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शादी के बाद पैदा हुए बच्चे से मैच नहीं हुआ पिता का DNA, हाईकोर्ट ने कहा जैविक पिता ही बच्चे के भरण पोषण का जिम्मेदार

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला बरकरार रखते हुए कहा है कि बच्चे का जैविक पिता ही उसके भरण पोषण के लिए उत्तरदाई है. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बच्चे का जैविक पिता नहीं है, इसलिए उसे बच्चे के भरण पोषण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. Delhi high court, Biological father is responsible for maintenance of child

delhi high court
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 26, 2023, 6:55 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें दोनों पक्षों की शादी के एक महीने बाद पैदा हुए बच्चे को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया गया था. हाईकोर्ट ने डीएनए रिपोर्ट पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता का पति उसके बच्चे का जैविक पिता नहीं है. इसपर जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद डीएनए रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवादी (पति) को बच्चे के भरण पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भले ही बच्चा याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह के दौरान पैदा हुआ हो, लेकिन पति को बच्चे के भरण पोषण का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.

पीठ ने कहा कि कानून यह भी तय करता है कि बच्चे के भरण पोषण के लिए उनका जैविक पिता ही उत्तरदाई है. पीठ ने प्रतिवादी के वकील की इस दलील पर भी गौर किया कि शादी के समय वह नाबालिग था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि पति नाबालिग था तब तो यह शादी ही शून्य हो जाती है. अदालत में प्रतिवादी के वकील ने अपनी दलीलों में कहा कि याचिकाकर्ता पत्नी ने अपनी कमाई का तथ्य अदालत से छुपाया. इसपर हाईकोर्ट ने कहा कि स्थापित कानून के अनुसार अदालत की राय है कि अंतरिम गुजारा भत्ता देने के चरण में न्यायालय के समक्ष रखे गए तथ्यों के साथ-साथ पहले दायर किए गए आय और व्यय के कारकों पर भी 'फर्स्ट साइट ऑबजरवेशन' किया जाना चाहिए.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता रसोईया या घरेलू सहायिका के रूप में काम कर रही थी. मौजूदा वक्त में यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि वह कुछ भी कमा रही है. दोनों व्यक्तियों के बीच विवाह का तथ्य भी विवादित नहीं है, लेकिन इस विवाह की वैधानिकता विवादित है जो संबंधित अदालत के समक्ष निर्णय का विषय है. इस मसले पर अदालत की राय है कि ट्रायल कोर्ट ने भरण पोषण से इनकार करके एक गलती जरूर की है. खासकर तब जब याचिकाकर्ता के रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि वह काम नहीं कर रही है.

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें दोनों पक्षों की शादी के एक महीने बाद पैदा हुए बच्चे को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया गया था. हाईकोर्ट ने डीएनए रिपोर्ट पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता का पति उसके बच्चे का जैविक पिता नहीं है. इसपर जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद डीएनए रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवादी (पति) को बच्चे के भरण पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भले ही बच्चा याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह के दौरान पैदा हुआ हो, लेकिन पति को बच्चे के भरण पोषण का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.

पीठ ने कहा कि कानून यह भी तय करता है कि बच्चे के भरण पोषण के लिए उनका जैविक पिता ही उत्तरदाई है. पीठ ने प्रतिवादी के वकील की इस दलील पर भी गौर किया कि शादी के समय वह नाबालिग था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि पति नाबालिग था तब तो यह शादी ही शून्य हो जाती है. अदालत में प्रतिवादी के वकील ने अपनी दलीलों में कहा कि याचिकाकर्ता पत्नी ने अपनी कमाई का तथ्य अदालत से छुपाया. इसपर हाईकोर्ट ने कहा कि स्थापित कानून के अनुसार अदालत की राय है कि अंतरिम गुजारा भत्ता देने के चरण में न्यायालय के समक्ष रखे गए तथ्यों के साथ-साथ पहले दायर किए गए आय और व्यय के कारकों पर भी 'फर्स्ट साइट ऑबजरवेशन' किया जाना चाहिए.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता रसोईया या घरेलू सहायिका के रूप में काम कर रही थी. मौजूदा वक्त में यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि वह कुछ भी कमा रही है. दोनों व्यक्तियों के बीच विवाह का तथ्य भी विवादित नहीं है, लेकिन इस विवाह की वैधानिकता विवादित है जो संबंधित अदालत के समक्ष निर्णय का विषय है. इस मसले पर अदालत की राय है कि ट्रायल कोर्ट ने भरण पोषण से इनकार करके एक गलती जरूर की है. खासकर तब जब याचिकाकर्ता के रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि वह काम नहीं कर रही है.

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