नई दिल्ली/गाजियाबाद: कहते हैं कि ज्ञान से धन अर्जित किया जा सकता है, लेकिन धन से ज्ञान नहीं खरीदा जा सकता. केवल धन अर्जन के लिए ही नहीं, बल्कि व्यक्ति को सही निर्णय लेने का विवेक भी देता है. हालांकि कई बच्चे अपने परिवार के हालातों के चलते पढ़ाई नहीं कर पाते हैं, जिनसे उनके गलत संगत में जाने का खतरा होता है. ऐसे ही बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरी हैं, एनटीपीसी की रिटायर्ड अफसर नीरजा सक्सेना जो फिलहाल 'नीरजा फुटपाथ पाठशाला' चला रही हैं.
बच्चों के लिए वरदान: दरअसल गाजियाबाद के काला पत्थर रोड पर मंगल चौक से थोड़ा आगे बने फुटपाथ पर सुबह दस से बारह के बीच फुटपाथ पाठशाला संचालित की जाती है. मकनपुर इलाके में झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए यह किसी स्कूल से कम नहीं है. यहां बच्चे बाकायदा यूनिफॉर्म पहने हुए कुर्सी पर बैठे दिखाई देते हैं. जो भी इस रास्ते से गुजरता है, वो इन बच्चों को फुटपाथ पर ऐसे पढ़ते देख चौंक जाता है.
ऐसे हुई शुरुआत: इंदिरापुरम इलाके की निवासी नीरजा सक्सेना ने करीब तीन साल पहले यह फुटपाथ पाठशाला की शुरूआत की थी. उन्हें हमेशा से ही समाज सेवा करने का बहुत शौक था. 2019 में एनटीपीसी से रिटायर होने के बाद, 58 साल की उम्र में उन्होंने सोशल वर्क में मास्टर्स की डिग्री हासिल की. इसके बाद उन्होंने कई सामाजिक संस्थाओं के साथ काम कर अनुभव भी हासिल किया और फिर खुद को पूरी तरह से समाज सेवा को समर्पित कर दिया.
50 से अधिक बच्चों का कराया एडमिशन: उन्होंने बताया कि फुटपाथ पाठशाला की शुरुआत होने के बाद मकनपुर के गरीब तबके के बच्चे पढ़ने आना शुरू हुए. पाठशाला में हर दिन बच्चों को खाना दिया जाता था, जिसके चलते वे पढ़ने आते थे. फिर हमने बच्चों को धीरे-धीरे अच्छी बातें और अच्छी आदतें सिखानी शुरू की और उन्हें जिंदगी का मकसद बताने की कोशिश की. साथ ही उन्हें पढ़ाई के महत्व को भी समझाया गया. इससे बच्चों में पढ़ाई के लिए रुचि जगी. उन्होंने आगे बताया कि बीते एक साल में 50 से अधिक बच्चों के बेसिक्स को मजबूत कर उनका एडमिशन इलाके के एक निजी स्कूलों में कराया जा चुका है.
मिलती हैं ये सुविधाएं भी: नीरजा ने कहा, फुटपाथ पाठशाला में बच्चों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया जाता है. हमारा मकसद बच्चों के बेसिक मजबूत कर उनका एडमिशन निजी स्कूलों में कराना है, जिससे वह जिंदगी में आगे बढ़ सकें. पाठशाला में आने वाले सभी बच्चों को महीने में एक बार हेयर कट, यूनिफॉर्म, एक समय का भोजन, कॉपी-किताब समते अन्य स्टेशनरी का सामान नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है, जिससे बच्चे काफी खुश हो जाते हैं.
ये ली जाती फीस: वहीं फीस लेने की बात पर उन्होंने कहा कि वह फीस के रूप में बच्चों से प्लास्टिक की बोतलें लेती हैं और उन्हें पर्यावरण में इनके नुकसान के बारे में जागरूक करती हैं. इस काम में कई अध्यापिकाएं भी उनकी मदद करती हैं. उन्होंने कहा कि पाठशाला अब ज्यादातर लोगों के डोनेशन से ही चल रही है और उन्हें अपने पास से बहुत कम पैसे लगाने होते हैं. किसी भी चीज की जरूरत होने पर लोग खुद ही मदद की पेशकश करते हैं.
इंग्लिश में करता है बात: फुटपाथ पाठशाला में पढ़ने वाले 10 वर्षीय चंदन ने बताया कि वह करीब पांच महीने से इस पाठशाला में पढ़ने आ रहा है. उसने बताया कि उसे 12 तक के पहाड़े के साथ इंग्लिश रीडिंग भी आती है. इतना ही नहीं, क्लास में वह थोड़ी बहुत इंग्लिश बोल भी लेता है और मदद मांगने के लिए 'प्लीज हेल्प मी मैम' कहता है. उसने यह भी बताया कि वह आगे जाकर पुलिस में भर्ती होना चाहता है और देश की सेवा में अपना योगदान देना चाहता है.
बनना चाहता है डीएम: वहीं 13 साल का रवि करीब डेढ़ साल तक पाठशाला में बेसिक एजुकेशन कंप्लीट करने के बाद अब एक निजी स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ाई कर रहा है. पाठशाला ने रवि को एक नया नजरिया दिया है. अब वह पढ़ाई के साथ घर पर पिता के मोबाइल के माध्यम से यूट्यूब पर जानने की कोशिश करता है कि डीएम कैसे बनते हैं. ऐसे एक नहीं, बल्कि दर्जनों बच्चों हैं जिन्हें यह पाठशाला ज्ञान के साथ नया नजरिया भी दे रही है.
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