राष्ट्रीय खेल दिवस : इन युवाओं की प्रतिभा के सामने कठिनाइयों ने घुटने टेक दिए - कोमोलिका बारी
दुती चंद, मानसी जोशी, कोमोलिका बारी और दीपक पूनिया ऐसे नाम हैं जिन्होंने चुनौतियों से उभरकर देश का नाम पूरी दुनिया में रौशन किया है.
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हैदराबाद : हमारे देश में धुरंधरों की कमी नहीं है. देश के कोने-कोने में हमें इतने प्रतिभाशाली खिलाड़ी मिलेंगे जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होगी. लेकिन अगर इन प्रतिभाओं को थोड़ा प्रोत्साहन मिल जाए तो ये देश का नाम रौशन करने से पीछे नहीं हटती.
आज खेल दिवस के अवसर पर कुछ ऐसे ही खिलाड़ियों की बात करते हैं जिन्होंने चुनौतियों से उभरकर देश का नाम पूरी दुनिया में रौशन किया है. इन खिलाड़ियों ने आर्थिक, मानसिक और शारीरिक चुनौतियों को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और इसी का नतीजा है कि आज वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही हैं.
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दुती चंद
ये नाम आज हर कोई जानता है. बचपन की गरीबी और संसाधनों का आभाव भी उनका हौसला नहीं तोड़ पाया और आज वे एथलेटिक्स में एक जाना-माना नाम है. जून में इटली में विश्व यूनिवर्सिटी गेम्स में 100 मीटर फर्राटा दौड़ का स्वर्ण जीतने वाली वे देश की पहली महिला बनीं. समलैंगिकता के खुलासे के बाद उनको बहुत आलोचना भी झेलनी पड़ी लेकिन वे कभी नहीं रूकी और देश के लिए पदक जीतती रहीं.
मानसी जोशी
बचपन से ही देश के लिए बैडमिंटन खेलने का सपना था लेकिन 2011 में हुए सड़क हादसे में पैर गंवाने के बाद वे कुछ समय के लिए निराश तो हुईं लेकिन हार नहीं मानी. बीते रविवार को विश्व पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल करके देश के युवाओं के लिए एक मिशाल बनीं.
कोमोलिका बारी
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दीपक पूनिया
गांव के ही अखाड़े से जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. दीपक ने अपने गांव के अखाड़े में पहलवानी के गुर सीखे थे और आज वो देश का मान बढ़ा रहे हैं. इसी महीने उन्होंने एस्तोनिया में रूसी खिलाड़ी को हराकर जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता है.
हैदराबाद : हमारे देश में धुरंधरों की कमी नहीं है. देश के कोने-कोने में हमें इतने प्रतिभाशाली खिलाड़ी मिलेंगे जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होगी. लेकिन अगर इन प्रतिभाओं को थोड़ा प्रोत्साहन मिल जाए तो ये देश का नाम रौशन करने से पीछे नहीं हटती.
आज खेल दिवस के अवसर पर कुछ ऐसे ही खिलाड़ियों की बात करते हैं जिन्होंने चुनौतियों से उभरकर देश का नाम पूरी दुनिया में रौशन किया है. इन खिलाड़ियों ने आर्थिक, मानसिक और शारीरिक चुनौतियों को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और इसी का नतीजा है कि आज वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही हैं.
दुती चंद
ये नाम आज हर कोई जानता है. बचपन की गरीबी और संसाधनों का आभाव भी उनका हौसला नहीं तोड़ पाया और आज वे एथलेटिक्स में एक जाना-माना नाम है. जून में इटली में विश्व यूनिवर्सिटी गेम्स में 100 मीटर फर्राटा दौड़ का स्वर्ण जीतने वाली वे देश की पहली महिला बनीं. समलैंगिकता के खुलासे के बाद उनको बहुत आलोचना भी झेलनी पड़ी लेकिन वे कभी नहीं रूकी और देश के लिए पदक जीतती रहीं.
मानसी जोशी
बचपन से ही देश के लिए बैडमिंटन खेलने का सपना था लेकिन 2011 में हुए सड़क हादसे में पैर गंवाने के बाद वे कुछ समय के लिए निराश तो हुईं लेकिन हार नहीं मानी. बीते रविवार को विश्व पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल करके देश के युवाओं के लिए एक मिशाल बनीं.
कोमोलिका बारी
निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली कोमोलिका बारी पिछले हफ्ते अंडर-18 वर्ग में विश्व तीरंदाजी चैंपियन बनीं. उनके घर भी संसाधानों का आभाव था. एक वक्त तो ऐसा आया जब उनके पिता को धनुष खरीदने के लिए 2016 में पुश्तैनी मकान तक बेचना पड़ा था.
दीपक पूनिया
गांव के ही अखाड़े से जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. दीपक ने अपने गांव के अखाड़े में पहलवानी के गुर सीखे थे और आज वो देश का मान बढ़ा रहे हैं. इसी महीने उन्होंने एस्तोनिया में रूसी खिलाड़ी को हराकर जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता है.
Conclusion: