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आखिर कौन सुने इनकी मजबूरी, ये एथलीट पेट भरने और किट के लिए गेहूं काट रहे - खेल समाचार

देश के लिए मेडल जीतने का ख्वाब संजोने वाले एथलीट आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. डाइट और किट के लिए पैसा नहीं होने के कारण ये खिलाड़ी खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हैं. इन दिनों खिलाड़ी समूह बनाकर ठेके पर गेहूं कटाई का काम कर रहे हैं.

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गेहूं काट रहे एथलीट
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Published : Apr 28, 2022, 9:13 PM IST

Updated : Apr 28, 2022, 9:26 PM IST

बरेली: प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिताओं में कई मेडल जीत चुके एथलीट्स आर्थिक तंगी की ऐसी मार झेल रहे हैं कि उन्हें अपनी डाइट और किट खरीदने के लिए खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ रही है. घर की स्थिति खराब होने से पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए खेतों में मजदूरी पर गेहूं तक काटने को मजबूर हैं. अधिकतर खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से मां-बाप इनको सही डाइट और महंगे किट खरीद कर देने में असमर्थ हैं.

बरेली शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर रिठौरा कस्बा है. यहां लगभग 24 एथलीट आम के बगीचे में प्रैक्टिस कर पसीना बहाते हैं. इनमें से अधिकतर खिलाड़ियों के पिता मजदूरी करते हैं. इसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति खराब है. इन एथलीट्स के समूह में लड़के और लड़कियां दोनों हैं. खेतों में मजदूरी करने वाली एथलीट काजल चक्रवर्ती ने अभी कुछ दिन पहले ही एथलेटिक प्रतियोगिता लखनऊ में 5,000 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता था. वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय की क्रॉस एंटी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था.

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गेहूं काटते हुए एथलीट

काजल चक्रवर्ती बरेली जिले से लेकर उत्तर प्रदेश लेवल तक की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर दर्जनों मेडल जीत चुकीं हैं. उनके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून है. काजल के पिता मजदूर हैं. मजदूरी से इतना पैसा नहीं पैदा कर पाते कि बेटी और परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतों को पूरा कर सकें. इसलिए काजल ने अपने समूह के साथियों के साथ खेतों में मजदूरी करने का मन बनाया. पिछले दिनों गन्ने की बुवाई का काम किया और अभी हाल में मजदूरी पर गेहूं की कटाई की. इसके पैसों से अपने खाने का सामान खरीदा.

डाइट और किट खरीदने के लिए मजदूर बने एथलीट्स

एथलेटिक समूह के कोच साहिबे आलम ने बताया, उनके पास प्रैक्टिस करने वाले अधिकतर खिलाड़ी गरीब परिवार से आते हैं. खिलाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के लिए सही डाइट और किट का होना जरूरी है. इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए खिलाड़ियों के समूह ने ठेके पर गेहूं काटकर मजदूरी की. साहिबे ने बताया, खेल एसोसिएशन खिलाड़ियों की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं करती है.

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मेडल लिए हुए एथलीट

उन्होंने कहा, जब कोई खिलाड़ी ऊंचे स्तर की प्रतियोगिता में मेडल जीतकर आता है, तब उसको बस सम्मानित किया जाता है. उससे पहले सब कुछ खिलाड़ी को ही अपनी जेब से करना होता है. इन खिलाड़ियों के पास हौसला है, जज्बा है लेकिन आर्थिक स्थिति खराब है. इसके चलते इनको मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ा है. अगर इनका सहयोग किया जाए तो यह अच्छे एथलीट्स बनकर देश का नाम रोशन कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें: KIUG 2021: UP की बॉक्सर आस्था पाहवा ने जीता गोल्ड मेडल, खेल मंत्री ने दी बधाई

वहीं, जितेंद्र यादव क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी बरेली ने बताया कि विभाग की तरफ से ऐसा कोई नियम नहीं है, जिससे इनकी कोई मदद की जा सके. यह जनपद के होनहार खिलाड़ी हैं. स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आकर इनकी मदद कर सकती हैं. जो लोग इनकी मदद कर सकें, उनको आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि जो मेडलिस्ट आते हैं, उनको विभाग के नियमों के अनुसार सुविधाएं दी जाती हैं.

यह भी पढ़ें: Badminton Asia: सिंधू, सात्विक और चिराग क्वॉर्टर फाइनल में, साइना और श्रीकांत बाहर

बरेली: प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिताओं में कई मेडल जीत चुके एथलीट्स आर्थिक तंगी की ऐसी मार झेल रहे हैं कि उन्हें अपनी डाइट और किट खरीदने के लिए खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ रही है. घर की स्थिति खराब होने से पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए खेतों में मजदूरी पर गेहूं तक काटने को मजबूर हैं. अधिकतर खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से मां-बाप इनको सही डाइट और महंगे किट खरीद कर देने में असमर्थ हैं.

बरेली शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर रिठौरा कस्बा है. यहां लगभग 24 एथलीट आम के बगीचे में प्रैक्टिस कर पसीना बहाते हैं. इनमें से अधिकतर खिलाड़ियों के पिता मजदूरी करते हैं. इसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति खराब है. इन एथलीट्स के समूह में लड़के और लड़कियां दोनों हैं. खेतों में मजदूरी करने वाली एथलीट काजल चक्रवर्ती ने अभी कुछ दिन पहले ही एथलेटिक प्रतियोगिता लखनऊ में 5,000 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता था. वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय की क्रॉस एंटी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था.

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गेहूं काटते हुए एथलीट

काजल चक्रवर्ती बरेली जिले से लेकर उत्तर प्रदेश लेवल तक की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर दर्जनों मेडल जीत चुकीं हैं. उनके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून है. काजल के पिता मजदूर हैं. मजदूरी से इतना पैसा नहीं पैदा कर पाते कि बेटी और परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतों को पूरा कर सकें. इसलिए काजल ने अपने समूह के साथियों के साथ खेतों में मजदूरी करने का मन बनाया. पिछले दिनों गन्ने की बुवाई का काम किया और अभी हाल में मजदूरी पर गेहूं की कटाई की. इसके पैसों से अपने खाने का सामान खरीदा.

डाइट और किट खरीदने के लिए मजदूर बने एथलीट्स

एथलेटिक समूह के कोच साहिबे आलम ने बताया, उनके पास प्रैक्टिस करने वाले अधिकतर खिलाड़ी गरीब परिवार से आते हैं. खिलाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के लिए सही डाइट और किट का होना जरूरी है. इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए खिलाड़ियों के समूह ने ठेके पर गेहूं काटकर मजदूरी की. साहिबे ने बताया, खेल एसोसिएशन खिलाड़ियों की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं करती है.

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मेडल लिए हुए एथलीट

उन्होंने कहा, जब कोई खिलाड़ी ऊंचे स्तर की प्रतियोगिता में मेडल जीतकर आता है, तब उसको बस सम्मानित किया जाता है. उससे पहले सब कुछ खिलाड़ी को ही अपनी जेब से करना होता है. इन खिलाड़ियों के पास हौसला है, जज्बा है लेकिन आर्थिक स्थिति खराब है. इसके चलते इनको मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ा है. अगर इनका सहयोग किया जाए तो यह अच्छे एथलीट्स बनकर देश का नाम रोशन कर सकते हैं.

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वहीं, जितेंद्र यादव क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी बरेली ने बताया कि विभाग की तरफ से ऐसा कोई नियम नहीं है, जिससे इनकी कोई मदद की जा सके. यह जनपद के होनहार खिलाड़ी हैं. स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आकर इनकी मदद कर सकती हैं. जो लोग इनकी मदद कर सकें, उनको आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि जो मेडलिस्ट आते हैं, उनको विभाग के नियमों के अनुसार सुविधाएं दी जाती हैं.

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Last Updated : Apr 28, 2022, 9:26 PM IST
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