नई दिल्ली: काफी उतार चढ़ाव के साथ इस साल का आखिरी महीना भी बीतने वाला है, जिसके बाद हम सब नए साल का स्वागत करेंगे. लेकिन साल 2022 में बहुत कुछ ऐसा देखने को मिला जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था. इन बदलावों से शिक्षा का क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा. इस साल, 2020 कोरोना महामारी के बाद पहली बार दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा दो टर्म में आयोजित की गई जिसमें दसवीं और बारहवीं के परिणाम पहली बार एक दिन में ही घोषित किए गए. वहीं, दूसरी तरफ पहली बार ऐसा हुआ कि दिल्ली विश्व विद्यालय (डीयू) के संबद्ध कॉलेजों में स्नातक प्रोग्राम में दाखिला बारहवीं के अंकों पर नहीं, बल्कि कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET UG) की परीक्षा के अंकों के आधार पर हुए. आइए जानते हैं इन चीजों के बारे में विस्तार से..
पहली बार साथ आए दसवीं और बारहवीं के परिणाम: साल 2021 में कोरोना महामारी के चलते बोर्ड की परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी. वहीं अगले सत्र के लिए सीबीएसई ने तय किया कि आगे कोरोना के चलते परीक्षा पर इसका असर न पड़े, इसलिए पहली बार दो टर्म में बोर्ड की परीक्षा ली गई. वहीं सीबीएसई ने पहली बार एक ही दिन में 10वीं 12वीं का परिणाम जारी किया, जहां 64,908 छात्रों ने 10वीं के बोर्ड परिणाम में 95 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त किए. अगर पास प्रतिशत की बात करें तो साल 2022 में पास प्रतिशत 3.10 रहा. वहीं साल 2021 में 2.76 पास प्रतिशत के साथ 57,824 छात्रों ने, साल 2020 में 2.23 पास प्रतिशत के साथ 41,804 छात्रों ने और साल 2019 में 3.25 पास प्रतिशत के साथ 57,256 छात्रों ने 95 फीसदी से अधिक अंक पाए थे. इसके अलावा 11.32 पास प्रतिशत के साथ 2,36,993 छात्रों ने 90 फीसदी से अधिक अंक पाए. वहीं साल 2021 में 9.58 पास प्रतिशत के साथ 2,00,962 , साल 2020 में 9.84 पास प्रतिशत के साथ 1,84,358 और साल 2019 में 12.78 पास प्रतिशत के साथ 2,25,143 छात्रों ने 90 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त किए.
अगर 12वीं कक्षा की बात करें, तो इस साल 2.33 पास प्रतिशत के साथ 33,432 छात्रों ने 95 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त किए. इससे पहले साल 2021 में 5.37 पास प्रतिशत के साथ 70,004, साल 2020 में 3.24 पास प्रतिशत के साथ 38,686 और साल 2019 में 17,693 छात्रों ने 95 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त किए थे. इसके अतिरिक्त, इस साल 9.39 पास प्रतिशत के साथ 1,34,797 छात्रों ने 90 फीसदी से ज्यादा अंक प्राप्त किए. इससे पहले साल 2021 में 11.51 पास प्रतिशत के साथ 1,50,152, साल 2020 में 13.24 पास प्रतिशत के साथ 1,57,934 और साल 2019 में 94,299 छात्रों ने 90 फीसदी से ज्यादा अंक प्राप्त किए थे. इन सब के अलावा, इस साल 1 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स की कंपार्टमेंट आई. वहीं दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बारहवीं में छात्रों का पास प्रतिशत 96 फीसदी, और दसवीं में 81 फीसदी रहा. देखा जाए तो निजी स्कूलों में इसकी तुलना में पास प्रतिशत अच्छा रहा.
ऑनलाइन पढ़ाई खत्म, ऑफलाइन की हुई शुरुआत: यह साल छात्रों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा. जैसे छात्र ऑनलाइन पढ़ाई से बोरियत महसूस करने लगे थे जिससे अभिभावक काफी परेशान हो रहे थे. कुछ संस्थानों के द्वारा छात्रों पर हुए शोध में यह निकल कर आया कि ऑनलाइन पढ़ाई और ज्यादा समय मोबाइल पर बीतने से छात्र चिड़चिड़े हो गए हैं. इधर कोरोना की रफ्तार धीमी हुई तो दिल्ली के स्कूलों में नए सत्र से ऑफलाइन मोड में पढ़ाई का संचालन करने का आदेश आया. बच्चे करीब दो साल बाद एक बार फिर से स्कूल जाने लगे. जब छात्र स्कूलों में पूरी क्षमता के साथ पहुंचे तो उन्हें एक फिर अपने गुरुओं का सानिध्य और वही पुरानी अनुभूती मिली, जिससे उनकी बोरियत खत्म हुई.
CUET के आधार पर हुए कॉलेज में दाखिले: इस साल शिक्षा के क्षेत्र में एक और चीज पहली बार हुई. इस बार दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले 12वीं के अंकों के आधार पर नहीं, बल्कि बल्कि कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET यूजी) के अंकों के आधार पर हुए. विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए एंट्रेंस एग्जाम 15 जुलाई से 30 अगस्त तक भारत के 259 शहरों और भारत के बाहर 9 शहरों में छह फेज में आयोजित किया गया, जिसमें लगभग 15 लाख उम्मीदवारों ने सीयूईटी एग्जाम दिया. यह पहली बार था दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए 12वीं के अंकों को तवज्जो नहीं दी गई.
कॉलेजों में भी शुरू हुई ऑफलाइन मोड में पढ़ाई, हिजाब पर मचा बवाल: कोरोना महामारी के मामले कम होने पर इस साल छात्रों के लिए एक बार कॉलेज खोल दिए गए ताकि छात्र ऑफलाइन मोड में पढ़ाई कर सकें. इससे पुराने दोस्त एक बार फिर कॉलेज कैंपस में मिल सके. हालांकि हिजाब विवाद की आग भी इस साल स्कूलों से लेकर कॉलेजों तक पहुंची, जिसमें स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनकर जाने पर बहस छिड़ी रही. इस दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज मिरांडा हाउस में भी कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर पहुंची, जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा.
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जेएनयू में कुलपति के विवादित बयान ने बटोरी सुर्खियां: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यूं तो हमेशा ही चर्चा में बना रहता है और इस साल भी यह एक खास वजह से चर्चा में रहा. दरअसल जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी ने एक बयान देकर नई बहस को जन्म दे दिया. उन्होंने कहा कि, भगवान शिव अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से होने चाहिए क्योंकि वह एक सांप के साथ एक शमशान में बैठते हैं. कुलपति ने यह भी कहा था कि, भगवान शिव पास पहनने के लिए बहुत कम कपड़े हैं. मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकते हैं. बस फिर क्या था. इस बयान के बाद एक नए विवाद ने जन्म ले लिया, जिसका कई हिंदू संगठनों ने जमकर विरोध किया. वहीं ब्राह्मणों के खिलाफ विश्वविद्यालय में अभद्र टिप्पणी लिखने के मामले में भी खूब विवाद हुआ.