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Chat GPT से तो नहीं बना रहे College या School प्रोजेक्ट ? टीचर एक सेकंड में पता लगा लेगा

इन दिनों चैट जीटीपी के जरिए कंटेट क्रिएशन का काम काफी आसान हो गया है. लेकिन इससे एक नुकसान भी है. कॉलेज स्टूडेंट्स को कई प्रोजेक्ट्स लिखने दिए जाते हैं, लेकिन वे चैट जीटीपी के जरिए इसे पूरा करते हैं और इससे सौ फीसदी यूनिक भी बता दिया जाता है. लेकिन चैट जीपीटी से तैयार कंटेट के भी प्लेगेरिज्म का पता लगाया जा सकता है.

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Published : May 17, 2023, 11:07 AM IST

चैटजीपीटी से तैयार कंटेट का भी प्लेगेरिज्म पता किया जा सकेगा

नई दिल्ली/गाजियाबादः चैट जीपीटी ने टेक्नोलॉजी मार्केट में तहलका मचा दिया है. चैट जीपीटी घंटों का काम चंद सेकंड में कर देता है. खास बात यह है कि चैट जीपीटी से अगर कोई कंटेंट लिखवाया जाए तो चैट जीपीटी पूरा कंटेंट खुद जनरेट करता है. कहीं से कॉपी नहीं करता. Chat GPT से कंटेंट जनरेट करने वाले यूजर समझते हैं कि उनका कंटेंट सौ परसेंट ओरिजिनल है और वह इस कंटेंट को ऐसे प्रदर्शित करते हैं जैसे उन्होंने खुद लिखा हो. साथ ही इस विश्वास में रहते हैं की कोई पता नहीं लगा सकता कि कंटेंट Chat GPT से लिखवाया गया है. अगर आप स्टूडेंट हैं. कॉलेज का प्रोजेक्ट स्कूल का असाइनमेंट बनाने में चैट जीपीटी (Chat GPT) का इस्तेमाल करते हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है.

टेक्नोलॉजी के इस दौर में जहां एक तरफ स्टूडेंट बहुत ज्यादा स्मार्ट होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कॉलेज के प्रोफेसर और टीचर भी इससे पीछे नहीं हैं. दरअसल, जो कंटेंट हम Chat GPT की मदद से जनरेट करते हैं, उसे आमतौर पर ऑनलाइन प्लेगेरिज्म चेकर सौ पर्सेंट ओरिजिनल बताते हैं. ऐसे में स्टूडेंट भी निश्चिंत रहते हैं कि उनका प्रोजेक्ट या असाइनमेंट जब चेक किया जाएगा तो तो ऑनलाइन प्लेगेरिज्म चेकर उसे ओरिजिनल बताएंगे. जिसके बाद उनके टीचर या प्रोफेसर को यकीन हो जाएगा कि प्रोजेक्ट स्टूडेंट द्वारा ईमानदारी से बनाए गया है.

प्रोजेक्ट या असाइनमेंट चैट जीपीटी की मदद से बनाया गया है या नहीं, यह पता लगाना बेहद आसान है. जहां एक तरफ ऑनलाइन प्लेगेरिज्म चेकर में कंटेंट को चेक करने में दो से तीन मिनट का वक्त लगता है. वहीं चैट जीपीटी चंद सेकंड में बता देता है कि कंटेंट उसके द्वारा लिखा गया है या नहीं. Hitech Institute of Technology के असिस्टेंट प्रोफेसर आकाश राजपूत बताते हैं कि स्टूडेंट को प्रोजेक्ट असाइनमेंट इसलिए दिए जाते हैं, जिससे कि वह कुछ नया सीख सके. प्रोजेक्ट्स और असाइनमेंट के माध्यम से जो कुछ भी स्टूडेंट्स ने पढ़ा होता है, उसको रिकॉल करके वह प्रोजेक्ट तैयार करते हैं. इससे न सिर्फ उनकी नॉलेज में इजाफा होता है बल्कि उनके कांसेप्ट भी क्लियर होते हैं. प्रोजेक्ट बनाने के दौरान ही स्टूडेंट को अपनी वीकनेस और स्ट्रेंथ का पता लगता है.

उन्होंने कहा कि हमारा मकसद होता है कि प्रोजेक्ट बनाने के दौरान जो भी समस्याएं आए वह हमसे पूछे. जिससे कि वह अपनी कमियों को सुधार सकें लेकिन आजकल टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर है. कई बार देखने को मिलता है कि छात्र चैट जीपीटी का इस्तेमाल कर प्रोजेक्ट तैयार करते हैं और सबमिट कर देते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंटेंट क्रिएट करने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि छात्रों की इससे एकेडमिक ग्रोथ नहीं हो पाती. जो छात्र प्रोजेक्ट खुद से नहीं तैयार करते और ऑनलाइन टूल्स की मदद से तैयार करते हैं, उनके प्रोजेक्ट को हम दोबारा खुद से बनाने के लिए कहते हैं जिससे कि वह कुछ सीख सके.

आकाश राजपूत बताते हैं कि कंटेंट चैट जीपीटी से कॉपी किया गया है या नहीं, इसका पता लगाना बेहद आसान है. चैट जीपीटी से जो भी कंटेंट कॉपी किया गया है उसे फिर से चैट जीपीटी में पेस्ट करना है. उसके नीचे एक लाइन लिखनी है, "Chat GPT did you write this?" और चैट जीपीटी बता देगा कंटेंट उसके द्वारा लिखा गया है या नहीं.

छात्र अभिषेक वर्मा बताते हैं कि मैं कॉलेज के असाइनमेंट के प्रोजेक्ट तैयार करने में चैट जीपीटी का इस्तेमाल नहीं करता हूं. वह बताते हैं कि इस तरह के एआई टूल्स का इस्तेमाल करने से भले ही घंटों का काम चंद सेकेंड में हो जाता है लेकिन इसका long term में बहुत नुकसान हैं. इससे हमारे स्किल्स डेवलप नहीं हो पाते हैं.

ये भी पढे़ंः Security in Tihar Jail: गैंगवार जैसी घटना रोकने के लिए QRT की तैनाती से लेकर किए गए 5 बड़े बदलाव

MCA की छात्रा नंदिता बताती हैं कि वह अक्सर कॉलेज प्रोजेक्ट को तैयार करने में चैट जीपीटी का सहारा लेती हैं. उन्होंने बताया कि अक्सर गूगल पर कोई चीज ढूंढने पर सही रिजल्ट नहीं मिल पाता जबकि चैट जीपीटी पर एक्यूरेट जावाब मिल जाता हैं.

ये भी पढ़ेंः 'शराब घोटाले के 17 करोड़ रुपये मंत्री आतिशी के रिश्तेदार को दिए गए', BJP नेता कपिल मिश्रा का आरोप

चैटजीपीटी से तैयार कंटेट का भी प्लेगेरिज्म पता किया जा सकेगा

नई दिल्ली/गाजियाबादः चैट जीपीटी ने टेक्नोलॉजी मार्केट में तहलका मचा दिया है. चैट जीपीटी घंटों का काम चंद सेकंड में कर देता है. खास बात यह है कि चैट जीपीटी से अगर कोई कंटेंट लिखवाया जाए तो चैट जीपीटी पूरा कंटेंट खुद जनरेट करता है. कहीं से कॉपी नहीं करता. Chat GPT से कंटेंट जनरेट करने वाले यूजर समझते हैं कि उनका कंटेंट सौ परसेंट ओरिजिनल है और वह इस कंटेंट को ऐसे प्रदर्शित करते हैं जैसे उन्होंने खुद लिखा हो. साथ ही इस विश्वास में रहते हैं की कोई पता नहीं लगा सकता कि कंटेंट Chat GPT से लिखवाया गया है. अगर आप स्टूडेंट हैं. कॉलेज का प्रोजेक्ट स्कूल का असाइनमेंट बनाने में चैट जीपीटी (Chat GPT) का इस्तेमाल करते हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है.

टेक्नोलॉजी के इस दौर में जहां एक तरफ स्टूडेंट बहुत ज्यादा स्मार्ट होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कॉलेज के प्रोफेसर और टीचर भी इससे पीछे नहीं हैं. दरअसल, जो कंटेंट हम Chat GPT की मदद से जनरेट करते हैं, उसे आमतौर पर ऑनलाइन प्लेगेरिज्म चेकर सौ पर्सेंट ओरिजिनल बताते हैं. ऐसे में स्टूडेंट भी निश्चिंत रहते हैं कि उनका प्रोजेक्ट या असाइनमेंट जब चेक किया जाएगा तो तो ऑनलाइन प्लेगेरिज्म चेकर उसे ओरिजिनल बताएंगे. जिसके बाद उनके टीचर या प्रोफेसर को यकीन हो जाएगा कि प्रोजेक्ट स्टूडेंट द्वारा ईमानदारी से बनाए गया है.

प्रोजेक्ट या असाइनमेंट चैट जीपीटी की मदद से बनाया गया है या नहीं, यह पता लगाना बेहद आसान है. जहां एक तरफ ऑनलाइन प्लेगेरिज्म चेकर में कंटेंट को चेक करने में दो से तीन मिनट का वक्त लगता है. वहीं चैट जीपीटी चंद सेकंड में बता देता है कि कंटेंट उसके द्वारा लिखा गया है या नहीं. Hitech Institute of Technology के असिस्टेंट प्रोफेसर आकाश राजपूत बताते हैं कि स्टूडेंट को प्रोजेक्ट असाइनमेंट इसलिए दिए जाते हैं, जिससे कि वह कुछ नया सीख सके. प्रोजेक्ट्स और असाइनमेंट के माध्यम से जो कुछ भी स्टूडेंट्स ने पढ़ा होता है, उसको रिकॉल करके वह प्रोजेक्ट तैयार करते हैं. इससे न सिर्फ उनकी नॉलेज में इजाफा होता है बल्कि उनके कांसेप्ट भी क्लियर होते हैं. प्रोजेक्ट बनाने के दौरान ही स्टूडेंट को अपनी वीकनेस और स्ट्रेंथ का पता लगता है.

उन्होंने कहा कि हमारा मकसद होता है कि प्रोजेक्ट बनाने के दौरान जो भी समस्याएं आए वह हमसे पूछे. जिससे कि वह अपनी कमियों को सुधार सकें लेकिन आजकल टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर है. कई बार देखने को मिलता है कि छात्र चैट जीपीटी का इस्तेमाल कर प्रोजेक्ट तैयार करते हैं और सबमिट कर देते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंटेंट क्रिएट करने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि छात्रों की इससे एकेडमिक ग्रोथ नहीं हो पाती. जो छात्र प्रोजेक्ट खुद से नहीं तैयार करते और ऑनलाइन टूल्स की मदद से तैयार करते हैं, उनके प्रोजेक्ट को हम दोबारा खुद से बनाने के लिए कहते हैं जिससे कि वह कुछ सीख सके.

आकाश राजपूत बताते हैं कि कंटेंट चैट जीपीटी से कॉपी किया गया है या नहीं, इसका पता लगाना बेहद आसान है. चैट जीपीटी से जो भी कंटेंट कॉपी किया गया है उसे फिर से चैट जीपीटी में पेस्ट करना है. उसके नीचे एक लाइन लिखनी है, "Chat GPT did you write this?" और चैट जीपीटी बता देगा कंटेंट उसके द्वारा लिखा गया है या नहीं.

छात्र अभिषेक वर्मा बताते हैं कि मैं कॉलेज के असाइनमेंट के प्रोजेक्ट तैयार करने में चैट जीपीटी का इस्तेमाल नहीं करता हूं. वह बताते हैं कि इस तरह के एआई टूल्स का इस्तेमाल करने से भले ही घंटों का काम चंद सेकेंड में हो जाता है लेकिन इसका long term में बहुत नुकसान हैं. इससे हमारे स्किल्स डेवलप नहीं हो पाते हैं.

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MCA की छात्रा नंदिता बताती हैं कि वह अक्सर कॉलेज प्रोजेक्ट को तैयार करने में चैट जीपीटी का सहारा लेती हैं. उन्होंने बताया कि अक्सर गूगल पर कोई चीज ढूंढने पर सही रिजल्ट नहीं मिल पाता जबकि चैट जीपीटी पर एक्यूरेट जावाब मिल जाता हैं.

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