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खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत

छठ पूजा का आज दूसरा दिन है और इस दिन खरना पूजा होती है, जिसका बहुत ही विशेष महत्व होता है. दरअसल इस पूजा में व्रती खुद से नहा धोकर चावल का खीर और पूरी बनाती हैं और फिर उसकी पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करतीं हैं और दूसरों को भी बाटतीं है.

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Published : Oct 29, 2022, 11:00 PM IST

खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत
खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत

नई दिल्ली: भगवान सूर्य और छठी मैया के लिए किया जाने वाला छठ महापर्व की शुरुआत कल नहाय-खाय के साथ हो चुकी है. चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा किसी कठिन तपस्या से कम नहीं हैं. जिसमें व्रती पूरे विधि-विधान से प्रत्येक नियम का पालन करते हुए अपनी पूजा को संपूर्ण करने का प्रयास करती हैं. छठ महापर्व में अस्तगामी एवं उदयगामी सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है और उनकी पूजा की जाती है.

ऐसी मान्यता है कि इस पावन व्रत को करने के बाद इसे कभी छोड़ा नहीं जाता है. व्रत की इस पावन परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती ही जाती है. यह व्रत प्राय: महिलाएं करतीं हैं लेकिन कुछ पुरुष भी इसे मंगलकामना रखते हुए करते हैं. छठ पूजा में व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है.

कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व का आज दूसरा दिन है. आज कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं, इसे ‘खरना’ कहा जाता है. छठ पूजा में खरना प्रसाद का बहुत महत्व है. मान्यता है कि प्रसाद को अधिक से अधिक बांटा जाए तो उसका पुण्य फल अधिक मिलता है. इसी कामना के साथ खरना प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों को वितरित करने के लिए लोगों को बकायदा आमंत्रण भी दिया जाता है. वैसे इस व्रत का प्रसाद माँगकर खाने का विधान है. खरना की पूजा के प्रसाद के रूप में रोटी,खीर और केले को खाने का प्रावधान है.

खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत
आज खरना की पूजा के बाद छठ व्रती खाना खाने के बाद अब परसों उदयगामी सूर्य की पूजा के बाद ही पारण कर कुछ खाएंगी. अभी से 36 घंटों का निर्जला व्रत रह कर कल शाम अस्ताचलगामी और परसों उदयगामी भगवान भास्कर की पूजा के साथ इस 4 दिवसीय छठ महा पर्व का समापन होगा.
खरना पूजा का होता है विशेष महत्वऐसा भी कहा जाता है कि इससे प्रसाद को वृत्ति के ग्रहण करने के दौरान उन्हें किसी तरह की बाधा नहीं पहुंचाई जानी चाहिए. इसलिए इस दौरान घर और आसपास में विशेष शांति रखी जाती है, ताकि वृत्ति की पूजा और प्रसाद ग्रहण करने के दौरान कोई बाधा ना हो. फिर प्रसाद परिवार रिश्तेदारों और आसपास के लोगों को यह प्रसाद देती है, क्योंकि इस खरना के प्रसाद का विशेष महत्व और मान्यताएं हैं.

इसलिए जो लोग पूर्वांचल से नहीं भी है और अगर उन्हें छठ की महत्ता के बारे में पता है तो वह खरना का प्रसाद मांग कर भी ग्रहण अवश्य करते हैं. इस दिन व्रती सुबह से ही भूखी प्यासी रहती है और इस प्रसाद के ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे तक मतलब जिस दिन उगते हुए सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है, तब तक बिल्कुल निर्जला रहती हैं. अपने इस 4 दिन की कठिन पूजा को पूरा करती हैं.

ये भी पढ़ें: Chhath Puja : मात्र 14 दिन में बदला भलस्वा झील का स्वरूप, LG के आदेश के बाद ऐसे तैयार हुआ घाट

खरना की पूजा के दौरान साफ सफाई का विशेष महत्व होता है. और चूल्हे की साफ-सफाई और पूजा करने के बाद इसका प्रसाद तैयार किया जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि अगर किसी व्रती को मदद की जरूरत भी होती है तो जो महिलाएं उनकी पूजा के प्रसाद को बनाने में मदद करेंगी उन्हें भी दिनभर व्रत में रहना होगा.

दरअसल 4 दिन ये पूजा तो नहाय खाय से शुरू होती है. लेकिन पूजा की कठिन परीक्षा खरना पूजा के बाद से ही होती है, क्योंकि इसके बाद से 36 घण्टे व्रती को निर्जला रहना पड़ता है और इसी वजह से छठ पूजा की पूरे विश्व मे मान्यताएं हैं.

इसे भी पढ़ें: इन गीतों के बिना अधूरा लगता है छठ महापर्व, विदेश तक है गीतों की धमक

नई दिल्ली: भगवान सूर्य और छठी मैया के लिए किया जाने वाला छठ महापर्व की शुरुआत कल नहाय-खाय के साथ हो चुकी है. चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा किसी कठिन तपस्या से कम नहीं हैं. जिसमें व्रती पूरे विधि-विधान से प्रत्येक नियम का पालन करते हुए अपनी पूजा को संपूर्ण करने का प्रयास करती हैं. छठ महापर्व में अस्तगामी एवं उदयगामी सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है और उनकी पूजा की जाती है.

ऐसी मान्यता है कि इस पावन व्रत को करने के बाद इसे कभी छोड़ा नहीं जाता है. व्रत की इस पावन परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती ही जाती है. यह व्रत प्राय: महिलाएं करतीं हैं लेकिन कुछ पुरुष भी इसे मंगलकामना रखते हुए करते हैं. छठ पूजा में व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है.

कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व का आज दूसरा दिन है. आज कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं, इसे ‘खरना’ कहा जाता है. छठ पूजा में खरना प्रसाद का बहुत महत्व है. मान्यता है कि प्रसाद को अधिक से अधिक बांटा जाए तो उसका पुण्य फल अधिक मिलता है. इसी कामना के साथ खरना प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों को वितरित करने के लिए लोगों को बकायदा आमंत्रण भी दिया जाता है. वैसे इस व्रत का प्रसाद माँगकर खाने का विधान है. खरना की पूजा के प्रसाद के रूप में रोटी,खीर और केले को खाने का प्रावधान है.

खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत
आज खरना की पूजा के बाद छठ व्रती खाना खाने के बाद अब परसों उदयगामी सूर्य की पूजा के बाद ही पारण कर कुछ खाएंगी. अभी से 36 घंटों का निर्जला व्रत रह कर कल शाम अस्ताचलगामी और परसों उदयगामी भगवान भास्कर की पूजा के साथ इस 4 दिवसीय छठ महा पर्व का समापन होगा.खरना पूजा का होता है विशेष महत्वऐसा भी कहा जाता है कि इससे प्रसाद को वृत्ति के ग्रहण करने के दौरान उन्हें किसी तरह की बाधा नहीं पहुंचाई जानी चाहिए. इसलिए इस दौरान घर और आसपास में विशेष शांति रखी जाती है, ताकि वृत्ति की पूजा और प्रसाद ग्रहण करने के दौरान कोई बाधा ना हो. फिर प्रसाद परिवार रिश्तेदारों और आसपास के लोगों को यह प्रसाद देती है, क्योंकि इस खरना के प्रसाद का विशेष महत्व और मान्यताएं हैं.

इसलिए जो लोग पूर्वांचल से नहीं भी है और अगर उन्हें छठ की महत्ता के बारे में पता है तो वह खरना का प्रसाद मांग कर भी ग्रहण अवश्य करते हैं. इस दिन व्रती सुबह से ही भूखी प्यासी रहती है और इस प्रसाद के ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे तक मतलब जिस दिन उगते हुए सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है, तब तक बिल्कुल निर्जला रहती हैं. अपने इस 4 दिन की कठिन पूजा को पूरा करती हैं.

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खरना की पूजा के दौरान साफ सफाई का विशेष महत्व होता है. और चूल्हे की साफ-सफाई और पूजा करने के बाद इसका प्रसाद तैयार किया जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि अगर किसी व्रती को मदद की जरूरत भी होती है तो जो महिलाएं उनकी पूजा के प्रसाद को बनाने में मदद करेंगी उन्हें भी दिनभर व्रत में रहना होगा.

दरअसल 4 दिन ये पूजा तो नहाय खाय से शुरू होती है. लेकिन पूजा की कठिन परीक्षा खरना पूजा के बाद से ही होती है, क्योंकि इसके बाद से 36 घण्टे व्रती को निर्जला रहना पड़ता है और इसी वजह से छठ पूजा की पूरे विश्व मे मान्यताएं हैं.

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