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दिल्ली: किसानों की नहीं बिक रही सब्जी, 'नहीं हैं खाने के पैसे, किराया दें तो कैसे'

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Published : May 21, 2020, 7:14 PM IST

लॉकडाउन ने प्रवासी किसानों के सामने दोहरा संकट खड़ा कर दिया है. खाने की समस्या तो है ही, उस जमीन का किराया देने के लिए भी इनके पास पैसे नहीं हैं, जिस पर ये खेती कर जीविकोपार्जन करते हैं.

farmers facing agriculture crisis problem due to lockdown
किसान की नहीं बिक रही सब्जी

नई दिल्ली: यमुना खादर के इलाके में बड़ी संख्या में किसान रहते हैं. वे यहां पर सब्जी और फलों की खेती करते हैं. लेकिन लॉकडाउन में इतने दिनों तक बंद रहे बाजार ने उनकी कमर तोड़ दी है. अब बाजार खुले भी हैं, तो बाजार में खरीददार नहीं हैं. नतीजतन इनके सामने खाने की समस्या खड़ी हो गई है. समस्या ये भी है कि खेत में जो सब्जियां तैयार होने वाली है, उनका क्या करेंगे.

किसानों की नहीं बिक रही सब्जी



10 कट्ठे का 8000 किराया

पूर्वी दिल्ली के चिल्ला गांव के पास यमुना के किनारे सैकड़ों किसानों की झुग्गियां हैं. यहीं पर झुग्गी बनाकर ये खेती करते हैं. हालांकि ये जमीन डीडीए की है, लेकिन इसपर स्थानीय लोगों का कब्जा है और वे लोग बिहार-यूपी के प्रवासी किसानों को किराए पर जमीन देते हैं. जमीन का भाव भी ऐसा है, जो जमीन के गणित पर ही फिट नहीं बैठता. नियमतः 20 कट्ठे का एक बीघा होता है, लेकिन ईटीवी भारत से बातचीत में यहां के किसानों ने बताया कि यहां पर इन्हें 10 कट्ठे का एक बीघा बनाकर 8000 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से जमीन दी जाती है.



सरकारी राशन ही एकमात्र सहारा

ये किराया फसल के एक सीजन के लिए होता है. अभी समय है जब किराए का भुगतान करना होता है. बिहार के छपरा से दिल्ली आकर यमुना खादर के इस इलाके में खेती करने वाले धुरेन्द्र महतो ने ईटीवी भारत से बातचीत में अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा कि सरकार की तरफ से जो राशन मिल रहा है, बस उसी के सहारे खुद अपना भी पेट भर रहे हैं और बच्चों को भी खिला रहे हैं, लेकिन वह भी कम पड़ रहा है. इसके अलावा अभी कुछ नहीं मिल रहा.



पूंजी भी नहीं निकल रही

यहां एक अन्य किसान ने कहा कि इन दिनों हालत ये हैं कि बाजार में 400 रुपए की सब्जी लेकर जाते हैं. तो 200 की ही बिक्री हो पाती है, 200 की सब्जी वापस लौट आती है और बर्बाद हो जाती है. सभी लोग अपने घरों को लौट गए हैं बाजार में खरीददार नहीं हैं और यही कारण है कि हमारी पूंजी भी नहीं निकल पा रही. उनकी चिंता इसे लेकर भी थी कि खेत में जो फसल खड़ी है, उसका क्या करेंगे, क्योंकि अभी दूर-दूर तक बाजारों में रौनक की उम्मीद नहीं है. लोग अभी भी यहां से जा रहे हैं.


डीडीए से कर चुके हैं शिकायत

इन किसानों ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि ये जमीन डीडीए की है. डीडीए के अधिकारियों से कई बार इसके लिए शिकायत कर चुके हैं कि हमें इस अनुचित किराए के बोझ से छुटकारा दिलाए. लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. उनका कहना था कि जमीन किराए पर देने वाले लोग अब किराए के लिए दबाव बनाने लगे हैं. लेकिन अभी तो पेट भरने के भी पैसे नहीं हैं. 8000 रुपए कहां से लाएंगे.

नई दिल्ली: यमुना खादर के इलाके में बड़ी संख्या में किसान रहते हैं. वे यहां पर सब्जी और फलों की खेती करते हैं. लेकिन लॉकडाउन में इतने दिनों तक बंद रहे बाजार ने उनकी कमर तोड़ दी है. अब बाजार खुले भी हैं, तो बाजार में खरीददार नहीं हैं. नतीजतन इनके सामने खाने की समस्या खड़ी हो गई है. समस्या ये भी है कि खेत में जो सब्जियां तैयार होने वाली है, उनका क्या करेंगे.

किसानों की नहीं बिक रही सब्जी



10 कट्ठे का 8000 किराया

पूर्वी दिल्ली के चिल्ला गांव के पास यमुना के किनारे सैकड़ों किसानों की झुग्गियां हैं. यहीं पर झुग्गी बनाकर ये खेती करते हैं. हालांकि ये जमीन डीडीए की है, लेकिन इसपर स्थानीय लोगों का कब्जा है और वे लोग बिहार-यूपी के प्रवासी किसानों को किराए पर जमीन देते हैं. जमीन का भाव भी ऐसा है, जो जमीन के गणित पर ही फिट नहीं बैठता. नियमतः 20 कट्ठे का एक बीघा होता है, लेकिन ईटीवी भारत से बातचीत में यहां के किसानों ने बताया कि यहां पर इन्हें 10 कट्ठे का एक बीघा बनाकर 8000 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से जमीन दी जाती है.



सरकारी राशन ही एकमात्र सहारा

ये किराया फसल के एक सीजन के लिए होता है. अभी समय है जब किराए का भुगतान करना होता है. बिहार के छपरा से दिल्ली आकर यमुना खादर के इस इलाके में खेती करने वाले धुरेन्द्र महतो ने ईटीवी भारत से बातचीत में अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा कि सरकार की तरफ से जो राशन मिल रहा है, बस उसी के सहारे खुद अपना भी पेट भर रहे हैं और बच्चों को भी खिला रहे हैं, लेकिन वह भी कम पड़ रहा है. इसके अलावा अभी कुछ नहीं मिल रहा.



पूंजी भी नहीं निकल रही

यहां एक अन्य किसान ने कहा कि इन दिनों हालत ये हैं कि बाजार में 400 रुपए की सब्जी लेकर जाते हैं. तो 200 की ही बिक्री हो पाती है, 200 की सब्जी वापस लौट आती है और बर्बाद हो जाती है. सभी लोग अपने घरों को लौट गए हैं बाजार में खरीददार नहीं हैं और यही कारण है कि हमारी पूंजी भी नहीं निकल पा रही. उनकी चिंता इसे लेकर भी थी कि खेत में जो फसल खड़ी है, उसका क्या करेंगे, क्योंकि अभी दूर-दूर तक बाजारों में रौनक की उम्मीद नहीं है. लोग अभी भी यहां से जा रहे हैं.


डीडीए से कर चुके हैं शिकायत

इन किसानों ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि ये जमीन डीडीए की है. डीडीए के अधिकारियों से कई बार इसके लिए शिकायत कर चुके हैं कि हमें इस अनुचित किराए के बोझ से छुटकारा दिलाए. लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. उनका कहना था कि जमीन किराए पर देने वाले लोग अब किराए के लिए दबाव बनाने लगे हैं. लेकिन अभी तो पेट भरने के भी पैसे नहीं हैं. 8000 रुपए कहां से लाएंगे.

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