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ऑनलाइन दवा बिक्री केस: कंपनियां बोलीं- हम सिर्फ डिलीवरी करते हैं, इसलिए लाइसेंस की जरूरत नहीं

ऑनलाइन फार्मा कंपनियों ने कहा कि ओला और उबर जैसे प्लेटफॉर्म को मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत नहीं होती है, वैसे ही ऑनलाइन दवा कंपनियों को भी लाइसेंस की जरूरत नहीं हैं. वो ना तो दवा बनाते हैं और न ही बेचते हैं बल्कि वे केवल दवाइयों की डिलीवरी के लिए प्लेटफॉर्म के रुप में काम करते हैं.

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Published : Sep 24, 2019, 8:15 PM IST

हम ओला, उबर और स्विगी जैसे ना दवा बनाते हैं ना स्टॉक करते हैं-ऑनलाइन दवाएं

नई दिल्ली: ऑनलाइन दवाएं बेचने वाली कंपनियों ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि उन्हें दवाओं की बिक्री के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं है. हाईकोर्ट में दवाओं की ऑनलाइन ब्रिक्री पर लगी रोक के पहले के आदेश के संबंध में दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई चल रही थी.

ऑनलाइन फार्मा कंपनियों ने कहा कि ओला और उबर जैसे प्लेटफॉर्म को मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत नहीं होती है, वैसे ही ऑनलाइन दवा कंपनियों को भी लाइसेंस की जरूरत नहीं हैं. वो ना तो दवा बनाते हैं और न ही बेचते हैं बल्कि वे केवल दवाइयों की डिलीवरी के लिए प्लेटफॉर्म के रुप में काम करते हैं.

हम ना दवाएं बनाते हैं और न ही स्टॉक करते हैं-ऑनलाइन दवा कंपनियां
वन एमजी टेकनॉलॉजीज की ओर से वरिष्ठ वकील अमित चड्ढा ने चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि ऑनलाइन कंपनियां दवाइयां नहीं बनाती है और न ही स्टॉक करती हैं, बल्कि वो केवल एक प्लेटफॉर्म की तरह काम करती हैं. तब जस्टिस सी हरिशंकर ने पूछा कि क्या आप अमेजन की तरह काम करते हैं तब चड्ढा ने कहा कि हम ओला, उबेर की तरह काम करते हैं जिनके पास एक भी कैब नहीं होता और उन्हें मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत नहीं होती. हम केवल रामू की तरह काम करते हैं.

'दवाइयां बेचते नहीं बल्कि सिर्फ डिलीवरी करते हैं'
इससे पहले की सुनवाई के दौरान भी ऑनलाइन कंपनियों ने कहा था कि वे दवाईयां नहीं बेचती हैं बल्कि वो सिर्फ दवाइयों की डिलीवरी करते हैं जैसे खाने की चीजें बेचने वाली स्विगी ऐप करती है. केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि वो ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर नियंत्रण करने के लिए नियम बना रही है.

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से वकील कीर्तिमान सिंह ने कहा था कि इस संबंध में नियम बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं. उसके बाद कोर्ट ने अवमानना याचिका पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था.

कोर्ट ने जारी किया था नोटिस
पिछले 26 अप्रैल को कोर्ट ने केंद्र सरकार, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गनाइजेशन और दिल्ली सरकार के ड्रग कंट्रोलर को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने ऑनलाइन तरीके से दवाइयों की बिक्री कर रही कंपनियों को भी नोटिस जारी किया है.

सरकार की लापरवाही से ऑनलाइन बिक रही दवाइयां?
याचिका डॉ जहीर खान ने दायर की है. जहीर खान ने अपने वकील नकुल मोहता और मीशा रोहतगी मोहता के जरिये दायर याचिका में कहा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल के दिशा-निर्देशों के बावजूद लाखों दवाइयां आनलाइन बेची जा रही हैं. याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार और दिल्ली के ड्रग कंट्रोलर की लापरवाही की वजह से ई-फार्मेसी कंपनियां धड़ल्ले से दवाईयां बेच रही हैं. वो न केवल अपना प्रचार कर रहे हैं बल्कि अपनी वेबसाइट और ऐप का विस्तार भी कर रहे हैं. ये सब कुछ कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए किया जा रहा है. दिसंबर 2018 में कोर्ट ने आनलाइन दवाइयों की बिक्री पर रोक लगा दी थी. आनलाइन दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए भी याचिका दिल्ली के डॉ. जहीर अहमद ने ही दायर की थी.

'मरीजों के लिए हो सकता है खतरा'
याचिका में कहा गया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है जिसकी वजह से ये रोगियों के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है. याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 और फार्मेसी एक्ट 1948 के तहत दवाइयों की ऑनलाइन बिक्री की अनुमति नहीं है.

याचिका में कहा गया था कि 2015 में भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने सभी राज्यों के ड्रग कंट्रोलर्स को निर्देश दिया था कि वे ऑनलाइन दवाईयों की बिक्री पर रोक लगाएं ताकि आम जनता के हितों की रक्षा हो सके. लेकिन सरकार लोगों के हितों की रक्षा करने में नाकाम रही.

याचिका में ये भी कहा गया है कि सामान्य चीजों की तरह दवाइयों के दुरुपयोग से आम जनता को काफी नुकसान हो सकता है. दवाइयों का इस्तेमाल बच्चों से लेकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के जुड़े लोग भी करते हैं जो कम पढ़े-लिखे होते हैं, कुछ दवाइयां साइकोट्रॉपिक होती हैं जिन्हें ऑनलाईन प्लेटफॉर्म पर आसानी से ऑर्डर किया जा सकता है. इनका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए भी हो सकता है.

नई दिल्ली: ऑनलाइन दवाएं बेचने वाली कंपनियों ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि उन्हें दवाओं की बिक्री के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं है. हाईकोर्ट में दवाओं की ऑनलाइन ब्रिक्री पर लगी रोक के पहले के आदेश के संबंध में दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई चल रही थी.

ऑनलाइन फार्मा कंपनियों ने कहा कि ओला और उबर जैसे प्लेटफॉर्म को मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत नहीं होती है, वैसे ही ऑनलाइन दवा कंपनियों को भी लाइसेंस की जरूरत नहीं हैं. वो ना तो दवा बनाते हैं और न ही बेचते हैं बल्कि वे केवल दवाइयों की डिलीवरी के लिए प्लेटफॉर्म के रुप में काम करते हैं.

हम ना दवाएं बनाते हैं और न ही स्टॉक करते हैं-ऑनलाइन दवा कंपनियां
वन एमजी टेकनॉलॉजीज की ओर से वरिष्ठ वकील अमित चड्ढा ने चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि ऑनलाइन कंपनियां दवाइयां नहीं बनाती है और न ही स्टॉक करती हैं, बल्कि वो केवल एक प्लेटफॉर्म की तरह काम करती हैं. तब जस्टिस सी हरिशंकर ने पूछा कि क्या आप अमेजन की तरह काम करते हैं तब चड्ढा ने कहा कि हम ओला, उबेर की तरह काम करते हैं जिनके पास एक भी कैब नहीं होता और उन्हें मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत नहीं होती. हम केवल रामू की तरह काम करते हैं.

'दवाइयां बेचते नहीं बल्कि सिर्फ डिलीवरी करते हैं'
इससे पहले की सुनवाई के दौरान भी ऑनलाइन कंपनियों ने कहा था कि वे दवाईयां नहीं बेचती हैं बल्कि वो सिर्फ दवाइयों की डिलीवरी करते हैं जैसे खाने की चीजें बेचने वाली स्विगी ऐप करती है. केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि वो ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर नियंत्रण करने के लिए नियम बना रही है.

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से वकील कीर्तिमान सिंह ने कहा था कि इस संबंध में नियम बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं. उसके बाद कोर्ट ने अवमानना याचिका पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था.

कोर्ट ने जारी किया था नोटिस
पिछले 26 अप्रैल को कोर्ट ने केंद्र सरकार, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गनाइजेशन और दिल्ली सरकार के ड्रग कंट्रोलर को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने ऑनलाइन तरीके से दवाइयों की बिक्री कर रही कंपनियों को भी नोटिस जारी किया है.

सरकार की लापरवाही से ऑनलाइन बिक रही दवाइयां?
याचिका डॉ जहीर खान ने दायर की है. जहीर खान ने अपने वकील नकुल मोहता और मीशा रोहतगी मोहता के जरिये दायर याचिका में कहा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल के दिशा-निर्देशों के बावजूद लाखों दवाइयां आनलाइन बेची जा रही हैं. याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार और दिल्ली के ड्रग कंट्रोलर की लापरवाही की वजह से ई-फार्मेसी कंपनियां धड़ल्ले से दवाईयां बेच रही हैं. वो न केवल अपना प्रचार कर रहे हैं बल्कि अपनी वेबसाइट और ऐप का विस्तार भी कर रहे हैं. ये सब कुछ कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए किया जा रहा है. दिसंबर 2018 में कोर्ट ने आनलाइन दवाइयों की बिक्री पर रोक लगा दी थी. आनलाइन दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए भी याचिका दिल्ली के डॉ. जहीर अहमद ने ही दायर की थी.

'मरीजों के लिए हो सकता है खतरा'
याचिका में कहा गया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है जिसकी वजह से ये रोगियों के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है. याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 और फार्मेसी एक्ट 1948 के तहत दवाइयों की ऑनलाइन बिक्री की अनुमति नहीं है.

याचिका में कहा गया था कि 2015 में भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने सभी राज्यों के ड्रग कंट्रोलर्स को निर्देश दिया था कि वे ऑनलाइन दवाईयों की बिक्री पर रोक लगाएं ताकि आम जनता के हितों की रक्षा हो सके. लेकिन सरकार लोगों के हितों की रक्षा करने में नाकाम रही.

याचिका में ये भी कहा गया है कि सामान्य चीजों की तरह दवाइयों के दुरुपयोग से आम जनता को काफी नुकसान हो सकता है. दवाइयों का इस्तेमाल बच्चों से लेकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के जुड़े लोग भी करते हैं जो कम पढ़े-लिखे होते हैं, कुछ दवाइयां साइकोट्रॉपिक होती हैं जिन्हें ऑनलाईन प्लेटफॉर्म पर आसानी से ऑर्डर किया जा सकता है. इनका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए भी हो सकता है.

Intro:नई दिल्ली । दवाईयों की ऑनलाइन ब्रिक्री पर लगी रोक के पहले के आदेश के संबंध में दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान ऑनलाईन फार्मा कंपनियों ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि उन्हें दवाईयों की बिक्री के लिए लाईसेंस की जरुरत नहीं है। इन कंपनियों ने कहा कि जैसे ओला और उबर जैसे प्लेटफॉर्म को मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरुरत नहीं होती है वैसे ही ऑनलाइन दवा कंपनियों को भी लाईसेंस की जरुरत नहीं हैं। वे न तो दवा बनाते हैं और न ही बेचते हैं बल्कि वे केवल दवाईयों की डिलीवरी के लिए प्लेटफॉर्म के रुप में काम करती हैं।



Body:वन एमजी टेकनॉलॉजीज की ओर से वरिष्ठ वकील अमित चड्ढा ने चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि ऑनलाइन कंपनियां दवाईयों को नहीं बनाती हैं और न ही स्टॉक करती हैं, बल्कि वे केवल एक प्लेटफॉर्म की तरह काम करती हैं। तब जस्टिस सी हरिशंकर ने पूछा कि क्या आप अमेजन की तरह काम करते हैं तब चड्ढा ने कहा कि हम ओला, उबेर की तरह काम करते हैं जिनके पास एक भी कैब नहीं होता औऱ उन्हें मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाईसेंस की जरुरत नहीं होती है। हम केवल रामू की तरह काम करते हैं।
इसके पहले की सुनवाई के दौरान भी ऑनलाईन कंपनियों ने कहा था कि वे दवाईयां नहीं बेचते हैं बल्कि वे दवाईयों की डिलीवरी करते हैं जैसे खाने की चीजें बेचने वाली स्विगी ऐप करती है। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि वो ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर नियंत्रण करने के लिए नियम बना रही है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से वकील कीर्तिमान सिंह ने कहा था कि इस संबंध में नियम बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। उसके बाद कोर्ट ने अवमानना याचिका पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
पिछले 26 अप्रैल को कोर्ट ने केंद्र सरकार, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गनाइजेशन और दिल्ली सरकार के ड्रग कंट्रोलर को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने ऑनलाइन तरीके से दवाईयों की बिक्री कर रही कंपनियों को भी नोटिस जारी किया है।
याचिका डॉ जहीर खान ने दायर की है। जहीर खान ने अपने वकील नकुल मोहता औऱ मिशा रोहतगी मोहता के जरिये दायर याचिका में कहा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल के दिशा-निर्देशों के बावजूद लाखों दवाईयां आनलाइन बेची जा रही हैं। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार और दिल्ली के ड्रग कंट्रोलर की लापरवाही की वजह से ई-फार्मेसी कंपनियां धड़ल्ले से दवाईयां बेच रही हैं। वे न केवल अपना प्रचार कर रहे हैं बल्कि वे अपने वेबसाईट और ऐप का विस्तार कर रही हैं। ये सब कुछ कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए की जा रही हैं।
दिसंबर 2018 में कोर्ट ने आनलाइन दवाईयों की बिक्री पर रोक लगा दिया था। आनलाइन दवाईयों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए भी याचिका दिल्ली के डॉ. जहीर अहमद ने ही दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि दवाईओं की ऑनलाइन बिक्री के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है जिसकी वजह से ये रोगियों के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 और फार्मेसी एक्ट 1948 के तहत दवाईयों के ऑनलाइन की बिक्री की अनुमति नहीं है।
याचिका में कहा गया था कि 2015 में भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने सभी राज्यों के ड्रग कंट्रोलर्स को निर्देश दिया था कि वे ऑनलाइन दवाईयों की बिक्री पर रोक लगाएं ताकि आम जनता के हितों की रक्षा हो सके। लेकिन सरकार लोगों के हितों की रक्षा करने में नाकाम रही।



Conclusion:याचिका में कहा गया था कि सामान्य चीजों की तरह दवाईयों के दुरुपयोग से आम जनता को काफी नुकसान हो सकता है। दवाईयों का इस्तेमाल बच्चों से लेकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के जुड़े लोग भी करते हैं जो कम पढ़े-लिखे होते हैं। कुछ दवाईयां साइकोट्रॉपिक होती हैं जिन्हें ऑनलाईन प्लेटफॉर्म पर आसानी से ऑर्डर किया जा सकता है। इनका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए भी हो सकता है।
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