नई दिल्ली: ओखला स्थित इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (ट्रिपल आईटी) में एक मेडिकल कॉबोटिक्स सेंटर की स्थापना की गई. इस सेंटर की स्थापना ट्रिपल आईटी दिल्ली फाउंडेशन के आईहब अनुभूति और आईआईटी दिल्ली की टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब की ओर से की गई. चीफ गेस्ट डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सीनियर एडवाइजर डॉ अखिलेश गुप्ता ने उद्घाटन किया. इस अवसर पर वैज्ञानिकों ने डेमो दिए और बताया कि किस तरह से यहां पर डॉक्टर को प्रशिक्षण दिया जाएगा.
इस केंद्र में इंजीनियरिंग, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और मेडिकल साइंस के समन्वय से चिकित्सा के क्षेत्र में बड़े बदलाव किए जा सकेंगे. इसका सबसे ज्यादा फायदा मेडिकल क्षेत्र की छात्र-छात्राओं को होगा. दरअसल, इस केंद्र में मानव शरीर की आंतरिक संरचना को समझने के लिए सिलिकॉन के पुतले रखे गए हैं. इन पुतलों पर इंजेक्शन लगाने से लेकर जटिल से जटिल सर्जरी और वेंटिलेटर लगाने, प्लास्टर बांधने समेत अन्य कई मेडिकल प्रैक्टिस की सुविधा मिलेगी. इस तकनीक से सीखने के बाद मेडिकल के छात्र जो विशेषज्ञता हासिल करेंगे उससे उन्हें कभी भी मरीज पर कोई प्रयोग नहीं करना होगा.
''पूरी दुनिया में मेडिकल साइंस बहुत तेजी से बदल रहा है. भारत भी इसमें कहीं से भी पीछे नहीं है. स्वदेशी तकनीक से बनाया गया सिमुलेशन से सुसज्जित यह मेडिकल कोबोटिक्स सेंटर देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास की नजीर है. इस पहल से डॉक्टर को विशेषज्ञता हासिल करने में काफी सुविधा हो गई है. इस तकनीक से सीखकर जो डॉक्टर निकलेंगे वह कभी किसी काम में खुद को नया नहीं महसूस करेंगे. इस लैब में स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी हर जरूरी चीज की प्रैक्टिस कराई जाएगी. यह सारी प्रैक्टिस सिलिकॉन से बने पुतलों पर होगी. यह ऐसे पुतले हैं जो सांस भी लेते हैं और मानव शरीर जैसा ही दिखते हैं."
प्रोफेसर रंगन बनर्जी, डायरेक्टर, आईआईटी दिल्ली
शोध पर रहेगा फोकस: ट्रिपल आईटी के प्रोफेसर ने बताया कि मेडिकल के छात्र जब डिग्री हासिल कर प्रैक्टिस शुरू करते हैं तो शुरुआती दौर में उनसे कई बार ऐसा होता हैं, जिससे मरीज को बहुत परेशानी होती है. इसे एक छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है. दरअसल, डॉक्टर इंजेक्शन लगाना एक दिन में नहीं सीखते हैं. कई बार गलतियां होती है, मरीज परेशान होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वह उस काम में माहिर हो जाते हैं.
ऐसे में कल्पना कीजिए कि यदि डॉक्टर यही प्रैक्टिस सिलिकॉन से तैयार किए गए हूबहू मानव के पुतले पर करें, तो कितना अच्छा होगा. इससे न तो मरीज को तकलीफ होगी और न ही डॉक्टर को कोई असुविधा होगी. ट्रिपल आईटी के डायरेक्टर डॉक्टर रंजन बोस ने बताया कि इस लैब में रिसर्च और ट्रेनिंग दोनों पर फोकस किया जाएगा. सीखने के लिए मेडिकल स्टूडेंट्स को यहां पर लाया जाएगा. अभी एम्स दिल्ली और एम्स जोधपुर के छात्र-छात्राओं को यहां पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा. बाद में अन्य मेडिकल कॉलेज से भी इस बारे में करार किया जाएगा.
एआई आधारित भी होंगे सिमुलेशन: मेडिकल कोबोटिक्स केंद्र में रखे गए सिलिकॉन के पुतले पर प्रैक्टिस करने के दौरान जरूरत के अनुसार डॉक्टर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल कर सकेंगे. किसी भी बीमारी को डिटेक्ट करने के लिए संबंधित मरीज की क्या-क्या जांच की जानी है, बीमारी का सही पता लगाने के लिए क्या-क्या किया जाना है, इन सब के बारे में निर्णय लेना डॉक्टर के लिए काफी आसान हो जाएगा. इसके अलावा डॉक्टरों की काम की एक्यूरेसी बढ़ाने की भी उम्मीद है, क्योंकि मरीज के बारे में डॉक्टर को सब कुछ पहले से पता रहेगा.
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