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दिल्ली में मनाया गया 'बलूचिस्तान दिवस', बलूचों के संघर्ष को किया गया याद

दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में 11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस मनाया गया है. इस दिन आयोजत कार्यक्रम में बलूचों के संघर्ष को याद किया गया.

11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस मनाया गया etv bharat
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Published : Aug 11, 2019, 5:02 PM IST

नई दिल्ली: 11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी कड़ी में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें बलूचों के संघर्ष को याद किया गया और उनके साथ खड़े होने की अपील की गई.

11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस मनाया गया

बलोच संघर्ष को किया याद
इस कार्यक्रम में बलोच संघर्ष के साक्षी रहे कई लोग मौजूद थे. वहीं इस मुद्दे पर रिसर्च कर रहे लोगों ने भी इस मौके पर बलोच संघर्ष को याद किया. हिन्द बलोच फोरम के संस्थापक स्वामी जितेन्द्रानंदनंद सरस्वती भी यहां उपस्थित थे. जिन्होंने मानवता के नाते बलोचों के साथ खड़े होने का आह्वान किया.

11 august is celebrated as balochistan independence day programe in constitution club
हिन्द बलोच फोरम के संस्थापक स्वामी जितेन्द्रानंदनंद सरस्वती
मीडिया से बातचीत में जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि 11 अगस्त 1947 से 27 मार्च 1939 तक बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश रहा है. यह सर्वमान्य तथ्य है. बलोच आज अपनी संस्कृति और अपनी प्राचीनतम सभ्यताओं व विरासत की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. इसलिए हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि उनके साथ हम खड़े हों.

'52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज भवानी का मंदिर'
जितेन्द्रानंद सरस्वती ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में आज हम हिंदुओं का कोई एक धार्मिक तीर्थ स्थल मौजूद है, तो वो बलूचिस्तान में ही है. जो हमारी 52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज भवानी का मंदिर है. इसलिए बलूचिस्तान की संस्कृति से पाकिस्तान की संस्कृति की तुलना नहीं की जा सकती. बलूचिस्तान पाकिस्तान के पैदा होने से बहुत पहले अपने आप में एक स्वतंत्र राष्ट्र था.
जितेन्द्रानंद सरस्वती ने यहां उस संगठन BLA का भी जिक्र किया. जो बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ रहा है. इस पर अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित करने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका ने उसे स्वीकार तो किया. भले किसी रूप में किया हो और आज हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम उनके साथ खड़े हों.

नई दिल्ली: 11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी कड़ी में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें बलूचों के संघर्ष को याद किया गया और उनके साथ खड़े होने की अपील की गई.

11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस मनाया गया

बलोच संघर्ष को किया याद
इस कार्यक्रम में बलोच संघर्ष के साक्षी रहे कई लोग मौजूद थे. वहीं इस मुद्दे पर रिसर्च कर रहे लोगों ने भी इस मौके पर बलोच संघर्ष को याद किया. हिन्द बलोच फोरम के संस्थापक स्वामी जितेन्द्रानंदनंद सरस्वती भी यहां उपस्थित थे. जिन्होंने मानवता के नाते बलोचों के साथ खड़े होने का आह्वान किया.

11 august is celebrated as balochistan independence day programe in constitution club
हिन्द बलोच फोरम के संस्थापक स्वामी जितेन्द्रानंदनंद सरस्वती
मीडिया से बातचीत में जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि 11 अगस्त 1947 से 27 मार्च 1939 तक बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश रहा है. यह सर्वमान्य तथ्य है. बलोच आज अपनी संस्कृति और अपनी प्राचीनतम सभ्यताओं व विरासत की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. इसलिए हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि उनके साथ हम खड़े हों.

'52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज भवानी का मंदिर'
जितेन्द्रानंद सरस्वती ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में आज हम हिंदुओं का कोई एक धार्मिक तीर्थ स्थल मौजूद है, तो वो बलूचिस्तान में ही है. जो हमारी 52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज भवानी का मंदिर है. इसलिए बलूचिस्तान की संस्कृति से पाकिस्तान की संस्कृति की तुलना नहीं की जा सकती. बलूचिस्तान पाकिस्तान के पैदा होने से बहुत पहले अपने आप में एक स्वतंत्र राष्ट्र था.
जितेन्द्रानंद सरस्वती ने यहां उस संगठन BLA का भी जिक्र किया. जो बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ रहा है. इस पर अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित करने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका ने उसे स्वीकार तो किया. भले किसी रूप में किया हो और आज हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम उनके साथ खड़े हों.

Intro:11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी कड़ी में दिल्ली के कन्स्टीट्यूशन क्लब में आज एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें बलूचों के संघर्ष को याद किया गया और उनके साथ खड़े होने की अपील की गई


Body:नई दिल्ली: इस कार्यक्रम में बलोच संघर्ष के साक्षी रहे कई लोग मौजूद थे, वहीं इस मुद्दे पर रिसर्च कर रहे लोगों ने भी इस मौके पर बलोच संघर्ष को याद किया. हिन्द बलोच फोरम के संस्थापक स्वामी जितेन्द्रानंदनंद सरस्वती भी यहां उपस्थित थे, जिन्होंने मानवता के नाते बलोचों के साथ खड़े होने का आह्वान किया.

यहां मीडिया से बातचीत में जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि 11 अगस्त 1947 से 27 मार्च 1939 तक बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश रहा है और यह सर्वमान्य तथ्य है. बलोच आज अपनी संस्कृति और अपनी प्राचीनतम सभ्यताओं व विरासत की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं और हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि उनके साथ खड़े हों.

जितेन्द्रानंद सरस्वती ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में आज हम हिंदुओं का कोई एक धार्मिक तीर्थ स्थल मौजूद है, तो वो बलूचिस्तान में ही है, जो हमारी 52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज भवानी का मंदिर है. इसलिए बलूचिस्तान की संस्कृति से पाकिस्तान की संस्कृति की तुलना नहीं की जा सकती. बलूचिस्तान पाकिस्तान के पैदा होने से बहुत पहले अपने आप में एक स्वतंत्र राष्ट्र था.




Conclusion:जितेन्द्रानंद सरस्वती ने यहां उस संगठन बीएलए का भी जिक्र किया, जो बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ रहा है. इस पर अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित करने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका ने उसे स्वीकार तो किया, भले किसी रूप में किया हो और आज हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम उनके साथ खड़े हों.
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