श्रीनगर: कोविड महामारी के बीच ओलंपिक दिवस मनाने के लिए दुनिया के सबसे बड़े 24 घंटे के डिजिटल वर्कआउट में दुनिया भर के ओलंपियन, एथलीट हिस्सा लेंगे. आज 23 जून को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाया जा रहा है. इसकी शुरुआत साल 1948 में हुई थी.
जम्मू और कश्मीर के खिलाड़ी अपनी असाधारण प्रतिभा और मेहनत के बावजूद अपने खेल को सबसे बड़े मंच पर प्रदर्शित नहीं कर सके हैं. लेकिन साल 1988 में, गुल मुस्तफा देव ने कैलगरी, कनाडा में आयोजित हुए शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेकर कश्मीर और अपने परिवार का गौरव बढ़ाया था.
जम्मू और कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर के निवासी, गुल मुस्तफा देव को जम्मू और कश्मीर का पहला और कश्मीर का एकमात्र ओलंपियन होने का श्रेय प्राप्त है.
ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान उन्होंने अपने ओलंपिक सफर सहित कई विषयों पर बात की.
1986 में आयोजित हुए राष्ट्रीय स्कीइंग प्रतियोगिता में, गुल ने 'जाइंट स्लैलम' में स्वर्ण पदक, 'स्लैलम' में कांस्य और 'डाउनहिल स्की स्टाइल' में भी कांस्य जीता. इस प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन के बाद, विंटर गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने उन्हें पहली बार आयोजित हो रहे शीतकालीन एशियाई खेलों में खेलने के लिए भारतीय स्क्वाड में जगह दी. इन खेलों का आयोजन उसी वर्ष 1 मार्च से 8 मार्च के बीचे जापान के साप्पोरो में हुआ था.
शीतकालीन ओलंपिक सफारी के अपने रोमांचकारी अनुभवों को याद करते हुए गुल ने ईटीवी भारत को बताया कि यह उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा था. 1988 में, कैलगरी, कनाडा में होने वाले 15वें शीतकालीन ओलंपिक के लिए टीम का चयन करने के लिए भारतीय ओलंपिक संघ और विंटर गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा ट्राइल का आयोजन किया गया था.
गुल ने बताया, "मैंने इसमें पहला स्थान हासिल किया और ओलंपिक खेलों के लिए चुना गया."
उन्होंने कहा कि यह पहली बार था जब भारत ने ओलंपिक खेलों में भाग लिया था और उस दल का हिस्सा बनने पर आज तक उन्हें खुद पर गर्व है. गुल ने कहा, "मैं अभी भी उन पलों को याद कर खुश होता हूं. मैंने इस स्पर्धा में 68वां स्थान हासिल किया था."
साल 2008 में, भारतीय ओलंपिक संघ और विंटर गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दिल्ली से देहरादून, शिमला और जम्मू से गुलमर्ग में शीतकालीन खेलों की मशाल लाने के लिए गुल मुस्तफा देव को चुना. गुल ने उस पल को याद करते हुए कहा, उस लौ के जलाना और भी यादगार था."
![Gul Mustafa Dev](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/guldev1592893686090-19_2306email_1592893697_655.jpg)
जम्मू और कश्मीर के पहले और एकमात्र ओलंपक खिलाड़ी होने के नाते राज्य सरकार ने उन्हें शेर-ए-कश्मीर मेडल से सम्मानित किया. वहीं, 2011 में गुल को तत्कालीन राज्य पर्यटन मंत्री नवांग रिग्जिन जोरा से 'ओलंपियन अवॉर्ड' मिला. खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने भी अवॉर्ड दिया.
गुल ने कहा कि हमारे राज्य में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है और वह अपने मार्गदर्शन में युवा प्रतिभाओं को तराशना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे एक स्कीइंग प्रशिक्षक के रूप में युथ सर्विसेज और स्पोर्टस में नौकरी भी मिली और वर्तमान में मैं मुख्य स्कीइंग प्रशिक्षक हूं. मुझे स्विस और फ्रेंच स्कीइंग संघों ने कोच बनने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन मैंने मना कर दिया. मुझे लगता है कि हमारे राज्या में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है और मैं अपने मार्गदर्शन में युवा प्रतिभाओं को तराशना चाहता हूं."
गुल ने चीन में आयोजित 14 वें जूनियर एशियाई खेलों के लिए भारतीय स्कीइंग टीम को भी कोचिंग दी है.
कश्मीर में स्कीइंग के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "युवा पीढ़ी के लिए, स्कीइंग आकर्षक नहीं है. हमारे समय में, कोई लिफ्ट या गोंडोल नहीं थे, हम अपना रास्ता खुद बनाते थे. इसने न केवल हमारे कौशल को बढ़ाया बल्कि हमारे पैरों को भी और मजबूत बनाया."
उन्होंने आगे कहा, "अब ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि एथलीटों को ट्रायल के अलावा एफईएस अंक अर्जित करने होते हैं. इसके लिए कड़ी मेहनत और समर्पण की जरूरत है जो अभी मिलना बहुत मुश्किल है."
कश्मीर में खिलाड़ियों की चुनौतियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "कश्मीर में खेल के बुनियादी ढांचे में बहुत सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. स्कीइंग जैसे शीतकालीन खेलों के लिए, हमारे पास प्रमाणित ढलान नहीं हैं, खिलाड़ियों को अभ्यास के लिए भारत से बाहर जाने की जरूरत है और ये निश्चित रूप से यह हर किसी के लिए सस्ती नहीं है. हमारे युवा खिलाड़ियों ने हर मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, वे केवल ओलंपिक पोडियम को मिस कर जाते हैं सरकार को इस पर सोचना और काम करना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, "किसी खिलाड़ी के लिए मैच के फिट नहीं होने का कोई बहाना नहीं है. कश्मीर में बहुत से लॉकडाउन देखने को मिले हैं, लेकिन एक खिलाड़ी घर पर ही व्यायाम कर सकता है. खुद को फिट रखने के लिए आपको स्टेडियम या मैदान की जरूरत नहीं है. केवल आपका समर्पण और आपका मेहनत मायने रखती है. एक खिलाड़ी को न केवल प्रमाण पत्र के लिए या पेशेवर पाठ्यक्रमों में प्रवेश हासिल करने के लिए खेलना चाहिए बल्कि खुद के लिए खेलना चाहिए."
57 साल की उम्र में, कश्मीर के महान गोलकीपर हबीबुल्लाह देव के बेटे गुल मुस्तफा देव ने ना केवल खुद स्कीइंग ढलानों पर जीत हासिल की, बल्कि 1993 के बाद से 12,000 से अधिक लड़कों और लड़कियों को इस खेल में प्रशिक्षित किया है. उनमें से अधिकांश ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जम्मू और कश्मीर और भारत का नाम रौशन किया है.