नई दिल्ली: डॉक्टरों ने एक छह माह की बच्ची का सफल लिवर प्रत्यारोपण कर उसे नया जीवन दिया है. बच्ची को जन्म से ही बायलरी एट्रेसिया की बीमारी थी, जिसके कारण लिवर फेल हो जाता है. डॉक्टरों की सलाह पर बच्ची के माता पिता उसे लेकर दिल्ली के अपोलो अस्पताल पहुंचे, जहां उसका सफल लिवर प्रत्यारोपण हुआ.
दरअसल, बिहार के जहानाबाद में एक दंपति की बच्ची के जन्म के कुछ सप्ताह बाद सामने आया कि उसको पीलिया हुआ है. लेकिन जांच में पता चला कि उनकी बच्ची को बाइलरी एट्रेसिया नाम की बिमारी है, जिसके कारण उसका लिवर फेल हो जाता. कई डॉक्टरों से मिलने के बाद उन्हें पता चला कि लिवर ट्रांसप्लांट इसका उपाय है. इसके बाद छह महीने की बच्ची प्रिशा को दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल लाया गया और उसकी मां लिवर दान करने के लिए तैयार हो गई.
इसके बाद डॉक्टरों ने लिवर प्रत्यारोपण की तैयारी शुरू की. बच्ची को पूरक आहार देने और प्रत्यारोपण के लिए पोषण प्राप्त करने के लिए उसकी नाक के माध्यम से एक फीडिंग ट्यूब डाली गई. बच्ची की मां के लिवर का एक हिस्सा प्रिशा को प्रत्यारोपित किया गया और सफल लिवर प्रत्यारोपण के बाद प्रिशा ठीक हो गई. ट्रांसप्लांट के समय प्रिशा का वजन केवल 4.6 किलोग्राम था. अपोलो हॉस्पिटल ग्रुप ने सोमवार को एक कार्यक्रम का आयोजन कर 500 बच्चों के लिवर प्रत्यारोपण के सफल होने की घोषणा की.
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अस्पताल ने दावा किया कि 90 प्रतिशत सफलता दर के साथ अपोलो लिवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम, दुनियाभर के रोगियों के लिए गुणवत्ता और आशा का स्तंभ है. इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और सीनियर पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. अनुपम सिब्बल ने कहा कि हमें इस महत्वपूर्ण मील के पत्थर तक पहुंचने और इतने बच्चों और परिवारों की मदद करने में सक्षम होने पर गर्व है. 4 किलोग्राम से कम वजन वाले छोटे बच्चों में प्रत्यारोपण, लिवर विफलता के अलावा गंभीर चिकित्सा स्थितियों वाले बच्चों और बच्चों में प्रत्यारोपण, एबीओ असंगत प्रत्यारोपण आदि पर हम बहुत खुश हैं. हमारी 500वीं मरीज एक बच्ची है और हमारी लगभग 45 प्रतिशत मरीज लड़कियां ही हैं. वहीं अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. प्रताप सी रेड्डी ने कहा कि अंग प्रत्यारोपण के मामले में भारत की भूमिका विश्व स्तर पर सबसे अग्रणी है. अंग प्रत्यारोपण एक सच्चा कार्य है.