नई दिल्ली: सांसद आदर्श ग्राम योजना मोदी सरकार की उन चंद महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है, जिसे लेकर खूब ढोल पीटा गया और जिसके जरिए विकसित भारत के सपने दिखाए गए. सरकार के पांच साल पूरे होने पर ईटीवी भारत की टीम चिल्ला गांव पहुंची जो आज भी विकास को तरस रहा है.
पूर्वी दिल्ली से सांसद महेश गिरी ने चिल्ला गांव को गोद लिया है, चिल्ला गांव पॉश इलाका माने जाने वाले मयूर विहार के पास बसा है. लेकिन अफसोस है कि करीब 300 साल पुराने इस गांव को एक पॉश इलाके का पड़ोसी होने का भी फायदा नहीं हुआ. गांव में आज भी हालात नहीं बदले.
गांव के बाहर से सामने देखने पर आलीशान होटल दिखाई देते हैं. करोड़ों की कीमत वाले फ्लैट हैं, लेकिन इस गांव का नसीब अब भी टूटी सड़कों और गंदी नलियों में ही अटका है.
गौर करने वाली बात यह है कि ये गांव आदर्श ग्राम की श्रेणी में लिए जाने की जरूरतें पूरी नहीं करता, क्योंकि यहां ग्राम पंचायत नहीं है. ये गांव शहरीकृत है और इसलिए बहुत पहले यहां की ग्राम पंचायत खत्म कर दी गई थी.
करीब पांच हजार की आबादी वाला इस गांव में मुख्य सड़क से जाने पर किसी भी तरह से नहीं लगता कि ये गांव है. लेकिन दुर्भाग्य कि गांव को जरूरी सुविधाएं भी मुहैया नहीं हैं, विकसित या आदर्श गांव की बात तो बहुत दूर है. सांसद महेश गिरी ने 5 साल पहले वादा किया था कि पूर्वी दिल्ली को अपूर्व दिल्ली बना देंगे. सांसद ने जब इस गांव को गोद लिया तो गांव वालों की आंखों में आदर्श ग्राम के सपने जगे और लगा कि उनका गांव भी अब तमाम सुविधाएं और जरूरतों से संपन्न होगा, लेकिन पांच साल बाद भी गांव की हालत वही है.
गांव के प्रवेश द्वार पर ही टूटी सड़क से झांकता नाला और सूखा चापाकल गांव की हालत बयां करते हैं. जैसे देश आगे बढ़ते जाते हैं टूटी-फूटी सड़कों पर फैले कूड़े कचरे चीख-चीख कर इस आदर्श ग्राम की हकीकत से रूबरू कराते हैं. अंदर गंदगी का अम्बार दिखाई देता है. यहां गार्ड से पूछने पर पता चलता है कि महेश गिरी कभी-कभी इसका दौरा करने तो आते हैं, लेकिन यहां पर साफ सफाई तभी होती है जब किसी आयोजन के लिए इसकी बुकिंग हुई हो.
गांववालों का कहना है कि सांसद के गांव गोद लिए जाने से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ.गांव में सीवर तो बने हैं लेकिन सीवर जाम ने लोगों को परेशान कर दिया है. वो कहते है्ं इससे अच्छे हालात पहले थे.
गांव चिल्ला में एक चौपाल का निर्माण कार्य चल रहा है. 1 मार्च को ही सांसद महेश गिरी चौपाल के उद्घाटन का फीता काट चुके हैं, हालांकि अभी निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया.
न स्कूल, न प्लेग्राउंड और न अस्पताल
गांव के बच्चे बताते हैं कि गांव में बच्चों के लिए न तो स्कूल है, न खेल का मैदान. कई बच्चों ने बताया कि स्कूल के लिए उन्हें काफी दूर पैदल चलकर जाना पड़ता है. एक बच्चे ने बताया कि गांव में कोई डिस्पेंसरी तक नहीं है. अगर कोई बीमार हो, तो मयूर विहार के किसी प्राइवेट क्लीनिक में जाना पड़ता है.
महिलाओं के लिए न सुरक्षा, न सुविधा
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी यहां उदासीनता ही दिखी. गांव की एक बुजुर्ग महिला से जब हमने इसे लेकर बातचीत की तो उन्होंने शिकायतों का अंबार लगा दिया. उन्होंने कहा कि गांव में पढ़ाई लिखाई के साधन तो दूर, बच्चियों के लिए सिलाई मशीन या स्वावलंबन के अन्य साधन भी नहीं है.
गांव में आए दिन बाइक क्या अन्य सामानों की चोरियां होती हैं, लेकिन सुनवाई कुछ नहीं होती. पानी की समस्या तो यहां के लिए विकराल है. लोगों ने बताया कि पानी का एक छोटा सा टैंकर आता है और उसी में पूरे गांव को पूरे दिन काम चलाना पड़ता है. इसे लेकर कई बार शिकायतें भी की गईं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती.