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इस लाइब्रेरी में 700 साल पुरानी किताबें हैं मौजूद, खूबियां जानकर आप भी जाना चाहेंगे

पुरानी दिल्ली में स्थित 'हज़रात शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी' में करीब 700 साल पुरानी किताबें मौजूद हैं.

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Published : Aug 29, 2019, 10:04 AM IST

'हज़रात शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी', etv bharat

नई दिल्ली: 'हज़रात शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी' पुरानी दिल्ली में इकलौती लाइब्रेरी है जो रात में दस बजे खुलती है. छोटे से कमरे में बनी ये लाइब्रेरी दुर्लभ हो रही किताबों का खजाना है. इस लाइब्रेरी की सरपरस्ती दिल्ली यूथ वेलफेयर एसोसिएशन (DYWA) करती है.

रात में खुलती है पुरानी दिल्ली की एक लाइब्रेरी

DYWA ने की थी लाइब्रेरी की शुरुआत
लाइब्रेरी के बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत ने दिल्ली यूथ वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव सिकंदर चंगेज़ी से बातचीत की.

उन्होंने बताया कि करीब 25 साल पहले DYWA ने लाइब्रेरी की शुरुआत इलाके में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए की थी. इल्म के लिए एक किताब चाहिए और किताब के लिए कुतुबखाने का होना बहुत जरुरी है.

700 साल पुरानी किताबें हैं मौजूद
हज़रत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी में दिल्ली के कॉलेजों के छात्रों के साथ-साथ देश और दुनिया से लोग रिसर्च करने आते हैं. यहां करीब 700 साल पुरानी किताबें मौजूद हैं.

लाइब्रेरी में 700 साल पुरानी किताबों की श्रेणी में उर्दू-संस्कृत मिश्रित गीता और अल्लामा अजीमुद्दीन की किताब बदयूमिजान मौजूद है. उर्दू के साथ विभिन्न जुबानों में भगवद गीता, रामायण, महाभारत, उपनिषद और 4O जुबानों में कुरान शरीफ भी मौजूद है.

चाय से होती है लोगों की मेहमाननवाजी
आमतौर पर लाइब्रेरी में लोग शांति से बैठकर पढ़ते हैं लेकिन इस लाइब्रेरी में लोग पढ़ने के साथ-साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं. अक्सर देर रात बैठकर लोग यहां गालिब, मोमिन, मजाज और दूसरे शायरों और पुरानी दिल्ली के संस्कृति के बारे में नई पीढ़ी को बताते हैं.

खास बात यह है कि लाइब्रेरी में आने वालों से किसी तरह की फीस नहीं ली जाती बल्कि यहां आने वाले तमाम लोगों की चाय से मेहमाननवाजी होती है.

नई दिल्ली: 'हज़रात शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी' पुरानी दिल्ली में इकलौती लाइब्रेरी है जो रात में दस बजे खुलती है. छोटे से कमरे में बनी ये लाइब्रेरी दुर्लभ हो रही किताबों का खजाना है. इस लाइब्रेरी की सरपरस्ती दिल्ली यूथ वेलफेयर एसोसिएशन (DYWA) करती है.

रात में खुलती है पुरानी दिल्ली की एक लाइब्रेरी

DYWA ने की थी लाइब्रेरी की शुरुआत
लाइब्रेरी के बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत ने दिल्ली यूथ वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव सिकंदर चंगेज़ी से बातचीत की.

उन्होंने बताया कि करीब 25 साल पहले DYWA ने लाइब्रेरी की शुरुआत इलाके में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए की थी. इल्म के लिए एक किताब चाहिए और किताब के लिए कुतुबखाने का होना बहुत जरुरी है.

700 साल पुरानी किताबें हैं मौजूद
हज़रत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी में दिल्ली के कॉलेजों के छात्रों के साथ-साथ देश और दुनिया से लोग रिसर्च करने आते हैं. यहां करीब 700 साल पुरानी किताबें मौजूद हैं.

लाइब्रेरी में 700 साल पुरानी किताबों की श्रेणी में उर्दू-संस्कृत मिश्रित गीता और अल्लामा अजीमुद्दीन की किताब बदयूमिजान मौजूद है. उर्दू के साथ विभिन्न जुबानों में भगवद गीता, रामायण, महाभारत, उपनिषद और 4O जुबानों में कुरान शरीफ भी मौजूद है.

चाय से होती है लोगों की मेहमाननवाजी
आमतौर पर लाइब्रेरी में लोग शांति से बैठकर पढ़ते हैं लेकिन इस लाइब्रेरी में लोग पढ़ने के साथ-साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं. अक्सर देर रात बैठकर लोग यहां गालिब, मोमिन, मजाज और दूसरे शायरों और पुरानी दिल्ली के संस्कृति के बारे में नई पीढ़ी को बताते हैं.

खास बात यह है कि लाइब्रेरी में आने वालों से किसी तरह की फीस नहीं ली जाती बल्कि यहां आने वाले तमाम लोगों की चाय से मेहमाननवाजी होती है.

Intro:पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के करीब एक पहाड़ी इमली गली है, गली काफी तंग है और गली में घुसते ही दाएं हाथ पर दीवार पर काले रंग से उर्दू में लिखा है 'अल्लाह सब देख रहा है, यहाँ कूड़ा ना डालें' और गली के द्वार पर बीच में एक खमबा खड़ा है जिससे कोई रिक्शा गली में ना जा पाए, क्यूंकि गली इतनी तंग है कि अगर आमने सामने से दो मोटरसाइकिल आ जाएँ तो रास्ता बंद हो जाए. शायद गली का नाम पहाड़ी इमली इसलिए लिए रखा गया होगा क्योंकि गली में काफी चढ़ाई है, गली में घुसने के बाद ऐसा लगता है जैसे किसी पहाड़ी इलाक़े में पैदल चल रहे हों. गली से गुज़रते हुए आपको बिल्लियां नज़र आएँगी जो आपको देर तक घूरेंगी, हर नए शख्स को घूरतीं है. पहाड़ी इमली गली में दस बीस कदम चलने के बाद बाये हाथ पर एक डॉक्टर का क्लिनिक है, इसी क्लिनिक के पड़ोस में एक छोटा सा दरवाज़ा है, ऊपर हरे रंग का बोर्ड लगा है जिसपर चूने के सफ़ेद दाग हैं, बोर्ड पर लिखा है 'हज़रत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी'.

Body:पुरानी दिल्ली: 'हज़रात शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी' पुरानी दिल्ली में इकलौती लाइब्रेरी है जो रात में दस बजे खुलती है, छोटे से कमरे में बनी ये लाइब्रेरी दुर्लभ हो रही किताबों का ख़ज़ाना है. इस लाइब्रेरी कि सरपरस्ती दिल्ली यूथ वेल-फेयर एसोसिएशन करती है.

लाइब्रेरी के बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत ने दिल्ली यूथ वेल-फेर एसोसिएशन (DYWA) के महासचिव सिकंदर चंगेज़ी से बातचीत की, उन्होंने बताया की करीब 25 साल पहले DYWA ने लाइब्रेरी की शुरुआत इलाक़े में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए की थी, इल्म के लिए एक किताब चाहिए और किताब के लिए क़ुतुबखाने का होना बहुत ज़रूरी है.

हज़रत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी में दिल्ली के कॉलेजों के छात्रों के साथ साथ देश और दुनिया से लोग रिसर्च करने आते हैं, यहाँ करीब 700 साल पुरानी किताबें मौजूद हैं, लाइब्रेरी में 700 साल पुरानी किताबों की श्रेणी में उर्दू-संस्कृत मिश्रित गीता और अल्लामा अजीमुद्दीन की किताब बदयूमिजान मौजूद है. उर्दू के साथ विभिन्न ज़बानों में भगवद गीता, रामायण, महाभारत ,उपनिषद और 4O ज़बानों में क़ुरान शरीफ भी मौजूद है.

आमतौर पर लाइब्रेरी में लोग शांति से बैठकर पढ़ते हैं लेकिन इस लाइब्रेरी में लोग पढ़ने के साथ साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं, अक्सर देर रात बैठकर लोग यहाँ ग़ालिब, मोमिन, मजाज़ आदि शायरों और पुरानी दिल्ली के संस्कृति के बारे में नई पीढ़ी को बताते हैं.

ख़ास बात यह है की लाइब्रेरी में आने वालों से किसी तरह की फ़ीस नहीं ली जाती बल्कि यहाँ आने वाले तमाम लोगों की चाय से मेहमाननवाज़ी होती है.
Conclusion:सिकंदर चंगेज़ी ने बताया कि जब शाहजहाँ ने दिल्ली को राजधानी बनाया था उस दौर में दिल्ली के विभिन्न इलाक़ों में लाइब्रेरी क़ायम होना शुरू हो गयी थी,अधिकांश मस्जिद, मदरसों और घरों में लाइब्रेरी हुआ करती थी.

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