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पुण्यतिथि विशेष : मौत के 40 साल बाद भी अपने गीतों के जरिए दिलों में जिंदा हैं रफी साहब

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Published : Jul 31, 2020, 9:44 AM IST

रफी साहब के बिना भारतीय संगीत जगत की कल्पना नहीं की जा सकती है. साल 1950 से 1970 के बीच रफी संगीतकारों के सबसे पसंदीदा गायक हुआ करते थे. रफी साहब को दुनिया से गुजरे 40 साल बीत गए. भारतीय संगीत जगत के चमकते सितारे मोहम्मद रफी ने 40 साल पहले 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कहा था. आज उनकी पुण्यतिथि पर एक नजर उनके सदाबहार नगमों पर..

singer rafi sahab evergreen songs
singer rafi sahab evergreen songs

मुंबई: मोहम्‍मद रफी, हिंदी सिनेमा का वो अनमोल हीरा जिसकी चमक बरकरार है. उनकी बेमिसाल गायकी और शालीन अंदाज का हर कोई कायल है. उनकी जादुई आवाज आज भी कानों में गूंजती है. कहा जाता है कि उन्‍हें गाने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी. 24 दिसंबर 1924 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे.

उसी फकीर से प्रेरणा लेकर उनके दिल में गाने के प्रति आकर्षण बढ़ा. 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए. आज भी जब उनके गीत कानों में गुंजते हैं मन मंत्र मुग्ध हो जाता है. मौत के 40 साल बाद भी रफी अपने गीतों के जरिए हमारी जिंदगी को छूते हैं. उनकी पुण्‍यतिथि पर एक नजर उनके ऐसे गानों पर जो हमेशा सदाबहार और यादगार रहेगें.

साल 1960 में आई विजय आनंद निर्देशित 'काला बाज़ार' के गीत 'खोया खोया चांद...' को देव आनंद और वहीदा रहमान पर फिल्माया गया है. यह गीत आज भी सभी का पसंदीदा है.

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राजेश खन्ना अभिनीत 'द ट्रेन' के 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखी...' गीत को आरडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था. इसमें मदमस्त कर देने वाली आवाज थी रफी साहब की. यह गीत आज भी सभी को थिरकने पर मजबूर कर देता है.

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साल 1971 की फिल्म 'हाथी मेरे साथी' का गीत 'नफरत की दुनिया को छोड़ के' आज भी सभी का पसंदीदा है. रफी साहब की दर्द भरी आवाज से सजा यह गीत जानवर और इंसान के बीच प्यार को बयां करता है.

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शम्मी कपूर के शानदार अभिनय से सजी साल 1969 की फिल्म 'प्रिन्स' का गीत 'बदन पे सितारे लपेटे हुए' आज भी जब सुनाई देता है तो रफी साहब की मदमस्त आवाज में हर कोई डूब जाता है.

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साल 1970 में रिलीज हुई शक्ति समंता की फिल्म 'पगला कहीं का' का गीत 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...' सिनेमा जगत के अमर गीतों में शामिल है. इस गाने को शम्मी कपूर और आशा पारेख पर फिल्माया गया है.

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रफी साहब की आवाज से सजा फिल्म 'कश्मीर की कली' का गाना 'ये चांद सा रोशन चेहरा' शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर पर फिल्माया गया था. आज भी जब किसी की तारीफ करनी हो तो रफी साहब का यह गीत बखूबी साथ निभाता है.

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फिल्म 'एन इवनिंग इन पेरिस' का गाना 'अकेले अकेले कहां जा रहे हो' आज भी सभी के पसंदीदा गीतों की लिस्ट में जरूर शामिल नजर आता है. शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की शानदार अदाकारी के साथ इस गाने में रफी साहब की आवाज सभी के दिलों को जीत लेती है.

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मौहम्मद रफी साहब की आवाज से सजा फिल्म 'बैजू बावरा' का गीत 'ऐ दुनिया के रखवाले' मानो भगवान से अपनी प्रार्थना कहने के लिए दर्शकों का पसंदीदा हो गया. भरत भूषण के शानदार अभिनय से सजा यह गाना बेहद लोकप्रिय है.

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आज भी जब किसी का महबूब आता है तो रफी साहब की आवाज से सजा 'सूरज' फिल्म का गाना 'बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है' जरूर जेहन में आता है.

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'पत्थर के सनम' का टाइटल ट्रैक आज भी सभी का पसंदीदा है. रफी साहब की आवाज से सजे इस गाने में सनम के बेवफा होने का बखूबी जिक्र किया गया है.

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मोहम्मद रफी साहब ने लगभग 700 फिल्मों के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में 26,000 से भी ज़्यादा गीत गाए हैं. उन्होंने अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं के गानों में भी अपनी आवाज दी. वर्ष 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा था.

बता दें कि जिस दिन रफी साहब का निधन हुआ था उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी. उनके लिए लोगों की मोहब्बत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब मुंबई में रफी का जनाजा निकाला गया तो उसमें करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे. रफी के गुजर जाने पर दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था.

मुंबई: मोहम्‍मद रफी, हिंदी सिनेमा का वो अनमोल हीरा जिसकी चमक बरकरार है. उनकी बेमिसाल गायकी और शालीन अंदाज का हर कोई कायल है. उनकी जादुई आवाज आज भी कानों में गूंजती है. कहा जाता है कि उन्‍हें गाने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी. 24 दिसंबर 1924 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे.

उसी फकीर से प्रेरणा लेकर उनके दिल में गाने के प्रति आकर्षण बढ़ा. 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए. आज भी जब उनके गीत कानों में गुंजते हैं मन मंत्र मुग्ध हो जाता है. मौत के 40 साल बाद भी रफी अपने गीतों के जरिए हमारी जिंदगी को छूते हैं. उनकी पुण्‍यतिथि पर एक नजर उनके ऐसे गानों पर जो हमेशा सदाबहार और यादगार रहेगें.

साल 1960 में आई विजय आनंद निर्देशित 'काला बाज़ार' के गीत 'खोया खोया चांद...' को देव आनंद और वहीदा रहमान पर फिल्माया गया है. यह गीत आज भी सभी का पसंदीदा है.

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राजेश खन्ना अभिनीत 'द ट्रेन' के 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखी...' गीत को आरडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था. इसमें मदमस्त कर देने वाली आवाज थी रफी साहब की. यह गीत आज भी सभी को थिरकने पर मजबूर कर देता है.

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साल 1971 की फिल्म 'हाथी मेरे साथी' का गीत 'नफरत की दुनिया को छोड़ के' आज भी सभी का पसंदीदा है. रफी साहब की दर्द भरी आवाज से सजा यह गीत जानवर और इंसान के बीच प्यार को बयां करता है.

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शम्मी कपूर के शानदार अभिनय से सजी साल 1969 की फिल्म 'प्रिन्स' का गीत 'बदन पे सितारे लपेटे हुए' आज भी जब सुनाई देता है तो रफी साहब की मदमस्त आवाज में हर कोई डूब जाता है.

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साल 1970 में रिलीज हुई शक्ति समंता की फिल्म 'पगला कहीं का' का गीत 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...' सिनेमा जगत के अमर गीतों में शामिल है. इस गाने को शम्मी कपूर और आशा पारेख पर फिल्माया गया है.

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रफी साहब की आवाज से सजा फिल्म 'कश्मीर की कली' का गाना 'ये चांद सा रोशन चेहरा' शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर पर फिल्माया गया था. आज भी जब किसी की तारीफ करनी हो तो रफी साहब का यह गीत बखूबी साथ निभाता है.

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फिल्म 'एन इवनिंग इन पेरिस' का गाना 'अकेले अकेले कहां जा रहे हो' आज भी सभी के पसंदीदा गीतों की लिस्ट में जरूर शामिल नजर आता है. शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की शानदार अदाकारी के साथ इस गाने में रफी साहब की आवाज सभी के दिलों को जीत लेती है.

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मौहम्मद रफी साहब की आवाज से सजा फिल्म 'बैजू बावरा' का गीत 'ऐ दुनिया के रखवाले' मानो भगवान से अपनी प्रार्थना कहने के लिए दर्शकों का पसंदीदा हो गया. भरत भूषण के शानदार अभिनय से सजा यह गाना बेहद लोकप्रिय है.

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आज भी जब किसी का महबूब आता है तो रफी साहब की आवाज से सजा 'सूरज' फिल्म का गाना 'बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है' जरूर जेहन में आता है.

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'पत्थर के सनम' का टाइटल ट्रैक आज भी सभी का पसंदीदा है. रफी साहब की आवाज से सजे इस गाने में सनम के बेवफा होने का बखूबी जिक्र किया गया है.

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मोहम्मद रफी साहब ने लगभग 700 फिल्मों के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में 26,000 से भी ज़्यादा गीत गाए हैं. उन्होंने अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं के गानों में भी अपनी आवाज दी. वर्ष 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा था.

बता दें कि जिस दिन रफी साहब का निधन हुआ था उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी. उनके लिए लोगों की मोहब्बत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब मुंबई में रफी का जनाजा निकाला गया तो उसमें करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे. रफी के गुजर जाने पर दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था.

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