नई दिल्ली: इंग्लैंड के फुटबॉल क्लब लिवरपूल के मैनेजर रहे बिल शैंकले ने एक बार कहा था कि 'फुटबॉल जीवन या मृत्यु नहीं है, ये उससे भी कहीं ज्यादा है.' लेह के बच्चों ने शायद इस बात को समझ लिया है. गोल्डन बेबी लीग के शुरू होने के बाद उन्हें भारत के इस खूबसूरत हिस्से में एक नई जिंदगी मिल गई है.
गोल्डन बेबी लीग की संचालक सेरिंग सोमो ने एआईएफएफ डॉट कॉम से कहा, "भारत के कॉस्मोपोलिटियन शहरों की तुलना में हमारे पास मनोरंजन के कम साधन हैं. हमारे बच्चों के पास ये छूट नहीं है कि वो अपने से गेम पार्लर या पार्क जा सकें. फुटबॉल, खासकर गोल्डन बेबी लीग उनके लिए सब कुछ है. ये बच्चों और उनके माता-पिता के लिए ताजा ऑक्सीजन की तरह है."
2018 में गोल्डन लीग की शुरुआत से लोगों की इसमें रूचि काफी बढ़ी है. सेरिंग के मुताबिक लड़कियां इसमें काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं.
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सेरिंग ने कहा, "2018 में जब अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ ने हमें पहली बार मौका दिया था तो हमने स्कूलों से बात की थी और उन्होंने अच्छी प्रतिक्रिया भी दी थी. हमारे पास तीन आयु वर्गो- अंडर 6/7, अंडर 8/9 और अंडर-12/13 में 250 बच्चे थे, आप विश्वास नहीं करेंगे कि इसमें से आधी लड़कियां थीं."
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2018 में लेह ने ग्रासरूट लीडर्स कोर्स की मेजबानी की थी जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा गतिविधियां आयोजित करने की प्ररेणा मिली. फिर उन्होंने बेबी लीग आयोजित करने का प्लान रखा.
उन्होंने कहा, "मैं ग्रासरूट कोचिंग कोर्स-2018 के लिए एआईएफएफ का शुक्रिया कहना चाहती हूं, जिसने लद्दाख में बेबी लीग के लिए रास्ता खोला. हमने ऐसा कोई स्कूल नहीं छोड़ा जहां हमने वहां के फिजिकल एज्यूकेशन टीचर से बात नहीं की हो और प्रिंसिपल को इस प्रोजेक्ट के लिए नहीं मनाया हो."
सेरिंग ने कहा, "हां, हमने कोविड महामारी के कारण कई अहम दिन गंवाए, लेकिन हम बैठकर उन दिनों का विलाप नहीं कर सकते. हमें तैयारी करनी होगी और जल्दी काम करना होगा."