हैदराबाद: ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में खेले जाने वाला विश्व कप क्रिकेट के इतिहास में हमेशा बदलाव के लिए याद किया जाता है. इस टूर्नमेंट के दौरान पहली बार डे-नाइट मैच खेला गया और कलर्ड जर्सी का इस्तेमाल किया गया है.
पहली बार दिखी कलर्ड जर्सी
1992 का साल ऐसा साल था जो न केवल क्रिकेट बल्कि पूरे देश में ही बदलावा का साल था. लिब्रालाइजेशन कि शुरूआत भी इसी साल में हुई थी. 80 के दशक में भारत में टीवी पर कई त्रिकोणीय सीरीज देखी गई. उस वक्त 15 ओवर के पावरप्ले के दौरान '30 गज के बाहर दो फील्डर' नियम से सभी परिचित थे, लेकिन इसका उपयोग कम ही होता था. लोगों ने पहली बाद देश के बाहर के खेल देखना शुरू किए थे और क्रिकेट फैन्स को पहली बार अपने चेहते खिलाड़ी कलर्ड जर्सी में दिखाई दिए थे. यंही से क्रिकेट को एक नया रंग रूप मिला.
पावर प्ले में हुआ बदलाव
पावरप्ले आज की तरह 15 ओवरों का ही होता था, लेकिन यह पावरप्ले अनिवार्य पावरप्ले होता था, जो पहले 15 ओवरों तक चलता था इस दौरान 2 खिलाड़ियों को 30 गज के घेरे के बाहर रहने की इजाजत रहती थी. 16वें ओवर के बाद घेरे के बाहर 5 खिलाड़ी रखने की इजाजत होती थी.
आक्रमक क्रिकेट की हो चुकी थी शुरूआत
साल 1992 में सलीके से लागू हुए पावर प्ले के नियम के बाद क्रिकेट अलग ही मुकाम पर पंहुच गया था. बल्लेबाजों ने तेज खेलना शुरू कर दिया था. उस दौर को देखकर लग रहा था कि मानों इससे तेज क्रिकेट नहीं खेला जा सकता लेकिन वो बात भी बौनी साबित हुई और साल 2019 में इंग्लैंड में खेले जाने वाले वर्ल्ड कप में मैदान में मौजूद स्कोर बोर्ड को 500 रनों के लिए बनाया गया है इसका मतलब साफ है कि अब वो वक्त आ गया है कि एक पारी में 500 रन भी बन सकते हैं.
टी-20 ने बदल दिया क्रिकेट देखने का नजरिया
यही वह वक्त था जब क्रिकेट के फटाफट प्रारूप यानी T20 का उदय हो रहा था. पावरप्ले ने जैसे ही क्रिकेट को ज्यादा मनोरंजक बनाया इंटरनैशनल क्रिकेट काउसिल (आईसीसी) ने 2005 से इसमें और भी बदलाव किए और लगातार बदलाव किया जाता रहा. पावरप्ले को 20 ओवरों का बनाया गया और इसे तीन ब्लॉकों में भी बांटा गया.