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Asian Games 2023: उत्तराखंड के 'द्रोण' के धावकों ने एशियन गेम्स में किया कमाल, झटके मेडल, कोच को दिया बर्थडे गिफ्ट - Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari चाइना में इन दिनों एशियन गेम्स 2023 चल रहे हैं. एशियन गेम्स 2023 में उत्तराखंड के 'द्रोण' के धावक कमाल कर रहे हैं. उत्तराखंड के इस 'द्रोण' का नाम सुरेंद्र सिंह भंडारी है. सुरेंद्र सिंह भंडारी भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच हैं. उनके मार्गदर्शन, मोटिवेशन से उनके सिखाये एथलीट ने एशियन गेम्स में मेडल झटके हैं. कौन हैं सुरेंद्र सिंह भंडारी? कैसा रहा उनका सफर? आइये आपको बताते हैं... Asian Games 2023

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
रील नहीं रियल हीरो है उत्तराखंड का 'द्रोण'
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 1, 2023, 3:52 PM IST

Updated : Oct 2, 2023, 12:05 PM IST

रील नहीं रियल हीरो है उत्तराखंड का 'द्रोण'

देहरादून(उत्तराखंड): 'चक दे इंडिया', ऐसा शायद ही कोई होगा जिसने शाहरुख खान स्टारर ये फिल्म नहीं देखी होगी. 'चक दे इंडिया' भारतीय महिला हॉकी पर आधारित फिल्म थी. इस फिल्म के जरिये एक कोच की कहानी को दिखाया गया है. इसमें शाहरुख खान ने कोच कबीर खान का किरदार निभाया है. इस फिल्म में टीम के जज्बे, कोच के कमिटमेंट और मोटिवेशन के जरिये भारतीय महिला हॉकी टीम विश्वकप विजेता बनती है. हालांकि ये एक फिक्सन फिल्म थी, मगर आज हम आपको रील नहीं रियल लाइफ के कबीर खान के बारे में बताये जा रहे हैं, जिनके गुरुमंत्र से चाइना में चल रहे एशियन गेम्स में भारत की झोली में कई मेडल आये हैं. इनका नाम सुरेंद्र सिंह भंडारी हैं. सुरेंद्र सिंह भंडारी भारतीय एथलेटिक्स टीम की लंबी दूरी के धावकों के कोच हैं. कोच सुरेंद्र सिंह भंडारी के दो शिष्यों कार्तिक कुमार और गुलवीर सिंह ने एशियन गेम्स में 10 हजार मीटर की दौड़ में क्रमशः रजत और कांस्य पदक जीतकर गुरु का मान बढ़ाया है.

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    In Men's 10000m Finals, #KheloIndia Athlete Kartik Kumar & Gulveer Singh win a 🥈& 🥉respectively!!

    Both Kartik & Gulveer bettered their personal bests and clocked 28.15.38 28.17.21 respectively to win a silver and bronze.… pic.twitter.com/pcxDOqI7xn

    — SAI Media (@Media_SAI) September 30, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

बर्थ डे पर मिला मेडल का गिफ्ट: आज सुरेंद्र सिंह भंडारी का जन्मदिन भी है. जन्मदिन पर उनके शिष्यों ने गुरु को मेडल का गिफ्ट दिया है. ये सुरेंद्र भंडारी के लिए ऐसा गिफ्ट है जिसकी चाहत उन्हें हमेशा ही अपने ट्रेनीज से होती है. इसके लिए ही वे दिन रात पसीना बहाते हैं. ट्रेनीज को मैदान में दौड़ाते हैं. कभी उन्हें डांटते हैं. कभी उन्हें समझाते हैं. जिसका हासिल एशियन गेम्स में मेडल्स की सफलता है, जिसे उनके ट्रेनीज ने सुरेंद्र भंडारी को बर्थडे गिफ्ट के तौर दिया है.

  • Compliments to our exceptional athlete Gulveer Singh who has won the Bronze Medal in 10,000m at the Asian Games. Wishing him the very best for his future endeavours. His determination will surely inspire other athletes. pic.twitter.com/wUmeWNxhFi

    — Narendra Modi (@narendramodi) September 30, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

नेशनल एथलेटिक्स टीम के कोच हैं सुरेंद्र भंडारी: इतना ही नहीं नेशनल में सुरेंद्र भंडारी के ट्रेनी 50 से ज्यादा मेडल जीत चुके हैं. वहीं, बात अगर इंटरनेशनल गेम्स की करें तो उसमें भी सुरेंद्र भंडारी के ट्रेनी 12 से ज्यादा मेडल जीत चुके हैं. सुरेंद्र भंडारी वर्तमान में बेंगलुरु में राष्ट्रीय एथलेटिक्स टीम के कोच हैं. इन दिनों वे एशियन गेम्स के लिए चाइना में हैं.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच सुरेंद्र भंडारी

पढ़ें- Bronze medalist Anish Yadav: एशियन गेम्स में कांस्य पदक विजेता अनीश बनवाला का करनाल पहुंचने पर हुआ भव्य स्वागत

उत्तराखंड के गैरसैंण में हुआ सुरेंद्र भंडारी का जन्म: सुरेंद्र सिंह भंडारी का जन्म 1 अक्टूबर 1978 को चमोली जिले की गैरसैंण तहसील से 10 किलोमीटर दूर घंडियाल गांव में हुआ. सुरेंद्र के पिता गरीब किसान थे. सात भाई-बहनों में सुरेंद्र दूसरे नंबर के थे. उन्होंने 8वीं तक की शिक्षा अपने गांव के पास स्थित विद्यालय से प्राप्त की. 8वीं से आगे नजदीक में कोई विद्यालय नहीं था. एकमात्र नजदीकी विद्यालय 10 किलोमीटर दूर गैरसैंण में था. सुरेंद्र आगे की पढ़ाई के लिए रोजाना गैरसैंण जाते थे. इस दौरान वे रोजाना 20 किमी का सफर तय करते थे.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
लंबी दूरी दौड़ के चैंपियन रहे हैं सुरेंद्र सिंह भंडारी

सेना में शामिल होने के बाद दौड़ने का शुरू हुआ सफर: सुरेंद्र भंडारी ने पढ़ाई के दौरान कभी भी खेलकूद प्रतियोगिताओं में भाग नहीं लिया. पढ़ाई के बाद उन्होंने सेना भर्ती की तैयारी शुरू की. एक, दो, तीन, चार और पांच बार सेना की भर्ती में शामिल हुये, लेकिन सफलता नहीं मिली. सफलता भले ही नहीं मिली हो, लेकिन हौसला नहीं टूटा था. छठवीं बार फिर कोशिश की. इस बार किस्मत साथ दे गयी. सुरेंद्र भंडारी सेना में भर्ती हो गये. सैनिक बनने के बाद सुरेंद्र का नया जीवन शुरू हुआ.

पढ़ें- Manu Bhaker Mother Exclusive: एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली मनु भाकर की मां का संघर्ष, बेटी के लिए ठुकराई सरकारी नौकरी, रोचक है गोल्ड मेडलिस्ट के नामकरण की कहानी

कोच अवतार सिंह ने सुरेंद्र को निखारा: सेना में भर्ती होने के बाद सुरेंद्र भंडारी पहली बार क्रास कंट्री दौड़े. तब उन्होंने पहला नंबर हासिल किया. इसके बाद उनके कोच अवतार सिंह ने उनकी ट्रेनिंग शुरू की. यहीं से सुरेंद्र भंडारी के कैरियर को पंख लग गये. 1999 में लैंसडाउन में गढ़वाल रायफल रेजीमेंट सेंटर की इंटर कंपनी प्रतियोगिता में पहली बार दौड़ते हुये सुरेंद्र ने पहला स्थान प्राप्त किया. इसके बाद वे गढ़वाल रेजीमेंट की टीम में शामिल हुये. 2000 में हैदराबाद में 12 किलोमीटर ऑल इंडिया आर्मी प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद उन्हें लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भी वो अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. इसी साल जम्मू में आयोजित यूनिट 15 गढ़वाल रायफल 12 किलोमीटर क्रास कंट्री में उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया.

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चीन में मेडल जीतने वाले अपने दो शिष्यों के साथ कोच सुरेंद्र सिंह भंडारी

पढ़ें- Asian Games 2023: गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा एशियन गेम्स में फिर दिखाएंगे जलवा, चाचा बोले- फिर से मेडल श्रृंखला दोहराने की पूरी तैयारी

2004 में सुरेंद्र भंडारी का भारतीय टीम में हुआ चयन: सुरेंद्र राष्ट्रीय फलक पर चमकने जा ही रहे थे कि सन् 2000 में आतंकवाद से त्रस्त जम्मू-कश्मीर के राजौरी-पुंछ में उनकी तैनाती हो गयी. पूरे तीन साल वो यहां तैनात रहे. इस दौरान प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका नहीं मिला. 2004 में सुरेंद्र की ट्रैक पर वापसी हुई. उन्होंने पहली बार शिमला में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 12 किलोमीटर क्रास कंट्री दौड़ में चौथा स्थान पाया. उनकी सफलताओं का सिलसिला शुरू हो चुका था. 2004 में भारतीय टीम में चयन हुआ और पुणे में आयोजित एशियन क्रास कंट्री में चौथा स्थान हासिल कर राष्ट्रीय क्षितिज पर चमक बिखेरी.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
एशियन गेम्स में सुरेंद्र भंडारी के शिष्य कार्तिक कुमार ने मेडल जीता

लंबी दूरी के चैंपियन बने सुरेंद्र सिंह भंडारी: उसके बाद देश में कहीं भी तीन हजार, पांच हजार और दस हजार मीटर की दौड़ होती, स्वर्ण पदक वाले बीच के पोडियम पर सुरेंद्र ही खड़े नजर आते. 2006 से 2009 तक इन तीनों लंबी दूरी की एथलेटिक स्पर्धाओं में सुरेंद्र लगातार चैंपियन बनते रहे. तीन हजार और दस हजार मीटर की दौड़ में उन्होंने राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़े. इन दोनों रेसों के राष्ट्रीय रिकॉर्ड अभी भी सुरेंद्र सिंह भंडारी के नाम ही हैं.

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एशियन गेम्स में सुरेंद्र भंडारी के शिष्य गुलवीर ने भी पदक जीता

पढ़ें- Asian Games 2023: बचपन से शरारती आदर्श सिंह ने बहन के साथ शुरू की थी ट्रेनिंग, बेटे की उलब्धि पर माता-पिता में जताई खुशी, सरकार से लगाई ये गुहार

2008 में बीजिंग ओलंपिक के लिए किया क्वालीफाई: 2008 में उनके कैरियर में उस समय एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ी. 10 हजार मीटर की दौड़ में उन्होंने बीजिंग ओलंपिक के लिये क्वालीफाई किया. सुरेंद्र भंडारी ने राष्ट्रीय स्पर्धाओं में 20 स्वर्ण पदक, दो रजत पदक और दो कांस्य पदक जीते. अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 11 स्वर्ण पदक और 6रजत पदक भी जीते. 2009में उन्हें इंजरी हो गई. इसका उन्हें सही इलाज नहीं मिला. जिसके कारण वे ट्रैक पर वापसी नहीं कर पाये. इसके बाद उन्होंने एनआईएस पटियाला में कोचिंग कोर्स किया.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
एशियन गेम्स में भारतीय एथलीट का जलवा

पढ़ें- Asian Games 2023: हरियाणा के अनीश ने 25 मीटर की शूटिंग में जीता ब्रॉन्ज मेडल, पिता के त्याग ने बढ़ाया बेटे को आगे, जानें सफलता की कहानी

2012 में भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच बने: एनआईएस पूरा करने के बाद 2012 में सुरेंद्र भंडारी भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच नियुक्त हुये. यहां भी उनकी सफलताओं का सिलसिला जारी है. अब तक उनके ट्रेनी राष्ट्रीय स्तर पर 50 से ज्यादा मेडल जीत चुके हैं. उनकी कोचिंग में सबसे बड़ी उपलब्धि पिछले साल इंचियोन एशियाड में आयी. उनके शिष्य नवीन कुमार ने 3000 मीटर की स्टीपल चेज में कांस्य पदक जीता. अब चाइना में चल रहे एशियन गेम्स में भी सुरेंद्र सिंह भंडारी के दो शिष्यों कार्तिक कुमार और गुलवीर सिंह ने कमाल किया है. इन दोनों ने ही एशियन गेम्स में 10 हजार मीटर की दौड़ में रजत और कांस्य पदक जीते हैं.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
नीरज चोपड़ा के साथ सुरेंद्र भंडारी

देवभूमि के लिए धड़कता है सुरेंद्र भंडारी का दिल: सुरेंद्र भंडारी की कर्मभूमि भले ही आज उत्तराखंड से दूर बेंगलुरु में हो, मगर उनका दिल हमेशा ही देवभूमि के लिए धड़कता है. सुरेंद्र भंडारी आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं. वे हमेशा ही पहाड़ के युवाओं को आगे बढ़ाने की बात करते हैं. इसके लिए सुरेंद्र भंडारी हमेशा ही तैयार खड़े दिखाई देते हैं.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
कोच सुरेंद्र सिंह भंडारी अपने मेडलिस्ट शिष्यों के साथ

पहाड़ के खिलाड़ियों को करते हैं मोटिवेट: सुरेंद्र भंडारी पहाड़ के हालातों को अच्छे से समझते हैं. वे यहां के युवाओं के स्टेमिना को जानते समझते हैं. यही कारण है कि वे हमेशा ही उन्हें मोटिवेट करते रहते हैं. सुरेंद्र भंडारी का बचपन गरीबी में बीता. स्कूली जीवन में उनका कोई मेंटोर नहीं था. उन्होंने आज जो भी हासिल किया है वो सब अपने दम पर किया है. अब वे अपने जीत के मंत्र अपने स्टूडेंट्स के साथ शेयर करते हैं. उन्हें मेटिवेट करते हैं. उनका मार्गदर्शन करते हैं. जिसका नतीजा है कि आज उनके स्टूडेंट्स खेलों में कमाल कर रहे हैं.

रील नहीं रियल हीरो है उत्तराखंड का 'द्रोण'

देहरादून(उत्तराखंड): 'चक दे इंडिया', ऐसा शायद ही कोई होगा जिसने शाहरुख खान स्टारर ये फिल्म नहीं देखी होगी. 'चक दे इंडिया' भारतीय महिला हॉकी पर आधारित फिल्म थी. इस फिल्म के जरिये एक कोच की कहानी को दिखाया गया है. इसमें शाहरुख खान ने कोच कबीर खान का किरदार निभाया है. इस फिल्म में टीम के जज्बे, कोच के कमिटमेंट और मोटिवेशन के जरिये भारतीय महिला हॉकी टीम विश्वकप विजेता बनती है. हालांकि ये एक फिक्सन फिल्म थी, मगर आज हम आपको रील नहीं रियल लाइफ के कबीर खान के बारे में बताये जा रहे हैं, जिनके गुरुमंत्र से चाइना में चल रहे एशियन गेम्स में भारत की झोली में कई मेडल आये हैं. इनका नाम सुरेंद्र सिंह भंडारी हैं. सुरेंद्र सिंह भंडारी भारतीय एथलेटिक्स टीम की लंबी दूरी के धावकों के कोच हैं. कोच सुरेंद्र सिंह भंडारी के दो शिष्यों कार्तिक कुमार और गुलवीर सिंह ने एशियन गेम्स में 10 हजार मीटर की दौड़ में क्रमशः रजत और कांस्य पदक जीतकर गुरु का मान बढ़ाया है.

  • NEW MEDAL🏅 ALERT IN ATHLETICS 🥳 at #AsianGames2022

    In Men's 10000m Finals, #KheloIndia Athlete Kartik Kumar & Gulveer Singh win a 🥈& 🥉respectively!!

    Both Kartik & Gulveer bettered their personal bests and clocked 28.15.38 28.17.21 respectively to win a silver and bronze.… pic.twitter.com/pcxDOqI7xn

    — SAI Media (@Media_SAI) September 30, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

बर्थ डे पर मिला मेडल का गिफ्ट: आज सुरेंद्र सिंह भंडारी का जन्मदिन भी है. जन्मदिन पर उनके शिष्यों ने गुरु को मेडल का गिफ्ट दिया है. ये सुरेंद्र भंडारी के लिए ऐसा गिफ्ट है जिसकी चाहत उन्हें हमेशा ही अपने ट्रेनीज से होती है. इसके लिए ही वे दिन रात पसीना बहाते हैं. ट्रेनीज को मैदान में दौड़ाते हैं. कभी उन्हें डांटते हैं. कभी उन्हें समझाते हैं. जिसका हासिल एशियन गेम्स में मेडल्स की सफलता है, जिसे उनके ट्रेनीज ने सुरेंद्र भंडारी को बर्थडे गिफ्ट के तौर दिया है.

  • Compliments to our exceptional athlete Gulveer Singh who has won the Bronze Medal in 10,000m at the Asian Games. Wishing him the very best for his future endeavours. His determination will surely inspire other athletes. pic.twitter.com/wUmeWNxhFi

    — Narendra Modi (@narendramodi) September 30, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

नेशनल एथलेटिक्स टीम के कोच हैं सुरेंद्र भंडारी: इतना ही नहीं नेशनल में सुरेंद्र भंडारी के ट्रेनी 50 से ज्यादा मेडल जीत चुके हैं. वहीं, बात अगर इंटरनेशनल गेम्स की करें तो उसमें भी सुरेंद्र भंडारी के ट्रेनी 12 से ज्यादा मेडल जीत चुके हैं. सुरेंद्र भंडारी वर्तमान में बेंगलुरु में राष्ट्रीय एथलेटिक्स टीम के कोच हैं. इन दिनों वे एशियन गेम्स के लिए चाइना में हैं.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच सुरेंद्र भंडारी

पढ़ें- Bronze medalist Anish Yadav: एशियन गेम्स में कांस्य पदक विजेता अनीश बनवाला का करनाल पहुंचने पर हुआ भव्य स्वागत

उत्तराखंड के गैरसैंण में हुआ सुरेंद्र भंडारी का जन्म: सुरेंद्र सिंह भंडारी का जन्म 1 अक्टूबर 1978 को चमोली जिले की गैरसैंण तहसील से 10 किलोमीटर दूर घंडियाल गांव में हुआ. सुरेंद्र के पिता गरीब किसान थे. सात भाई-बहनों में सुरेंद्र दूसरे नंबर के थे. उन्होंने 8वीं तक की शिक्षा अपने गांव के पास स्थित विद्यालय से प्राप्त की. 8वीं से आगे नजदीक में कोई विद्यालय नहीं था. एकमात्र नजदीकी विद्यालय 10 किलोमीटर दूर गैरसैंण में था. सुरेंद्र आगे की पढ़ाई के लिए रोजाना गैरसैंण जाते थे. इस दौरान वे रोजाना 20 किमी का सफर तय करते थे.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
लंबी दूरी दौड़ के चैंपियन रहे हैं सुरेंद्र सिंह भंडारी

सेना में शामिल होने के बाद दौड़ने का शुरू हुआ सफर: सुरेंद्र भंडारी ने पढ़ाई के दौरान कभी भी खेलकूद प्रतियोगिताओं में भाग नहीं लिया. पढ़ाई के बाद उन्होंने सेना भर्ती की तैयारी शुरू की. एक, दो, तीन, चार और पांच बार सेना की भर्ती में शामिल हुये, लेकिन सफलता नहीं मिली. सफलता भले ही नहीं मिली हो, लेकिन हौसला नहीं टूटा था. छठवीं बार फिर कोशिश की. इस बार किस्मत साथ दे गयी. सुरेंद्र भंडारी सेना में भर्ती हो गये. सैनिक बनने के बाद सुरेंद्र का नया जीवन शुरू हुआ.

पढ़ें- Manu Bhaker Mother Exclusive: एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली मनु भाकर की मां का संघर्ष, बेटी के लिए ठुकराई सरकारी नौकरी, रोचक है गोल्ड मेडलिस्ट के नामकरण की कहानी

कोच अवतार सिंह ने सुरेंद्र को निखारा: सेना में भर्ती होने के बाद सुरेंद्र भंडारी पहली बार क्रास कंट्री दौड़े. तब उन्होंने पहला नंबर हासिल किया. इसके बाद उनके कोच अवतार सिंह ने उनकी ट्रेनिंग शुरू की. यहीं से सुरेंद्र भंडारी के कैरियर को पंख लग गये. 1999 में लैंसडाउन में गढ़वाल रायफल रेजीमेंट सेंटर की इंटर कंपनी प्रतियोगिता में पहली बार दौड़ते हुये सुरेंद्र ने पहला स्थान प्राप्त किया. इसके बाद वे गढ़वाल रेजीमेंट की टीम में शामिल हुये. 2000 में हैदराबाद में 12 किलोमीटर ऑल इंडिया आर्मी प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद उन्हें लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भी वो अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. इसी साल जम्मू में आयोजित यूनिट 15 गढ़वाल रायफल 12 किलोमीटर क्रास कंट्री में उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
चीन में मेडल जीतने वाले अपने दो शिष्यों के साथ कोच सुरेंद्र सिंह भंडारी

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2004 में सुरेंद्र भंडारी का भारतीय टीम में हुआ चयन: सुरेंद्र राष्ट्रीय फलक पर चमकने जा ही रहे थे कि सन् 2000 में आतंकवाद से त्रस्त जम्मू-कश्मीर के राजौरी-पुंछ में उनकी तैनाती हो गयी. पूरे तीन साल वो यहां तैनात रहे. इस दौरान प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका नहीं मिला. 2004 में सुरेंद्र की ट्रैक पर वापसी हुई. उन्होंने पहली बार शिमला में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 12 किलोमीटर क्रास कंट्री दौड़ में चौथा स्थान पाया. उनकी सफलताओं का सिलसिला शुरू हो चुका था. 2004 में भारतीय टीम में चयन हुआ और पुणे में आयोजित एशियन क्रास कंट्री में चौथा स्थान हासिल कर राष्ट्रीय क्षितिज पर चमक बिखेरी.

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एशियन गेम्स में सुरेंद्र भंडारी के शिष्य कार्तिक कुमार ने मेडल जीता

लंबी दूरी के चैंपियन बने सुरेंद्र सिंह भंडारी: उसके बाद देश में कहीं भी तीन हजार, पांच हजार और दस हजार मीटर की दौड़ होती, स्वर्ण पदक वाले बीच के पोडियम पर सुरेंद्र ही खड़े नजर आते. 2006 से 2009 तक इन तीनों लंबी दूरी की एथलेटिक स्पर्धाओं में सुरेंद्र लगातार चैंपियन बनते रहे. तीन हजार और दस हजार मीटर की दौड़ में उन्होंने राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़े. इन दोनों रेसों के राष्ट्रीय रिकॉर्ड अभी भी सुरेंद्र सिंह भंडारी के नाम ही हैं.

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एशियन गेम्स में सुरेंद्र भंडारी के शिष्य गुलवीर ने भी पदक जीता

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2008 में बीजिंग ओलंपिक के लिए किया क्वालीफाई: 2008 में उनके कैरियर में उस समय एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ी. 10 हजार मीटर की दौड़ में उन्होंने बीजिंग ओलंपिक के लिये क्वालीफाई किया. सुरेंद्र भंडारी ने राष्ट्रीय स्पर्धाओं में 20 स्वर्ण पदक, दो रजत पदक और दो कांस्य पदक जीते. अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 11 स्वर्ण पदक और 6रजत पदक भी जीते. 2009में उन्हें इंजरी हो गई. इसका उन्हें सही इलाज नहीं मिला. जिसके कारण वे ट्रैक पर वापसी नहीं कर पाये. इसके बाद उन्होंने एनआईएस पटियाला में कोचिंग कोर्स किया.

Indian athletics coach Surendra Singh Bhandari
एशियन गेम्स में भारतीय एथलीट का जलवा

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2012 में भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच बने: एनआईएस पूरा करने के बाद 2012 में सुरेंद्र भंडारी भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच नियुक्त हुये. यहां भी उनकी सफलताओं का सिलसिला जारी है. अब तक उनके ट्रेनी राष्ट्रीय स्तर पर 50 से ज्यादा मेडल जीत चुके हैं. उनकी कोचिंग में सबसे बड़ी उपलब्धि पिछले साल इंचियोन एशियाड में आयी. उनके शिष्य नवीन कुमार ने 3000 मीटर की स्टीपल चेज में कांस्य पदक जीता. अब चाइना में चल रहे एशियन गेम्स में भी सुरेंद्र सिंह भंडारी के दो शिष्यों कार्तिक कुमार और गुलवीर सिंह ने कमाल किया है. इन दोनों ने ही एशियन गेम्स में 10 हजार मीटर की दौड़ में रजत और कांस्य पदक जीते हैं.

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नीरज चोपड़ा के साथ सुरेंद्र भंडारी

देवभूमि के लिए धड़कता है सुरेंद्र भंडारी का दिल: सुरेंद्र भंडारी की कर्मभूमि भले ही आज उत्तराखंड से दूर बेंगलुरु में हो, मगर उनका दिल हमेशा ही देवभूमि के लिए धड़कता है. सुरेंद्र भंडारी आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं. वे हमेशा ही पहाड़ के युवाओं को आगे बढ़ाने की बात करते हैं. इसके लिए सुरेंद्र भंडारी हमेशा ही तैयार खड़े दिखाई देते हैं.

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कोच सुरेंद्र सिंह भंडारी अपने मेडलिस्ट शिष्यों के साथ

पहाड़ के खिलाड़ियों को करते हैं मोटिवेट: सुरेंद्र भंडारी पहाड़ के हालातों को अच्छे से समझते हैं. वे यहां के युवाओं के स्टेमिना को जानते समझते हैं. यही कारण है कि वे हमेशा ही उन्हें मोटिवेट करते रहते हैं. सुरेंद्र भंडारी का बचपन गरीबी में बीता. स्कूली जीवन में उनका कोई मेंटोर नहीं था. उन्होंने आज जो भी हासिल किया है वो सब अपने दम पर किया है. अब वे अपने जीत के मंत्र अपने स्टूडेंट्स के साथ शेयर करते हैं. उन्हें मेटिवेट करते हैं. उनका मार्गदर्शन करते हैं. जिसका नतीजा है कि आज उनके स्टूडेंट्स खेलों में कमाल कर रहे हैं.

Last Updated : Oct 2, 2023, 12:05 PM IST
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