हैदराबाद : भारत में कुश्ती के ग्रीको-रोमन फॉर्मेट को फ्रीस्टाइल फॉर्मेट की तुलना में कम लोकप्रियता हासिल है. ग्रीको-रोमन फॉर्मेट में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश के लिए बहुत कम सफलता की कहानियां हैं. हालांकि गुरप्रीत सिंह जैसे पहलवान इस धारणा को बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं.
गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय ग्रीको-रोमन पहलवान बने
पिछले साल पंजाब के मोहाली के 25 वर्षीय गुरप्रीत ने इटली के सासरी में रैंकिंग सीरीज टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय ग्रीको-रोमन पहलवान बने थे. उन्होंने शुक्रवार को एक बार फिर रोम रैंकिंग सीरीज टूर्नामेंट वही कारनामा कर दिखाया. गुरप्रीत ने तुर्की के बुरहान अकबडक को 8-5 से 82 किलोग्राम रोमांचक फाइनल मुकाबले में हराया.
स्वर्ण पदक जीतना शानदार है
गुरप्रीत ने जर्मनी के फ्लोरियन न्यूमैयर के को 7-0 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी. उन्होंने क्वार्टर में यूक्रेन के ड्मित्रो गार्डुबेई को हराया. वहीं सेमीफाइनल में उन्होंने अमेरिका के जॉन वाल्टर स्टेफेनोविच को 5-0 से हराकर फाइनल में जगह बनाई.
गुरप्रीत ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा, ''"मैंने अपनी अटैकिंग तकनीकों पर ध्यान दिया और होल्ड पोजिशन पर भी. ये स्वर्ण पदक जीतना शानदार है."
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ग्रीको-रोमन कुश्ती, फ्रीस्टाइल की तुलना में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है क्योंकि ज्यादातर भारतीय पहलवान दंगल लड़ते हुए बड़े होते हैं, जहां पर फ्रीस्टाइल फॉर्म के नियमों और कानूनों का पालन किया जाता है. भारत के प्रमुख ग्रीको-रोमन कोच, हरगोविंद सिंह को लगता है कि देश में चीजें थोड़ी बदल रही हैं.