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टी-20 के बाद कोहली का आरसीबी की कप्तानी से हटना, इसमें छुपे हैं कई गहरे सवाल...

भारतीय कप्तान धोनी के कसीदे पढ़ने वाले देश में अपनी एक उलट पहचान बनाना, पूरे देश को अपने व्यक्तितव और खेल को स्वीकार करवाना...यहां तक की 10 साल तक एक खिलाड़ी के तौर पर अपने खेल की निरंतरता को बनाए रखना अब और क्या चाहिए था देश को अपने कप्तान कोहली से?

after T20 captaincy how suspicious of kohil leaving RCB captaincy
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Published : Sep 24, 2021, 12:18 PM IST

हैदराबाद: चिन्ताएं उसी की होती हैं, जिसके पास ताज होता है...और भारतीय कप्तान विराट कोहली जैसे व्यक्तित्व का हालातों के सामने घुटने टेक देना...इस मुहावरें को यथार्थ में बखूबी उतारता है.

पिछले एक हफ्ते में भारतीय ड्रेसिंग रूम से लेकर BCCI के दफ्तर तक, जो हलचल रही...उसका गवाह पूरा क्रिकेट जगत बना...टी-20 विश्व कप के शुरू होने से एक महीने पहले कोहली का कप्तानी से मोहभंग उतना ही नाजायज लगता है, जितनी की सचिन से क्रिकेट की दूरी पर...ये दोनों ही आज की सच्चाई है. बस इसमें फर्क इतना है कि सचिन ने एक सांस में सभी फॉर्मेट से संन्यास की घोषणा नहीं की थी, लेकिन कोहली ने एक हफ्ते के अंदर टी-20 के नेतृत्व मंडल से रिश्ता तोड़ दिया.

ऐसा दिखाई देने लग गया है कि कोहली के लिए ये जंग अब सिर्फ ताजपोशी की ही नहीं, बल्कि मानसिक मजबूती की भी बन गई है.

आरसीबी की कप्तानी छोड़ने के दौरान टीम ने कोहली का एक वीडियो जारी किया था, जिसको लेकर कई लोगों का ध्यान कोहली के हाव भाव पर गया...पहली बार कप्तान कोहली के कंधें झुके और आवाज नीची सुनाई दी...उनके चेहरे पर तेज कम और चिंता के बादल ज्यादा मंडरा रहे थे...अगर इस तरह से कोहली के सूर्य का अस्त होना लिखा है तो शायद आगे आने वाली जेनरेशन में कोई अपने बच्चों को चैंपियन बनने का हौसला नहीं देगा.

ये भी पढ़ें- ये मैच हमारी आंखें खोलने वाला रहा: विराट कोहली

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कोहली, रोहित और बोर्ड के बीच का मनमुटाव इस तरह से सामने आया कि रोहित फैंस को विराट एक खलनायक की तरह दिखने लग गए हैं.

एक कप्तान के रुप में कोहली ने क्या किया, क्या नहीं किया...इसकी समीक्षा तो वो आने वाले समय में खुद कर ही लेंगे...लेकिन साल 2017 से अब तक लिमिटेड ओवर के कप्तान बने रहना, वो भी उस देश में जहां 100 वनडे खेलने पर भी आपकी प्लेइंग इलेवन में जगह पक्की नहीं मानी जाती, एक बड़े साहस का प्रदर्शन है.

भारतीय कप्तान धोनी के कसीदे पढ़ने वाले देश में अपनी एक उलट पहचान बनाना, पूरे देश को अपने व्यक्तितव और खेल को स्वीकार करवाना...यहां तक की 10 साल तक एक खिलाड़ी के तौर पर अपने खेल की निरंतरता को बनाए रखना अब और क्या चाहिए था देश को अपने कप्तान कोहली से?

अब ये एक नेतृत्वकर्ता की पहचान न होकर अगर एक आईसीसी ट्रॉफी है तो अपने पायमानों को बदले का समय आ गया है...क्योंकि इस सोच के साथ तो विश्व फुटबॉल के महान खिलाड़ी मेसी या रोनाल्डो नहीं बल्कि एमबाप्पे हैं.

रही बात टीम की तो ये जाहिर है 'कप्तान' कोहली के ड्रेसिंग रूम में अगर रोहित को 'लीडर' माना जाएगा तो मनमुटाव अपनी जगह स्वयं बना लेगा...टीम को हक है, अपना नेतृत्वकर्ता चुनने का और ऐसे में गलती किसी और की नहीं...बल्कि कोहली की ही है. आखिरकार उनकी मौजूदगी में खिलाड़ियों के मन में ये रिक्ती आई कैसे? पर क्या इसका समाधान पद छोड़कर ही मिलता है?

--- राजसी स्वरुप

हैदराबाद: चिन्ताएं उसी की होती हैं, जिसके पास ताज होता है...और भारतीय कप्तान विराट कोहली जैसे व्यक्तित्व का हालातों के सामने घुटने टेक देना...इस मुहावरें को यथार्थ में बखूबी उतारता है.

पिछले एक हफ्ते में भारतीय ड्रेसिंग रूम से लेकर BCCI के दफ्तर तक, जो हलचल रही...उसका गवाह पूरा क्रिकेट जगत बना...टी-20 विश्व कप के शुरू होने से एक महीने पहले कोहली का कप्तानी से मोहभंग उतना ही नाजायज लगता है, जितनी की सचिन से क्रिकेट की दूरी पर...ये दोनों ही आज की सच्चाई है. बस इसमें फर्क इतना है कि सचिन ने एक सांस में सभी फॉर्मेट से संन्यास की घोषणा नहीं की थी, लेकिन कोहली ने एक हफ्ते के अंदर टी-20 के नेतृत्व मंडल से रिश्ता तोड़ दिया.

ऐसा दिखाई देने लग गया है कि कोहली के लिए ये जंग अब सिर्फ ताजपोशी की ही नहीं, बल्कि मानसिक मजबूती की भी बन गई है.

आरसीबी की कप्तानी छोड़ने के दौरान टीम ने कोहली का एक वीडियो जारी किया था, जिसको लेकर कई लोगों का ध्यान कोहली के हाव भाव पर गया...पहली बार कप्तान कोहली के कंधें झुके और आवाज नीची सुनाई दी...उनके चेहरे पर तेज कम और चिंता के बादल ज्यादा मंडरा रहे थे...अगर इस तरह से कोहली के सूर्य का अस्त होना लिखा है तो शायद आगे आने वाली जेनरेशन में कोई अपने बच्चों को चैंपियन बनने का हौसला नहीं देगा.

ये भी पढ़ें- ये मैच हमारी आंखें खोलने वाला रहा: विराट कोहली

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कोहली, रोहित और बोर्ड के बीच का मनमुटाव इस तरह से सामने आया कि रोहित फैंस को विराट एक खलनायक की तरह दिखने लग गए हैं.

एक कप्तान के रुप में कोहली ने क्या किया, क्या नहीं किया...इसकी समीक्षा तो वो आने वाले समय में खुद कर ही लेंगे...लेकिन साल 2017 से अब तक लिमिटेड ओवर के कप्तान बने रहना, वो भी उस देश में जहां 100 वनडे खेलने पर भी आपकी प्लेइंग इलेवन में जगह पक्की नहीं मानी जाती, एक बड़े साहस का प्रदर्शन है.

भारतीय कप्तान धोनी के कसीदे पढ़ने वाले देश में अपनी एक उलट पहचान बनाना, पूरे देश को अपने व्यक्तितव और खेल को स्वीकार करवाना...यहां तक की 10 साल तक एक खिलाड़ी के तौर पर अपने खेल की निरंतरता को बनाए रखना अब और क्या चाहिए था देश को अपने कप्तान कोहली से?

अब ये एक नेतृत्वकर्ता की पहचान न होकर अगर एक आईसीसी ट्रॉफी है तो अपने पायमानों को बदले का समय आ गया है...क्योंकि इस सोच के साथ तो विश्व फुटबॉल के महान खिलाड़ी मेसी या रोनाल्डो नहीं बल्कि एमबाप्पे हैं.

रही बात टीम की तो ये जाहिर है 'कप्तान' कोहली के ड्रेसिंग रूम में अगर रोहित को 'लीडर' माना जाएगा तो मनमुटाव अपनी जगह स्वयं बना लेगा...टीम को हक है, अपना नेतृत्वकर्ता चुनने का और ऐसे में गलती किसी और की नहीं...बल्कि कोहली की ही है. आखिरकार उनकी मौजूदगी में खिलाड़ियों के मन में ये रिक्ती आई कैसे? पर क्या इसका समाधान पद छोड़कर ही मिलता है?

--- राजसी स्वरुप

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