर्शन, प्रस्तुतियों, रिपोर्ट आदि को अपनाना
  • बच्चों में रटकर की प्रधानता को ख़त्म कर कॉन्सेप्ट्स को समझने, उसे जांचने और परखने का मौका दिया गया
  • बच्चों के उत्तर को सही-गलत बताने के बजाय उनका रूब्रिक आधारित मूल्यांकन
  • मार्क्स या ग्रेड देने के बजाय विपरीत विस्तृत गुणात्मक प्रतिक्रिया को प्राथमिकता

रिपोर्ट कार्ड में भी बदलाव किए गएः सिसोदिया ने बताया कि डीबीएसई ने रिपोर्ट कार्ड में भी बदलाव किए और पारंपरिक रिपोर्ट कार्ड जो बच्चों के अंक या पास-फेल बताते थे उसके बजाय नए रिपोर्ट कार्ड में मात्रात्मक के बजाय गुणात्मक आंकलन के माध्यम से सब्जेक्ट्स स्पेसिफिक में बच्चे के विभिन्न बेहतरी व कमजोरी के क्षेत्र के विषय में विस्तृत तरीके से फोकस किया गया. ताकि उस पर आगे कार्य किया जा सकें. आज पूरी परीक्षा प्रणाली में इसी प्रकार के बदलाव की जरूरत है, जहां बच्चा पास हुआ या फेल ये बताने के बजाय इस बात पर फोकस किया जाए कि बच्चे में क्या कमियां और खूबियां है. उसकी कमियों को कैसे दूर किया जा सकता है और उसकी खूबियों को और कैसे निखारा जा सकता है. उन्होंने कहा कि यदि हम ऐसा करने में सफल हो गए तो बच्चे आगे बढ़ पाएंगे वरना वो हमेशा के लिए परीक्षा का गुलाम बनकर ही रह जायेंगे.

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