नई दिल्ली: भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच वाकयुद्ध जारी रहा, जिसमें अध्यक्ष नरेंद्र ने दावा किया कि संस्था का संविधान उन्हें समिति या आयोग गठित करने का अधिकार देता है, जो कार्यकारी परिषद या आम सभा की मंजूरी के अधीन है.
मंगलवार को आईओए महासचिव राजीव मेहता ने बत्रा के 19 मई के नैतिक आयोग को भंग करने के फैसले को 'अवैध' करार दिया था, जो 2017 में गठित किया गया था.
मेहता ने कहा था कि नैतिकता नियमों के अंतर्गत आयोग का कार्यकाल 2018 में आम सभा की बैठक ने तय किया था, जिस पर बत्रा ने हस्ताक्षर किए थे और यह चार वर्ष का था और अध्यक्ष दो साल पहले ही इसे खत्म नहीं कर सकते, लेकिन बत्रा ने कहा कि आईओए संविधान के अनुसार उनके पास एक आयोग के सदस्यों को नियुक्त करने और हटाने का अधिकार है.
बत्रा ने कहा, "मुझे 18.3 नियम में कोई जिक्र नहीं मिला कि अध्यक्ष को किसी समिति/आयोग को गठित करने में महासचिव से सलाह लेनी ही पड़ेगी या उसका इसमें शामिल होना जरूरी होगा."
उन्होंने कहा, 'आम सालाना बैठक (SGM) या आम सभा को संविधान की सीमाओं के अंदर काम करना होता है और यह संविधान के अंतर्गत बाध्य है और अगर किसी भी समय एजीएम या कार्यकारी समिति संविधान का उल्लंघन करती है तो संविधान निश्चित रूप से प्रभावी होगा.'
बत्रा ने साथ ही कहा कि उन्होंने समितियों ओर आयोंगों को गठित करने का फैसला आईओए संविधान के 18.3 नियम के अनुसार लिया इसलिए ये अध्यक्ष के अधिकार के अंतर्गत आते हैं.
उन्होंने कहा, "यह अच्छी तरह पता है, जिसके पास नियुक्ति का अधिकार है, उसके पास हटाने का भी अधिकार है. इस मौजूदा मामले में आईओए के कार्यकारी बोर्ड ने 27 मार्च 2019 को आईओए अध्यक्ष की सिफारिशों पर नैतिक आयोग के कार्यकाल को मजूंरी दी जो 2019 के अंत तक का था."
बत्रा ने कहा, 'इसलिए एक जनवरी 2020 से सभी आठ सदस्यों और अध्यक्ष ने स्वत: ही आईओए नैतिक आयोग पर अपने पद खाली कर दिए और मई 2020 में आईओए अध्यक्ष द्वारा भेजा गया पत्र महज एक औपचारिकता मात्र है.'