मुंबई: बेशुमार खूबसूरती, एक प्यारी सी मुस्कान, आखों में मासूमियत और अपनी कमाल की अदाकारी के लिए बॉलीवुड अभिनेत्री मधुबाला हमारे दिलों में आज भी जिंदा है. अजीब बात ये है की मधुबाला जैसे महान अभिनेत्री की जिंदगी उनकी फिल्मों से एकदम अलग थी. घर की कई जिम्मेदारियों के साथ, प्यार और दिल की बीमारी के बीच झूझती मधुबाला ने महज 36 साल की कम उम्र में हमें अलविदा कह दिया. लगभग दो दशकों के करियर में मधुबाला ने अपनी प्राकृतिक सुंदरता से ही अपना जादू बिखेरा.
मुमताज जेहन बेगम देहलवी कैसे बॉलीवुड की मधुबाला बनी इसके पीछे भी एक मजेदार कहानी है.
महज आठ साल की कम उम्र में मुमताज़ को परिवार की सारी ज़िम्मेदारियां संभालनी पड़ीं क्योंकि उसके पिता अताउल्लाह खान लंबे समय तक नौकरी नहीं कर सकते थे. खान अपने परिवार को पेशावर से दिल्ली और आखिर में मुंबई ले गए जहां मुमताज का परिवार हिमांशु राय और देविका रानी के स्टूडियो, बॉम्बे टॉकीज के सामने एक झोंपड़ी में रहता था.
एक बार जब खान अपने बड़े परिवार को पाल नहीं पा रहे थे तो वह अपनी छह में से तीसरी बेटी मुमताज को काम के लिए देविका और हिमांशु के पास लेकर गए. बॉम्बे टॉकीज़ के मालिकों ने इस सुंदर सी बच्ची का ऑडिशन लिया और उसे 'बसंत' के लिए साइन कर लिया.
बेबी मुमताज़ कैमरे के सामने एकदम खास थीं और इस तरह उन्होंने अपनी पहली फिल्म की सफलता के बाद एक बाल कलाकार के रूप में तीन और फिल्में हासिल कीं. एक लीडिंग लेडी के रूप में मधुबाला ने बाल कलाकार के तौर पर 6 फिल्में कीं. जब वह तेरह साल की हो गईं तब तक बाल कलाकार मुमताज अपने जीवन में निश्चित परिवर्तन के शिखर पर थीं. देविका रानी, जिन्होंने बॉलीवुड से मुमताज़ का परिचय करवाया, उन्होंने फिर मुमताज की जिंदगी में एक अहम भूमिका निभाई. देविका रानी ने ही मुमताज को मधुबाला बनाया.
किदार शर्मा की 'नील कमल’ से दो सितारों को लॉन्च किया गया. पहली थीं मधुबाला और दूसरे थे राज कपूर. कैमरा मधुबाला से जितना प्यार करता था उतना ही प्यार उन्हें दर्शकों से भी मिला. हालांकि, दर्शक उनके अभिनय से ज्यादा उनकी सुंदरता से प्रभावित थे.
1947 में अपनी शुरुआत के बाद, मधुबाला ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कई फिल्में साइन की और वह 'महल' से पहले एक दर्जन फिल्मों में दिखाई दीं, जिस फिल्म ने उन्हें सफलता दी उसने दो साल बाद स्क्रीन पर दस्तक दी.
सफल फिल्मों की एक कड़ी के बाद, मधुबाला को उस वक्त अपने करियर में उथल-पुथल का सामना करना पड़ा, जब उनकी जिंदगी में एक साथ कई सारी मुसीबतों ने दस्तक दी. उनकी फिल्मों की असफलता हो, अदालत में 'नया दौर' के खिलाफ चल रहा मुकदमा हो या दिल की बीमारी, सबकी वजह से मधुबाला की जिंदगी में मानो तूफान सा आ गया था लेकिन इस तूफान से लड़कर उन्होंने फिर वापसी की और कुछ इस तरह की कि सब देखते रह गए.
'रेल का डिब्बा’ में मधुबाला के साथ अपने करियर की शुरुआत करने वाले शम्मी कपूर ने एक बार कहा था, "मधुबाला एक बहुत ही बेहतरीन अभिनेत्री हैं लेकिन उनकी सुंदरता के कारण उनके अभिनय की तरफ दर्शक ध्यान नहीं दे पाते. मधुबाला जितनी कमाल की स्टार हैं उस हिसाब से उन्हें मेहनत का फल नहीं मिल पाता". शम्मी का ये कहना एकदम सही था क्योंकि मधुबाला की बेइंतहा ख़ूबसूरती के पीछे उनका प्राकृतिक अभिनय कहीं छिप जाता था.
एक वक्त तो ऐसा भी था जब आलोचकों को लगता था की मधुबाला के पास नृत्य कौशल की कमी है. लेकिन, 'मुग़ल-ए-आज़म' में अनारकली का किरदार कर उन्होंने आलोचकों को एक बार फिर गलत साबित कर दिया.
फिल्म मुग़ल-ए-आज़म मधुबाला की जिंदगी की सबसे बड़ी फिल्म मानी जाती है. अभिनय की दुनिया में आज भी इस अभिनय का उदाहरण दिया जाता है.
साल 1944 में फ़िल्म ज्वारभाटा में मधुबाला और दिलीप कुमार को एक दूसरे के साथ जुड़ने का मौका मिला. इनके बीच प्यार की शुरुआत फिल्म तराना करते हुए हुई. दोनों के बीच प्यार का ये रिश्ता धीरे-धीरे बढ़ने लगा. लेकिन मधुबाला के पिता को ये पसंद नही था. उन्होंने मधुबाला को दिलीप कुमार से शादी करने से मना कर दिया. मधुबाला अपने पिता के प्रति बहुत आज्ञाकारी थीं और आखिर में ये रिश्ता अपनी मंजिल नहीं पा सका.
इसके बाद मधुबाला की शादी किशोर कुमार से हो गई. साल 1960 में मधुबाला से शादी करने के लिए किशोर कुमार ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया और किशोर कुमार का नाम अब्दुल हो गया. इस शादी को मधुबाला स्वीकार नहीं कर पा रहीं थीं. लेकिन मना भी नहीं कर सकीं. इसी समय मधुबाला को दिल की बीमारी ने जकड़ लिया. किशोर कुमार को ये बात पता थी. शादी के बाद दोनों बीमारी का इलाज करवाने लंदन भी गए. वहां डॉक्टर ने मधुबाला की हालत देखते हुए कहा कि मधुबाला अब ज्यादा से ज्यादा 2 साल तक ही बच सकती हैं. आखिर में 23 फरवरी, 1969 को खूबसूरत अदाकारा मधुबाला ने दुनिया को अलविदा कह दिया.