नई दिल्ली: रॉ अधिकारी निशा प्रिया भाटिया की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई की. इसी बीच कोर्ट ने दोहराया कि जब तक मांगी गई जानकारी मानवाधिकारों या भ्रष्टाचार से संबंधित नहीं है, तब तक भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता है. रॉ एक ऐसा संगठन है, जिसका विशेष रूप से आरटीआई (सूचना का अधिकार) अधिनियम की धारा अनुसूची में उल्लेख किया गया है.
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने पारित एक आदेश में कहा कि यह एक छूट प्राप्त संगठन है. हाईकोर्ट का अवलोकन केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए आया है. जिसमें रॉ से संबंधित सूचनाओं को पूर्व में आपूर्ति करने से इनकार कर दिया गया था. रॉ अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ने एक निश्चित अवधि के दौरान पूर्व रॉ प्रमुख द्वारा सरकारी आवास के आवंटन के लिए किए गए आवेदनों का विवरण मांगा था. उसकी आरटीआई क्वेरी के जवाब में संपदा निदेशालय भारत सरकार ने जवाब दिया था. आवेदन पत्र में कुछ सेवा विवरण शामिल थे, जिनका एक्सपोजर रॉ नामक संगठन के कार्यात्मक हित में नहीं हो सकता है. हाईकोर्ट के समक्ष उसने सीआईसी के 30 अक्टूबर, 2017 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसने उसकी अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह मांगी गई जानकारी प्राप्त करने की हकदार नहीं है.
सीआईसी ने तर्क दिया था कि रॉ एक छूट प्राप्त संगठन के रूप में आरटीआई अधिनियम की धारा 24 के अंतर्गत आता है और अपवाद को आकर्षित करने के लिए वर्तमान मामले में मानवाधिकार या भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं बनाया गया था. आरटीआई अधिनियम की धारा 24 प्रदान करती है कि अधिनियम की दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट सुरक्षा और खुफिया संगठनों पर अधिनियम लागू नहीं होता है. रॉ दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट संगठनों में से एक है. हालांकि, धारा 24 का पहला प्रावधान धारा 24 में प्रदान की गई छूट के लिए एक अपवाद प्रदान करता है. यदि मांगी गई जानकारी भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से संबंधित है.
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