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गांव से Tokyo Olympics तक पहुंचने वाली एथलीट वी रेवती के मुरीद हुए केंद्रीय मंत्री, जानें क्या कहा ?

एथलीट वी रेवती तमिलनाडु के जिले मदुरै के एक छोटे से गांव से टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic 2020) तक पहुंचने की उनकी कहानी काफी संघर्षों से भरी हुई है. जब वह आठ साल की थीं तो उनके पिता का निधन हो गया था. इसके एक साल बाद उनकी मां का भी निधन हो गया.

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Published : Jul 11, 2021, 10:17 PM IST

Mixed Relay Event, Tokyo Olympic 2020
केंद्रीय मंत्री का ट्वीट

नई दिल्ली: तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic 2020) तक पहुंचने वाली एथलीट वी रेवती की सफलता की जब हर ओर चर्चा हो रही है और लोग तारीफ भी कर रहे हैं. ऐसे में वी रेवती के संघर्षों भरी दास्तां (Struggle Story Of V Revathi) के मुरीद अब केंद्रीय खेल और सूचना प्रसारण मंत्रालय मंत्री अनुराग ठाकुर भी हो गए हैं. केंद्रीय मंत्री ने रविवार को Tweet करके एथलीट वी रेवती की तारीफ करते हुए कहा कि हमारे एथलीटों का अब तक का सफर बाधाओं के खिलाफ जीत की कहानी है, हमें इन पर गर्व है.

केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट किया, 'मिलिए! मदुरै की वी रेवती से जो 23 साल की उम्र में टोक्यो ओलंपिक के मिक्स्ड रिले इवेंट (Mixed Relay Event) में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया, जब वह चौथी कक्षा में थी. ऐसे में उनकी दादी ने परवरिश की, जो इस तस्वीर में भी रेवती के साथ हैं. रेवती जैसे हमारे अन्य एथलीटों की संघर्ष यात्रा बाधाओं के खिलाफ जीत के उनके बुलंद हौसलों को बयां करती है.'

रेलवे में टिकट कलेक्टर हैं रेवती

बताते चलें कि खेलों के महाकुंभ टोक्यो ओलंपिक में भाग ले रही तमिलनाडु के मदुरै जिले की रेलवे टिकट कलेक्टर 23 वर्षीय वी रेवती 4×400 मिश्रित रिले स्पर्धा में भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक पदक की उम्मीदों में से एक हैं. उन्होंने बीते दिनों पटियाला कैंप में 53:55 सेकेंड का समय निकाला. रेवती का जीवन संघर्षों की प्रेरणादायक दास्ता हैं. रेवती ने 8 साल की उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया, तो उनकी दादी ने पाला.

पढ़ें: Tokyo Olympics के लिए भारत का थीम सॉन्ग लॉन्च, देखिए पहली झलक

गरीबी का हाल यूं था कि रेवती नंगे पैर दौड़ती थीं, क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. तभी कोच कन्नन ने उनकी प्रतिभा को देखा और रेवती की हर संभव मदद की. जब साधन और सुविधा मिली तो रेवती ने विश्वविद्यालयीन प्रतियोगिताओं में कई रिकॉर्ड बनाए और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय स्पर्धाओं में तीन पदक जीत चुकी हैं. 2019 में दोहा एशियाई खेलों में वह चौथे स्थान पर आईं, एक अंक से पदक से चूक गईं.

नई दिल्ली: तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic 2020) तक पहुंचने वाली एथलीट वी रेवती की सफलता की जब हर ओर चर्चा हो रही है और लोग तारीफ भी कर रहे हैं. ऐसे में वी रेवती के संघर्षों भरी दास्तां (Struggle Story Of V Revathi) के मुरीद अब केंद्रीय खेल और सूचना प्रसारण मंत्रालय मंत्री अनुराग ठाकुर भी हो गए हैं. केंद्रीय मंत्री ने रविवार को Tweet करके एथलीट वी रेवती की तारीफ करते हुए कहा कि हमारे एथलीटों का अब तक का सफर बाधाओं के खिलाफ जीत की कहानी है, हमें इन पर गर्व है.

केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट किया, 'मिलिए! मदुरै की वी रेवती से जो 23 साल की उम्र में टोक्यो ओलंपिक के मिक्स्ड रिले इवेंट (Mixed Relay Event) में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया, जब वह चौथी कक्षा में थी. ऐसे में उनकी दादी ने परवरिश की, जो इस तस्वीर में भी रेवती के साथ हैं. रेवती जैसे हमारे अन्य एथलीटों की संघर्ष यात्रा बाधाओं के खिलाफ जीत के उनके बुलंद हौसलों को बयां करती है.'

रेलवे में टिकट कलेक्टर हैं रेवती

बताते चलें कि खेलों के महाकुंभ टोक्यो ओलंपिक में भाग ले रही तमिलनाडु के मदुरै जिले की रेलवे टिकट कलेक्टर 23 वर्षीय वी रेवती 4×400 मिश्रित रिले स्पर्धा में भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक पदक की उम्मीदों में से एक हैं. उन्होंने बीते दिनों पटियाला कैंप में 53:55 सेकेंड का समय निकाला. रेवती का जीवन संघर्षों की प्रेरणादायक दास्ता हैं. रेवती ने 8 साल की उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया, तो उनकी दादी ने पाला.

पढ़ें: Tokyo Olympics के लिए भारत का थीम सॉन्ग लॉन्च, देखिए पहली झलक

गरीबी का हाल यूं था कि रेवती नंगे पैर दौड़ती थीं, क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. तभी कोच कन्नन ने उनकी प्रतिभा को देखा और रेवती की हर संभव मदद की. जब साधन और सुविधा मिली तो रेवती ने विश्वविद्यालयीन प्रतियोगिताओं में कई रिकॉर्ड बनाए और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय स्पर्धाओं में तीन पदक जीत चुकी हैं. 2019 में दोहा एशियाई खेलों में वह चौथे स्थान पर आईं, एक अंक से पदक से चूक गईं.

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