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BJP सांसद महेश गिरी के गोद लिए गांव में ना पानी, ना अस्पताल

पूर्वी दिल्ली से सांसद महेश गिरी ने चिल्ला गांव को गोद लिया है, चिल्ला गांव पॉश इलाका माने जाने वाले मयूर विहार के पास बसा है. लेकिन अफसोस है कि करीब 300 साल पुराने इस गांव को एक पॉश इलाके का पड़ोसी होने का भी फायदा नहीं हुआ. गांव में आज भी हालात नहीं बदले.

और विकास खो गया? सांसद की गोद में गांव, फिर भी ना पानी, ना अस्पताल
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Published : Apr 10, 2019, 4:32 PM IST

नई दिल्ली: सांसद आदर्श ग्राम योजना मोदी सरकार की उन चंद महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है, जिसे लेकर खूब ढोल पीटा गया और जिसके जरिए विकसित भारत के सपने दिखाए गए. सरकार के पांच साल पूरे होने पर ईटीवी भारत की टीम चिल्ला गांव पहुंची जो आज भी विकास को तरस रहा है.

पूर्वी दिल्ली से सांसद महेश गिरी ने चिल्ला गांव को गोद लिया है, चिल्ला गांव पॉश इलाका माने जाने वाले मयूर विहार के पास बसा है. लेकिन अफसोस है कि करीब 300 साल पुराने इस गांव को एक पॉश इलाके का पड़ोसी होने का भी फायदा नहीं हुआ. गांव में आज भी हालात नहीं बदले.

गांव के बाहर से सामने देखने पर आलीशान होटल दिखाई देते हैं. करोड़ों की कीमत वाले फ्लैट हैं, लेकिन इस गांव का नसीब अब भी टूटी सड़कों और गंदी नलियों में ही अटका है.
गौर करने वाली बात यह है कि ये गांव आदर्श ग्राम की श्रेणी में लिए जाने की जरूरतें पूरी नहीं करता, क्योंकि यहां ग्राम पंचायत नहीं है. ये गांव शहरीकृत है और इसलिए बहुत पहले यहां की ग्राम पंचायत खत्म कर दी गई थी.

सांसद की गोद में गांव, फिर भी ना पानी, ना अस्पताल

करीब पांच हजार की आबादी वाला इस गांव में मुख्य सड़क से जाने पर किसी भी तरह से नहीं लगता कि ये गांव है. लेकिन दुर्भाग्य कि गांव को जरूरी सुविधाएं भी मुहैया नहीं हैं, विकसित या आदर्श गांव की बात तो बहुत दूर है. सांसद महेश गिरी ने 5 साल पहले वादा किया था कि पूर्वी दिल्ली को अपूर्व दिल्ली बना देंगे. सांसद ने जब इस गांव को गोद लिया तो गांव वालों की आंखों में आदर्श ग्राम के सपने जगे और लगा कि उनका गांव भी अब तमाम सुविधाएं और जरूरतों से संपन्न होगा, लेकिन पांच साल बाद भी गांव की हालत वही है.

गांव के प्रवेश द्वार पर ही टूटी सड़क से झांकता नाला और सूखा चापाकल गांव की हालत बयां करते हैं. जैसे देश आगे बढ़ते जाते हैं टूटी-फूटी सड़कों पर फैले कूड़े कचरे चीख-चीख कर इस आदर्श ग्राम की हकीकत से रूबरू कराते हैं. अंदर गंदगी का अम्बार दिखाई देता है. यहां गार्ड से पूछने पर पता चलता है कि महेश गिरी कभी-कभी इसका दौरा करने तो आते हैं, लेकिन यहां पर साफ सफाई तभी होती है जब किसी आयोजन के लिए इसकी बुकिंग हुई हो.

गांववालों का कहना है कि सांसद के गांव गोद लिए जाने से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ.गांव में सीवर तो बने हैं लेकिन सीवर जाम ने लोगों को परेशान कर दिया है. वो कहते है्ं इससे अच्छे हालात पहले थे.
गांव चिल्ला में एक चौपाल का निर्माण कार्य चल रहा है. 1 मार्च को ही सांसद महेश गिरी चौपाल के उद्घाटन का फीता काट चुके हैं, हालांकि अभी निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया.

न स्कूल, न प्लेग्राउंड और न अस्पताल
गांव के बच्चे बताते हैं कि गांव में बच्चों के लिए न तो स्कूल है, न खेल का मैदान. कई बच्चों ने बताया कि स्कूल के लिए उन्हें काफी दूर पैदल चलकर जाना पड़ता है. एक बच्चे ने बताया कि गांव में कोई डिस्पेंसरी तक नहीं है. अगर कोई बीमार हो, तो मयूर विहार के किसी प्राइवेट क्लीनिक में जाना पड़ता है.

महिलाओं के लिए न सुरक्षा, न सुविधा
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी यहां उदासीनता ही दिखी. गांव की एक बुजुर्ग महिला से जब हमने इसे लेकर बातचीत की तो उन्होंने शिकायतों का अंबार लगा दिया. उन्होंने कहा कि गांव में पढ़ाई लिखाई के साधन तो दूर, बच्चियों के लिए सिलाई मशीन या स्वावलंबन के अन्य साधन भी नहीं है.

गांव में आए दिन बाइक क्या अन्य सामानों की चोरियां होती हैं, लेकिन सुनवाई कुछ नहीं होती. पानी की समस्या तो यहां के लिए विकराल है. लोगों ने बताया कि पानी का एक छोटा सा टैंकर आता है और उसी में पूरे गांव को पूरे दिन काम चलाना पड़ता है. इसे लेकर कई बार शिकायतें भी की गईं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती.

नई दिल्ली: सांसद आदर्श ग्राम योजना मोदी सरकार की उन चंद महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है, जिसे लेकर खूब ढोल पीटा गया और जिसके जरिए विकसित भारत के सपने दिखाए गए. सरकार के पांच साल पूरे होने पर ईटीवी भारत की टीम चिल्ला गांव पहुंची जो आज भी विकास को तरस रहा है.

पूर्वी दिल्ली से सांसद महेश गिरी ने चिल्ला गांव को गोद लिया है, चिल्ला गांव पॉश इलाका माने जाने वाले मयूर विहार के पास बसा है. लेकिन अफसोस है कि करीब 300 साल पुराने इस गांव को एक पॉश इलाके का पड़ोसी होने का भी फायदा नहीं हुआ. गांव में आज भी हालात नहीं बदले.

गांव के बाहर से सामने देखने पर आलीशान होटल दिखाई देते हैं. करोड़ों की कीमत वाले फ्लैट हैं, लेकिन इस गांव का नसीब अब भी टूटी सड़कों और गंदी नलियों में ही अटका है.
गौर करने वाली बात यह है कि ये गांव आदर्श ग्राम की श्रेणी में लिए जाने की जरूरतें पूरी नहीं करता, क्योंकि यहां ग्राम पंचायत नहीं है. ये गांव शहरीकृत है और इसलिए बहुत पहले यहां की ग्राम पंचायत खत्म कर दी गई थी.

सांसद की गोद में गांव, फिर भी ना पानी, ना अस्पताल

करीब पांच हजार की आबादी वाला इस गांव में मुख्य सड़क से जाने पर किसी भी तरह से नहीं लगता कि ये गांव है. लेकिन दुर्भाग्य कि गांव को जरूरी सुविधाएं भी मुहैया नहीं हैं, विकसित या आदर्श गांव की बात तो बहुत दूर है. सांसद महेश गिरी ने 5 साल पहले वादा किया था कि पूर्वी दिल्ली को अपूर्व दिल्ली बना देंगे. सांसद ने जब इस गांव को गोद लिया तो गांव वालों की आंखों में आदर्श ग्राम के सपने जगे और लगा कि उनका गांव भी अब तमाम सुविधाएं और जरूरतों से संपन्न होगा, लेकिन पांच साल बाद भी गांव की हालत वही है.

गांव के प्रवेश द्वार पर ही टूटी सड़क से झांकता नाला और सूखा चापाकल गांव की हालत बयां करते हैं. जैसे देश आगे बढ़ते जाते हैं टूटी-फूटी सड़कों पर फैले कूड़े कचरे चीख-चीख कर इस आदर्श ग्राम की हकीकत से रूबरू कराते हैं. अंदर गंदगी का अम्बार दिखाई देता है. यहां गार्ड से पूछने पर पता चलता है कि महेश गिरी कभी-कभी इसका दौरा करने तो आते हैं, लेकिन यहां पर साफ सफाई तभी होती है जब किसी आयोजन के लिए इसकी बुकिंग हुई हो.

गांववालों का कहना है कि सांसद के गांव गोद लिए जाने से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ.गांव में सीवर तो बने हैं लेकिन सीवर जाम ने लोगों को परेशान कर दिया है. वो कहते है्ं इससे अच्छे हालात पहले थे.
गांव चिल्ला में एक चौपाल का निर्माण कार्य चल रहा है. 1 मार्च को ही सांसद महेश गिरी चौपाल के उद्घाटन का फीता काट चुके हैं, हालांकि अभी निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया.

न स्कूल, न प्लेग्राउंड और न अस्पताल
गांव के बच्चे बताते हैं कि गांव में बच्चों के लिए न तो स्कूल है, न खेल का मैदान. कई बच्चों ने बताया कि स्कूल के लिए उन्हें काफी दूर पैदल चलकर जाना पड़ता है. एक बच्चे ने बताया कि गांव में कोई डिस्पेंसरी तक नहीं है. अगर कोई बीमार हो, तो मयूर विहार के किसी प्राइवेट क्लीनिक में जाना पड़ता है.

महिलाओं के लिए न सुरक्षा, न सुविधा
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी यहां उदासीनता ही दिखी. गांव की एक बुजुर्ग महिला से जब हमने इसे लेकर बातचीत की तो उन्होंने शिकायतों का अंबार लगा दिया. उन्होंने कहा कि गांव में पढ़ाई लिखाई के साधन तो दूर, बच्चियों के लिए सिलाई मशीन या स्वावलंबन के अन्य साधन भी नहीं है.

गांव में आए दिन बाइक क्या अन्य सामानों की चोरियां होती हैं, लेकिन सुनवाई कुछ नहीं होती. पानी की समस्या तो यहां के लिए विकराल है. लोगों ने बताया कि पानी का एक छोटा सा टैंकर आता है और उसी में पूरे गांव को पूरे दिन काम चलाना पड़ता है. इसे लेकर कई बार शिकायतें भी की गईं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती.

Intro:सांसद आदर्श ग्राम योजना मोदी सरकार की उन चंद महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है, जिसे लेकर खूब ढोल पीटा गया और जिसके जरिए विकसित भारत के सपने दिखाए गए। सरकार के पांच साल पूरे होने पर ईटीवी भारत पड़ताल कर रहा है, सांसदों द्वारा गोद लिए हुए गांवों की। इसी क्रम में हम पहुंचे राजधानी दिल्ली के पूर्वी दिल्ली से सांसद महेश गिरी के गोद लिए चिल्ला गांव में।


Body:पूर्वी दिल्ली: पूर्वी दिल्ली के पॉश इलाका माने जाने वाले मयूर विहार के पास एक गांव है, नाम है, चिल्ला गांव। लेकिन अफसोस कि करीब 300 साल पुराने कस गांव को एक पॉश इलाके का पड़ोसी होने का भी फायदा नहीं हुआ और गांव आज भी अपने पिछड़े हालात पर आंसू बहा रहा है। गांव के बाहर से सामने देखने पर आलीशन होटल है, करोड़ों की कीमत वाले फ्लैट हैं, लेकिन इस गांव का नसीब अब भी टूटी सड़कों और बजबजाती नलियों में ही अटका है। गौर करने वाली बात यह है कि यह गांव आदर्श ग्राम की श्रेणी में लिए जाने की जरूरतें पूरी नहीं करता, क्योंकि यहां ग्राम पंचायत नहीं है। यह गांव शहरीकृत है और इसलिए बहुत पहले यहां का ग्राम पंचायत खत्म कर दिया गया। हालांकि फिर भी सांसद ने इसे गोद लिया।

करीब पांच हजार की आबादी वाला यह गांव मुख्य सड़क से जाने पर किसी भी तरह से नहीं लगता कि गांव है। लेकिन दुर्भाग्य कि गांव को जरूरी सुविधाएं भी मुहैया नहीं हैं, विकसित या आदर्श गांव की बात तो बहुत दूर है। महेश गिरी ने 5 साल पहले सांसद बनते हुए वादा किया था कि पूर्वी दिल्ली को अपूर्व दिल्ली बनाएंगे। सांसद ने जब इस गांव को गोद लिया तो गांव वालों को की आंखों में आदर्श ग्राम के सपने जगे और लगा कि उनका गांव भी अब तमाम सुविधाएं और जरूरतों से संपन्न होगा, लेकिन पांच साल बाद भी गांव की हालत वही है।

गांव के प्रवेश द्वार पर ही टूटी सड़क से झांकता नाला और सूखा चापाकल गांव की हालत बयां करते हैं। जैसे देश आगे बढ़ते जाते हैं टूटी-फूटी सड़कों पर फैले कूड़े कचरे चीख-चीख कर इस आदर्श ग्राम की हकीकत से रूबरू कराते हैं। गांव की शुरुआत में ही बारात घर है, जिसकी दीवार पर यह तो चस्पा है कि सांसद महेश गिरी ने इसका उद्घाटन किया था, लेकिन अंदर जाते ही बरात घर में सोया हुआ कुत्ता इसकी हालत बयां कर देता है। अंदर गंदी का अम्बार दिखता है। यहां के गार्ड से पूछने पर पता चलता है कि महेश गिरी कभी-कभी इसका दौरा करने तो आते हैं, लेकिन यहां पर साफ सफाई तभी होती है जब किसी आयोजन के लिए इसकी बुकिंग हुई हो।

गांव में आगे बढ़ने पर सड़को के दोनों तरफ खुली नालियां और बीच बीच में फैले कूड़े कचरे न सिर्फ आदर्श गांव की सच्चाई बताते हैं, बल्कि स्वच्छ भारत अभियान की भी पोल खोलते हैं। ग्रामीण बृजपाल, जिनके घर के ठीक सामने नाला है और नाले के पास कूड़ा पड़ा है, पूछने पर बताते हैं कि हम तो खुद परेशान हैं। रोज कूड़ा हटाने वाले आते नहीं, शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती। सांसद द्वारा गांव को गोद लिए जाने से क्या फायदा हुआ, इसके जवाब में बृजपाल बारात घर और चौपाल के निर्माण से आगे नहीं बढ़ पाते। बगल में खड़े धनवीर सिंह गोद में एक बच्चे को थामे हैं, लेकिन बच्चों के भविष्य के लिए गांव में क्या सुविधा है, इस बारे में कुछ नहीं बता पाते।

आगे बढ़ने पर ग्रामीण शोभाराम मिलते हैं, जिनके घर के ठीक सामने सीवर का ढक्कन है। शोभाराम बताते हैं कि सीवर तो हमारी सुविधाओं के लिए बना, लेकिन जब नहीं था तब इससे ज्यादा सुविधा थी, क्योंकि आए दिन सीवर जाम हो जाता है और इससे गंदगी निकालकर कई बार घर में भी घुस जाती है। सांसद ने गांव का कितना विकास कराया यह बताते हुए शोभाराम भी चौपाल से आगे नहीं बढ़ पाते और चौपाल की जरूरतों और अहमियत का बखान करने लगते हैं।

हमने सोचा कि जिस गांव के विकास की कहानी चौपाल तक आकर रुक जाती है, उस चौपाल का भी जायजा लेना चाहिए। चौपाल के ठीक सामने स्वागत करने के लिए बजबजाती नालियां हैं। अंदर जाने पर एक ग्रामीण मिलते हैं, सोनू पंडित। बातचीत में सोनू पंडित चौपाल के ऐतिहासिक पहलू और ग्रामीणों के लिए उसकी जरूरत बताते हैं। हम जब पहुंचे तो चौपाल का निर्माण कार्य जारी था लेकिन आश्चर्य की बात यह कि अंदर एक बड़ा सा होर्डिंग मिला जिसपर इस चौपाल के उद्घाटन का दिन अंकित था। 1 मार्च को ही सांसद महेश गिरी चौपाल के उद्घाटन का फिता काट चुके हैं। हालांकि इसका कारण बताते हुए सोनू पण्डित ने कहा कि काम पूरा होने के बाद भी गांव वालों को कुछ कमी लगी इसलिए फिर से काम कराया जा रहा है।

गांव में कुछ बच्चों से भी भी हमने बातचीत की और उनसे जानने जानने की कोशिश की कि स्कूल, खेलकूद और उनकी अन्य जरूरतों को लेकर गांव में क्या सुविधाएं हैं। हमें जानकर हैरानी हुई कि राजधानी दिल्ली के गांव में बच्चों के लिए न तो स्कूल है, म खेल का मैदान है। कई बच्चों ने बताया कि स्कूल के लिए उन्हें काफी दूर पैदल चलकर जाना पड़ता है। गांव में कोई खेल का मैदान भी नहीं है, जहां बच्चे खेल सके। एक बच्चे ने बताया कि गांव में कोई डिस्पेंसरी नहीं है। अगर कोई बीमार हो, तो मयूर विहार के किसी प्राइवेट क्लीनिक में जाना पड़ता है।

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी यहां उदासीनता ही दिखी। गांव की एक बुजुर्ग महिला से जब हमने इसे लेकर बातचीत की तो उन्होंने शिकायतों तो का अम्बर सामने रख दिया। उन्होंने कहा कि गांव में पढ़ाई लिखाई के साधन तो दूर, बच्चियों के लिए सिलाई मशीन या स्वावलंबन के अन्य साधन भी उपलब्धि नहीं हैं। गांव में आए दिन बाइक क्या अन्य समानो की चोरियां होती हैं, लेकिन सुनवाई कुछ नहीं होती। पानी की समस्या तो यहां के लिए विकराल है। लोगों ने बताया कि पानी का एक छोटा सा टैंकर आता है और उसी में पूरे गांव को पूरे दिन काम चलाना पड़ता है। इसे लेकर कई बार शिकायतें भी की गईं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।


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