हैदराबाद : किसी ने नहीं सोचा होगा कि हरयाणा के एक छोटे जिले भिवानी से पांच किलोमीटर दूर एक गांव के एक ड्राइवर का बेटा देश के लिए बॉक्सिंग में भारत का पहला ओलंपिक मेडल लाएगा. 2008 के बीजिंग ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट विजेंद्र सिंह बेनीवाल आज पहना 34वां जन्मदिन मना रहे हैं.
ये बात बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि विजेंद्र का बचपन गरीबी में गुजरा था. उनके पिता हरियाणा रोजवेज में बस ड्राइवर थे जो अपने बेटों विजेंद्र और मनोज की स्कूल की फीस भरने के लिए ओवरटाइम किया करते थे.
भिवानी जिले के ही बॉक्सर राजकुमार सांगवान को जब अर्जुन अवॉर्ड मिला था तब से विजेंद्र की दिलचस्पी बॉक्सिंग के प्रति बढ़ती चल गई. विजेंद्र और उनके बड़े भाई मनोज दोनों ने घर की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए बॉक्सिंग सीखी.विजेंद्र सिंह भिवानी के एक बॉक्सिंग क्लब में प्रैक्टिस करते थे. जहां नेशनल लेवल के बॉक्सर जगदीश सिंह ने उनके टेलेंट को पहना और उनको बेहतर ट्रेनिंग दी. मीडिया में उनकी बॉक्सिंग स्टाइल, अपर कट्स और हुक्स की तुलना बॉक्सिंग लेजेंड और एक्टर सिलवेस्टर स्टेलून से की जाती है.उन्होंने साल 2008 बीजिंग ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता, जो बॉक्सिंग में देश का पहला ओलंपिक मेडल था. इस जीत के साथ उनको हरियाणा डीएसपी का पद मिल गया.साल 2009 में मिलान में हुए वर्ल्ड चैंपियनशिप्स में भी उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता. राष्ट्रमंडल खेलों की बात करें तो उन्होंने साल 2006 में मेलबर्न में सिल्वर, 2014 में ग्लास्गो में सिल्वर और 2010 में दिल्ली में ब्रॉन्ड मेडल जीता था. एशियाई खोलों में उन्होंने 2010 में गोल्ड और 2016 में ब्रॉन्ज मेडल जीता.
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2009 में राजीव गांधी खेल रत्म और साल 2010 में सिंह को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया. विजेंद्र सिंह की पर्सनेलिटी किसी हीरो से कम नहीं है. 2014 में उन्होंने फगली मूवी में एक्टिंग की थी. फिर साल 2015 में उन्होंने प्रोफेशनल बॉक्सिंग में कदम रखा और अपने खेले गए सभी 11 मुकाबलों में जीत दर्ज की.